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मजदूरी छोड़, डक फार्मिंग से हजारों कमा रहा मजदूर राजेश कुमार कुशवाहा

परंपरागत खेती से आगे बढ़कर अब झारखंड में कुक्कुट पालन को लेकर किसानों में रूझान बढ़ा है. इसी एक बानगी पेश की है एक मजदूर ने. हजारीबाग के मजदूर राजेश कुमार कुशवाहा मजदूरी छोड़ डक फार्मिंग से कमाई कर रहे हैं. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट से जानिए, 350 रुपया कमाने वाला मजदूर अब औसतन 4000 रुपया प्रतिदिन कैसे कमा रहा है?

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डक फार्मिंग से कमाई

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Published : Jan 21, 2022, 4:08 PM IST

Updated : Jan 21, 2022, 4:43 PM IST

हजारीबागः झारखंड के किसान खेती किसानी को लेकर कई तरह के प्रयोग कर रहे हैं. किसान अपनी सोच और मेहनत से प्रगतिशील बन रहे हैं. मजदूर राजेश कुमार कुशवाहा ने हजारीबाग में बत्तख पालन में एक नई मिसाल कायम की है. डक फार्मिंग से कमाई करने वाले मजदूर की किस्मत बदल गयी है. हर एक व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह आर्थिक रूप से संपन्न हो. इसके लिए जब सकारात्मक और सही दिशा में मेहनत की जाए तो सफलता भी मिलती है. आपको हम एक ऐसे मजदूर से मिलाने जा रहे हैं जो कभी प्रतिदिन 350 रुपया के हिसाब से कमाया करता था. लेकिन आज उसकी कमाई प्रत्येक दिन लगभग 4000 रुपया के आसपास है. मजदूर को डक फार्मिंग से सफलता मिली है.

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भारत की पहचान पूरे विश्व में कृषि प्रधान देश के रूप में है. यहां भारी संख्या में लोग कृषि कार्य करते हैं. कृषि कार्य के साथ-साथ किसान यहां पशुपालन भी करते हैं. जिसमें गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी, बत्तख शामिल है. वर्तमान समय में झारखंड में कुक्कुट पालन को लेकर लोगों का रुझान मुर्गी पालन की अपेक्षा बत्तख पालन की ओर अधिक देखने को मिल रहा है. हजारीबाग के एक मजदूर जो कभी 350 रुपया प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी कर कमाते थे. आज उसकी औसतन कमाई प्रत्येक दिन लगभग 4000 रुपया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

हजारीबाग के मजदूर राजेश कुमार कुशवाहा ने डक फार्मिंग के जरिए यह मुकाम हासिल किया है. राजेश कुमार कुशवाहा बताते है कि पहले जब मजदूरी किया करते थे तो मालिक अच्छे से बात भी नहीं किया करते थे, अपमान भी सहना पड़ता था. इसके साथ ही जितना मेहनत था उतना मेहताना भी नहीं मिलता था. सप्ताह में 3 से 4 दिन भी काम मिला तो काफी था. ऐसे में सोचा कि अपनी जमीन में क्यों ना मुर्गी पालन करें. जब पता किया तो मालूम चला कि मुर्गी पालन में खतरा अधिक है. अगर बीमारी हुई तो एक ही बार में सारी मुर्गियां मर जाती हैं. ऐसे में कई लोगों से बात की और उन लोगों ने बताया कि बत्तख पालन में मुर्गी पालन की अपेक्षा में जोखिम कम होता है. सबसे अहम बात यह है कि बाजार में बत्तख की मांग काफी है, साथ ही बत्तख के अंडे और मांस दोनों में प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक होती है. जिस कारण मार्केट में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है. ऐसे में हजारीबाग में बत्तख पालन करना शुरू किया और आज बेहद खुशी हो रही है कि वो अपने पैरों पर खड़े हैं.

मजदूर राजेश कुमार कुशवाहा कर रहे डक फार्मिंग
राजेश कुमार कुशवाहा के पास वर्तमान समय में लगभग 500 बत्तख हैं. एक महीना पहले बत्तख की संख्या 1000 के आसपास थी. जैसे-जैसे बत्तख की मांग हुई, बत्तख बेचता चला गया. प्रत्येक बत्तख की कीमत लगभग 400 रुपया के आसपास मिलती है. राजेश आज बत्तख के साथ साथ अंडा भी बेच रहे हैं. राजेश बताते हैं कि प्रत्येक दिन 300 अंडा बत्तख देता है. बत्तख के अंडे के साइज के अनुसार उसका कीमत मिलता है. 12 रुपया औसतन एक अंडे का दाम मिलता है. ऐसे में प्रत्येक दिन लगभग 4000 रुपया की कमाई होती है.

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एक बत्तख 1 वर्ष में लगभग 280 से लेकर 300 अंडे देती है. मार्केट में एक अंडे की कीमत लगभग 12 से 15 रुपया के बीच होता है. बत्तख तैयार होने में 6 महीने का समय लगता है और इसका खानपान भी बेहद सस्ता होता है. इस कारण वर्तमान समय में किसान मुर्गी फार्म के बजाए डक फार्मिंग करने में अधिक उत्सुकता दिखा रहे हैं. राजेश कुमार हजारीबाग के लूटा डैम के निकट अपना फार्म बनाया है. ऐसे में स्थानीय किसान भी कहते हैं कि मजदूरी करने से अच्छा अपना काम करना है. जिस तरह से राजेश ने डक फार्मिंग किया है उसे अच्छी कमाई भी हो रही है. वहीं उनके फार्म में अब दूसरे मजदूर भी काम कर रहे हैं. उनका भी कहना है कि हम लोगों को कमाई हो जा रही है.

बत्तख पोल्ट्री फार्म

सामाजिक आर्थिक विकास के लिए डक फार्मिंग किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प बनकर उभर रहा है. युवा वर्ग इसे व्यवसाय के रूप में ले रहे हैं. कोई भी व्यवसाय शुरू करने से पहले उसके सभी आयामों के बारे में जानकारी लेना जरूरी होता है, तभी सफलता भी मिलती है. राजेश अपनी बदौलत डक फार्मिंग कर रहा है. कई लोगों से उसने कर्ज भी लिए हैं. अब कर्ज के पैसे को वापस कर रहा है. लेकिन बत्तख पोल्ट्री फार्म खोलने के लिए सरकार नाबार्ड के माध्यम से व्यवस्था के लिए ऋण उपलब्ध कराती है, जिसमें 25% सब्सिडी भी दिया जाता है. वर्तमान समय में सरकार भी किसानों को आत्मनिर्भर होने के लिए कई तरह के योजना उपलब्ध कराई है. जिसका लाभ किसान ले सकते हैं. देश में पोल्ट्री फॉर्म में 10% हिस्सा बत्तख पालन का है. लेकिन धीरे-धीरे यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. कोरोना काल के दौरान प्रोटीन अधिक होने को लेकर इसके अंडे और मांस की मांग भी काफी अधिक रही. ठंड में भी अंडे की मांग अधिक रहती है.

Last Updated : Jan 21, 2022, 4:43 PM IST

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