जामताड़ा: जिले में प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने की सरकार के दावे पूरी तरह से अब खोखला साबित होने लगे हैं. मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने में जामताड़ा प्रशासन पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है, जिसके कारण रोजगार के अभाव में मजदूरों को काम की तलाश में या तो भटकना पड़ता है या पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.
लॉकडाउन में काम छोड़कर देश के विविध भागों से मजदूर वापस आए थे. मजदूर फिर से पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. रोजगार न मिलने के कारण अब जहां काम छोड़कर आए थे फिर वहीं वापस पलायन कर रहे हैं. ट्रेन, बस से अधिकतर मजदूर वापस फिर पलायन कर गए हैं. इन मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन में वापस आए थे लेकिन अब काम नहीं मिल रहा है तो वापस जाना मजबूरी हो गई है.
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मनरेगा के तहत चलाई जा रही है योजना
मनरेगा योजना लागू है और मनरेगा के तहत सरकार ने प्रवासी मजदूरों को गांव में ही रोजगार मिल सके, इसके लेकर कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. करोड़ों रुपये इसके लिए खर्च भी हो रहे हैं.
मिलती है कम मजदूरी
मनरेगा योजना के तहत मजदूरों को रोजगार देने की गारंटी दी जाती है. 100 दिन मजदूरी देने का प्रावधान किया गया है लेकिन मनरेगा के तहत मजदूरी दर काफी कम है और उसमें भी मजदूरों को प्रतिदिन भुगतान नहीं कर सप्ताह में एक दिन भुगतान किया जाता है.
मनरेगा के तहत काम करने वाले गांव के एक मजदूर से जब पूछा गया तो उसने बताया कि 178 रुपये हाजिरी मनरेगा में काम करने पर मिलता है, वह भी सप्ताह में 1 दिन भुगतान किया. बाकी काम के लिए भटकना पड़ता है. मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने को लेकर योजनाएं जामताड़ा में मजदूरों के लिए शत प्रतिशत लाभदायक साबित नहीं हो पा रही हैं.