हजारीबागः आदिवासी समाज के विकास को लेकर झारखंड राज्य का गठन किया गया. राज्य गठन के 20 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी भी समाज मुख्यधारा में जुड़ा नहीं है. सरकार हर मंच से ही कहती है कि अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजना पहुंचाना, यह पहली जिम्मेदारी है, लेकिन जब आदिवासी समाज के लोग को एक पुल भी मुहैया न हो तो आप क्या कहेंगे. ऐसा ही कुछ नजारा हजारीबाग के टाटी झरिया प्रखंड के हरदिया गांव की है, जहां न तो पक्की सड़क है और न ही नदी पार करने के लिए पुल है. इसकी वजह से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
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विकास के नाम पर सिर्फ एक स्कूल
घनघोर जंगल के बीच स्थित इस गांव में सरकारी तंत्र शायद ही कभी पहुंचा होगा. विकास के नाम पर गांव में एक स्कूल है, जहां शिक्षक हमेशा आते हैं, लेकिन लॉकडाउन होने के कारण फिलहाल स्कूल बंद हैं. वहीं, गांव के लोग शहर आने के लिए नदी पार किया करते थे. उसके बाद 7 किलोमीटर घनघोर जंगल में पैदल चलने के बाद प्रखंड मुख्यालय के लिए गाड़ी से पहुंचते है. ऐसे में यहां के स्थानीय पत्रकार भी कहते हैं कि हम लोग को कई बार ग्रामीणों ने कहा कि सड़क निर्माण के लिए मदद करें. हम लोगों ने भी प्रशासन को आवेदन दिया, लेकिन आवेदन पर सुनवाई नहीं हुई.
खटिया ही बनती है एंबुलेंस
बरसात के दिनों में ग्रामीणों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था. ऐसे में ग्रामीणों ने विचार किया कि क्यों न खुद से ही पुल बना दिया जाए. ऐसे में आदिवासी समाज के युवाओं ने सच्ची लगन और मेहनत से लकड़ी का पुल बना दिया. अब इस लकड़ी के पुल से ग्रामीण अपने गांव से शहर और शहर से गांव पहुंच जाते हैं. ग्रामीण कहते भी हैं कि पहले बरसात के दिनों में जब पानी नदी में बढ़ जाता था तो हम लोगों को रात भर नदी के इस पार इंतजार करना पड़ता था. जब पानी कम होता तब गांव जाते थे. साथ ही उनका यह भी कहना है कि अगर गांव में कोई बीमार पड़ जाए तो खटिया ही एंबुलेंस बन जाती है.
सरकार ले मामले का संज्ञान
सरकार ने आवेदनों के बाद भी इन पर ध्यान नहीं दिया, जिसकी वजह से ये अपनी मूलभूत सुविधा से कोसों दूर है. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि जिस उद्देश्य से राज्य का गठन हुआ था वह अब तक पूरा नहीं हो पाया. सरकरा को जल्द ही मामलें में संज्ञान लेना चाहिए.