खूंटीःझारखंड में दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव मनाने की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है. वहीं झारखंड आदिवासी महोत्सव को यादगार बनाने के लिए साहित्य, मानवविज्ञान और अर्थशास्त्र के जानकारों को मंथन करने के लिए देशभर से निमंत्रण दिया गया है, लेकिन पद्मभूषण से सम्मानित और पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा को सरकार ने न्योता नहीं भेजा है. इसपर कड़िया मुंडा ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीच की है.
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बड़े आयोजनों में जनता के टैक्स का पैसा खर्च करना अनुचितः हेमंत सरकार की ओर से नौ और 10 अगस्त को आदिवासी महोत्सव मनाए जाने के सवाल पर पद्मभूषण सम्मानित पूर्व सांसद कड़िया मुंडा ने कहा कि मैं इस तरह के तामझाम आयोजन पर विश्वास नहीं रखता हूं. मैं अपने कार्यकाल में भी इस तरह के आयोजनों से दूर रहा. इस तरह के आयोजनों में खर्च बहुत होता है और आमलोगों को इसका लाभ नहीं मिलता और कार्यक्रम का कोई परिणाम नहीं दिखता. उन्होंने कहा कि आदिवासी महोत्सव जैसे बड़े आयोजनों में आम जनता के टैक्स का पैसा ही खर्च होता है, इसलिए मेरी नजर में यह अनुचित है. आदिवासियों का विकास कैसे हो, केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का सीधा लाभ कैसे आदिवासियों तक पहुंचे सरकार को इस बात पर ध्यान देना चाहिए.
केंद्र से भेजे गए पैसे का राज्य में ईमानदारी से नहीं हुआ उपयोगः एक सवाल का जवाब देते हुए पूर्व सांसद कड़िया मुंडा ने कहा कि ऐसा नहीं है कि आदिवासियों के विकास के लिए केंद्र से पैसा नहीं आता है, केंद्र बाकायदा समय-समय पर पैसा भेजती है, योजनाएं भी लागू की गईं. लेकिन जिस गति से विकास होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. इसका कारण आदिवासियों के विकास के लिए केंद्र द्वारा भेजे गए पैसे का ईमानदारी से उपयोग नहीं किया गया. आदिवासी इलाकों में बिजली पहुंचायी गई, कागजों में जनजातीय इलाकों में विद्युतीकरण दर्शाया गया, लेकिन कई गांव, पंचायत में आज भी बिजली नहीं पहुंची है. चापाकल लगाए गए, लेकिन खराब होने पर कई-कई वर्षों तक कोई बनवाने वाला नहीं होता. उन्होंने कहा कि आदिवासी इलाकों का समुचित विकास हो और आमजनों को इसका लाभ पहुंचे. उन्होंने कहा कि जिस अनुपात में आदिवासियों के विकास के लिए केंद्र से पैसे आए, उस अनुपात में आदिवासी इलाकों और आदिवासियों का विकास नहीं हो पाया है.
नेता कम बोलें और ज्यादा काम करेंः इस दौरान कड़िया मुंडा ने झारखंड के नेताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यहां के नेता ज्यादा बोलते हैं और काम कम करते हैं, जबकि काम ज्यादा करना चाहिए और बोलना कम चाहिए. सत्ता मिलने के पूर्व कुछ बोलते हैं और सत्तासीन होने के बाद नेताओं के बोल बदल जाते हैं. जबकि सामाजिक हितों को ध्यान में रखते हुए वर्त्तमान नेताओं को कार्य करना चाहिए. हालांकि पूर्व की तुलना में कुछ क्षेत्रों में बदलाव आया है. पहले की तुलना में अब घर-घर शिक्षा के प्रति आदिवासी जागरूक हुआ है. अधिकांश बच्चे स्कूल जाने लगे हैं. गांव समाज मे कुछ परिवर्त्तन देखने को मिल रहे हैं, लेकिन आज भी आदिवासी समाज के लिए सरकार को बहुत कुछ करने की आवश्यकता है.
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मणिपुर मामले पर कड़िया मुंडा ने कहाः देश और प्रदेश दोनों में अंतर है. कोशिश हो रही है कि मणिपुर में शांति बहाल हो. मणिपुर मुद्दे को लेकर सभी काम बंद हो जाएं, ये सही नहीं हैं. मणिपुर मसले पर केंद्र सरकार कार्य कर रही है. बड़ी सावधानीपूर्वक मसले को सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है. सरकार चाहे तो एक दिन में पूरी सेना को मणिपुर में उतार कर स्थिति ठीक कर सकती है, लेकिन ऐसा करना अनुचित होगा. बड़ी सावधानीपूर्वक मणिपुर के मसले पर सरकार को पहल करनी होगी. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ मणिपुर में ही इस तरह की घटनाएं हुई हैं, अन्य राज्यों में भी इस तरह बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं. इसलिए सिर्फ मणिपुर की बात करें तो ठीक नहीं है.