हजारीबाग: जिले की 7000 ईसा पूर्व पुरानी कला अब चेहरे की खूबसूरती बनने जा रही है. हजारीबाग के जगदीशपुर गांव के युवा सोहराय और कोहबर कला को देश विदेश तक पहुंचाने के लिए इसे मास्क में उकेर रहे हैं. ताकि यह कला दूर तक पहुंचे.
विदेशों तक कला पहुंचाना उद्देश्य
हजारीबाग के जगदीशपुर के रहने वाले कुछ युवा कलाकार हजारीबाग की पुरातन कला सोहराय और कोहबर को नया आयाम देने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, युवा चाहते हैं कि उनके घर की कला देश के कोने कोने के साथ-साथ विदेशों तक पहुंचे. उद्देश्य यह रहे कि हर एक चेहरे पर यह कला दिखे. इसी उद्देश्य से माटीमय संस्था इन दिनों सोहराय कला को मास्क पर उकेर रहे है.
क्या कहते हैं युवा
मास्क बनाने वाले युवा कहते हैं कि मास्क आज के दिन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण सामानों में एक हो गई है. जो हमारे साथ दिन भर रहती है. ऐसे में हम चाहते हैं कि सोहराय कला का बना मास्क लोगों तक पहुंचे. इससे दो फायदा होगा हमारी सभ्यता और संस्कृति के बारे में समाज का हर एक तबका जाने तो दूसरी ओर कोरोना से सुरक्षा भी मिलेगा.
'सोहराय' कला है जिंदगी
माटीमय के फाउंडर व युवा फिल्मकार अनिरुद्ध उपाध्याय ने बताया कि 2016 में सोहराय और कोहबर पर फिल्म बनने के दौरान इस कला से ऐसा लगाव हुआ कि यह जीवन का एक हिस्सा बन गया. उन्होंने यही कोशिश की है कि इस कला के बारे में अधिक से अधिक प्रचार प्रसार हो. ताकि लोग इसे समझें. यह कला सिर्फ कला नहीं, हमारी जिंदगी है.