खूंटीः जिला के कर्रा प्रखंड अंतर्गत चंदापारा गांव की रहने वाली 12 साल की आदिवासी बच्ची दीपिका मिंज (Deepika Minz) इलाके में टीचर दीदी (Teacher Didi) के नाम से जानी और पहचानी जाती हैं. गांव के बच्चे उसे प्यार से टीचर दीदी ही बुलाते हैं. दीपिका खुद सातवीं क्लास में पढ़ती है, पर गांव के शिक्षा से वंचित बच्चों को रोजाना दो घंटे बच्चों को पढ़ाती हैं.
इसे भी पढ़ें- मंदिर की लाउडस्पीकर से निकली वर्णमाला की वाणी, जानिए पूरी खबर
गांव के छोटे से चबूतरे में बच्चों बैठाकर उन्हें पढ़ाती हैं. वक्त निकालकर दीपिका हर रोज दो घंटे बच्चों के बीच होती हैं, यहां वो अंग्रेजी और गणित का पाठ पढ़ाती हैं. दीपिका जिस चबूतरे पर बच्चों को बैठकर पढ़ाती हैं, उसने उसका नाम 'शिक्षा प्रेमियों की पाठशाला' रखा है.
कहते हैं एक छोटी-सी चिंगारी ही काफी होता है, आग भड़काने के लिए. वैसे ही एक छोटी-सी सोच से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. नक्सल प्रभावित खूंटी जिला (Naxal affected Khunti district) के एक छोटे से गांव की 12 साल की एक आदिवासी बच्ची की सोच ने इलाके की तस्वीर बदल दी है. दीपिका की हिम्मत और जज्बा ही जिसने कच्चाबारी पंचायत के लोगों को शिक्षा से जोड़ दिया है. एक तो दुर्गम इलाका, नक्सल प्रभावित होने की वजह से नक्सलियों और अपराधियों का खतरा हर वक्त लगा रहता है.
दूसरी तरफ कोरोना और लॉकडाउन (Corona and Lockdown) की वजह से शिक्षा व्यवस्था (Education System) गांव में पूरी तरह से ठप हो गई. दीपिका के साथ-साथ गांव के सैकड़ों बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गई. गांव के बच्चे पूरे गांव में आवारगर्दी करते नजर आने लगे, बेजा वक्त जाया करने लगे, बड़े-बुजुर्गों को सम्मान करना भूल गए. दीपिका हर रोज बच्चों को ऐसे ही देखती थी, जिससे उसको काफी बुरा लगने लगा और उसके मन को काफी ठेस पहुंची.
उसके बाद उसने ठाना कि वो इन बच्चों को शिक्षा के सूत्र में बांधकर रहेगी, उन्हें सही राह दिखाएगी और नैतिकता का पाठ (Moral Lesson) पढ़ाएगी. इसके लिए उसने खुद से शुरूआत की. दीपिका ने पहले खुद अपने गांव चांदपारा में घूम-घूमकर बच्चों को शिक्षा से जुड़ने का आग्रह किया, शिक्षा को लेकर बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों के भी जागरूक करने लगीं. उसकी मेहनत रंग लाई और शुरुआत में एक-दो बच्चे उसके साथ जुड़कर पढ़ने लगे.
इसे भी पढ़ें- खूंटी के शिक्षा विभाग में आराम की नौकरी, बंद स्कूलों में ड्यूटी और मुफ्त की तनख्वाह
वक्त जरूर लगा लेकिन अच्छी सोच का सिलसिला चल निकला, बच्चे जुड़ते गए और कारवां बनता गया. शिक्षा की एक छोटी चिंगारी ने पूरे गांव में शिक्षा का दीप प्रज्जवलित कर दिया. धीरे-धीरे ना सिर्फ चांदपारा गांव बल्कि कच्चाबारी पंचायत के कई गांव शिक्षा के सूत्र में बंध गए. आज दीपिका की क्लास में कई बच्चे पढ़ते हैं.
घर में पढ़ाना मुश्किल था, इसके लिए दीपिका ने बच्चों को पढ़ाने के लिए एक बंद सरकारी स्कूल चुना. गांव के लोगों ने इसकी जानकारी ग्राम सभा को दी, इस बाबत ग्राम सभा ने खुशी-खुशी दीपिका के इस मिशन में भरपूर साथ दिया. ग्राम सभा की बैठक हुई, जिसमें दीपिका ने अपनी सोच से लोगों को रूबरू कराया, इसमें दीपिका ने अपनी बहन के साथ-साथ गांव की 10वीं, 12वीं और स्नातक की पढ़ाई कर रही लड़कियों से भी सहयोग मांगा.
सरकारी के जिस चबूतरे पर बैठकर बच्चों को पढ़ाती हैं दीपिका ने उस चबूतरे का नाम दिया- शिक्षा प्रेमियों का मंदिर. गांव की बाकी लड़कियों ने भी दीपिका की सोच को सलाम किया और दीपिका के मिशन शिक्षा में जुट गईं. सातवीं क्लास में पढ़ने वाली दीपिका छोटे बच्चों को अंग्रेजी और गणित पढ़ाती हैं. दीपिका की बड़ी बहन और गांव की ही एक आदिवासी लड़की बाकी बड़े बच्चों को हिंदी, गणित, अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान की शिक्षा देती हैं.
इसे भी पढ़ें- 'निपुण भारत' की शुरुआत, बच्चों की सीखने की जरूरतों को पूरा करना लक्ष्य
देखते-देखते वीरान और बेजान सरकारी स्कूल (Government School) का चबूतरा शिक्षा के मंदिर में तब्दील हो गया. बंद क्लास रूम नहीं, ब्लैक बोर्ड ना सही, दीवार पर टंगा व्हाइट बोर्ड है, खुली हवा में दमभर कर ककहरा बच्चों की सांसों में घुलने लगी. रिमझिम बारिश में पाठशाला गांव की लाउब्रेरी में शिफ्ट हो जाती है. शिक्षा मिलने के बच्चों में बदलाव आने लगा, जिससे ग्रामीणों की सोच और समझ बदलने लगी. आज चांदपारा गांव में सामाजिक और शैक्षणिक बदलाव (Social and Educational Change) साफ देखी जा सकती है. एक दो नहीं कच्चाबारी पंचायत का कई गांव आज शिक्षा के दीपक के प्रकाशमय है.