हजारीबागः हाथों में मेहंदी, चूल्हा-चौका और अपने परिवार का भरण पोषण करने वाली महिलाएं आज ऊंची उड़ान भरने का सपना देख कर उसे धरातल पर उतार रही हैं. जो कभी घर पर रोटी बनाती थी आज उनके हाथों में ट्रैक्टर की स्टेरिंग है. दरअसल बोकारो और धनबाद जिले की महिलाएं हजारीबाग पहुंचकर ट्रैक्टर चलाने की ट्रेनिंग ले रही हैं. इसके साथ ही यह वादा भी कर रही हैं कि जब अपने गांव जाएंगी तो वहां की महिलाओं को भी ये हुनर सिखाएंगी.
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महिलाएं ट्रैक्टर चलाने को लेकर उत्साहित
हर एक व्यक्ति की एक चाहत होती है कि वह समाज में खुद को प्रतिष्ठित करें. लेकिन पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं हमेशा बेड़ियों में जकड़ी रही हैं. घर का चूल्हा चौका और परिवार के बीच इस तरह फंसी रही कि वह अपने लिए कुछ सोच ही नहीं सकती. लेकिन अब धीरे-धीरे समय बदल रहा है. हजारीबाग में कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के तत्वाधान में संचालित जैस्मिन के डेमोटांड़ प्रशिक्षण केंद्र में बोकारो और धनबाद जिले की 46 महिलाएं उन्नत खेती के साथ-साथ ट्रैक्टर चलाने का प्रशिक्षण ले रही हैं. कभी ये ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं घर पर रहा करती थी और अपने हर आवश्यकता के लिए अपने परिवार के मुखिया पर निर्भर रहती थी. लेकिन आज ये महिलाएं ऊंची उड़ान के लिए तैयार हैं. पिछले 5 दिनों से महिलाएं ट्रैक्टर चलाना सीख रही हैं. इसके साथ-साथ जैविक खेती, बिना मिट्टी के नर्सरी निर्माण, फूल की खेती, पशुपालन के तरह बत्तख पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन से लेकर जैविक खाद बनाने का भी प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है. लेकिन सबसे अधिक महिलाएं ट्रैक्टर चलाने को लेकर उत्साहित हैं.
हजारीबाग में ट्रैक्टर चलाने की ट्रेनिंग परिवार में करेंगी भागीदारी सुनिश्चितमहिलाएं कहती है कि वे ट्रैक्टर चलाना इसलिए सीख रही हैं क्योंकि वे चाहती हैं कि अपनी भागीदारी परिवार में सुनिश्चित कर सकें. उनके पति या फिर घर के मुखिया बाहर जाते हैं तो उनके खेत परती रह जाते हैं. बिना जुताई के खेती भी नहीं हो सकती. ऐसे में उन लोगों ने सोचा क्यों न ट्रैक्टर की ट्रेनिंग ली जाए. उनका कहना है कि कभी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ट्रैक्टर चला पाएंगे, लेकिन आज ट्रैक्टर चलाकर मजा भी आ रहा है और वे उत्साहित भी हैं. उनका कहना है कि जब वे गांव जाएंगी और गांव के पुरुष उन्हें हैरानी से ट्रैक्टर चलाते देखेंगे तो और भी अधिक गर्व महसूस होगा.
बोकारो और धनबाद से आई महिलाएं
महिलाओं में सीखने की क्षमता अधिक
ट्रैक्टर ट्रेनिंग देने वाले गुलशन कुमार बताते हैं कि महिलाओं में सीखने की क्षमता अधिक होती है. उन्होंने जो बताया वह इन्होंने अच्छे से जेहन में उतार लिया और आज बहुत ही पूर्ति से ट्रैक्टर चला रहीं हैं. सिर्फ ट्रैक्टर ही नहीं चला रही है बल्कि इसके अलावा उन लोगों को खेती की कुछ जानकारी दी गई है. उसको भी इन्होंने समझा और प्रैक्टिकल कर दिखाया. ऐसे में वे उम्मीद करते हैं कि जो ट्रेनिंग दी गई हैं वह गांव में जाकर धरातल पर उतारेंगी.
खेती की भी दी जा रही जानकारी
वहीं, जैस्मिन के डिप्टी सीईओ राजेंद्र किशोर कहते हैं कि उनके संस्थान में कई तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. लेकिन इस बार ट्रैक्टर की जो ट्रेनिंग दी गई है इसमें महिलाएं काफी उत्साहित हैं. 5 दिनों की इस प्रशिक्षण में ग्रामीण महिलाओं को अन्य कार्य के साथ-साथ हम लोगों ने खेती की भी जानकारी दी. उनका कहना है कि महिलाओं में सबसे अधिक उमंग ट्रैक्टर चलाने को लेकर रहा. सिर्फ ट्रैक्टर चलाने ही नहीं बल्कि उसके पार्ट्स के बारे में भी जानकारी दी गई है. ऐसे में उम्मीद हैं कि ये सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं इस प्रशिक्षण का लाभ उठा पाएंगी.