हजारीबाग:दीपावली के मौके पर मिट्टी के घरौंदा का विशेष महत्व है, लेकिन धीरे-धीरे ये भी लुप्त होता जा रहा है और उसकी जगह पर अब लकड़ी और थर्मोकोल का बना रेडीमेड घरौंदा जगह लेता जा रहा है. जो हमें संस्कृति से भी दूर करता जा रहा है.
विलुप्त हो गया मिट्टी का बना पारंपारिक घरौंदा, पुरानी संस्कृति से लोग हो रहे हैं दूर
हजारीबाग में पहले जहां घर-घर में मिट्टी का घरौंदा बना करता था. आज लकड़ी, प्लाई बोर्ड, थर्मोकोल और कांच के घरौंदे बाजार में बिक रहे हैं, जिससे पुरानी संस्कृति में दिन-प्रतिदिन बदलाव हो रहा है.
दीपावली के मौके पर मिट्टी के घरौंदा बनाने की होड़ लगी रहती थी. बच्चे साल भर दीपावली का इंतजार करते थे कि अपने घरों में घरौंदा बनाएंगे और उसे सजाएंगे, लेकिन अब इस भागमभाग जिंदगी में बच्चे भी मिट्टी के घरौंदे से दूर होते जा रहे हैं. उनकी जगह अब रेडीमेड घरौंदे जगह ले रहा है. दिवाली के ठीक पहले बच्चे खेतों से केवाल और चिकनी मिट्टी थैले में लाते थे. मिट्टी को फुलाने के बाद ईट, बांस के टुकड़ों से घरौंदे बनाते थे. घरौंदा को आकर्षक बनाने के लिए पुताई भी की जाती थी. समय के साथ यह परंपरा दुर होती जा रही है. बदलते समय के साथ रेडीमेड घरौंदा की ओर लोग आकर्षित होते जा रहे हैं.
लक्ष्मी पूजा के समय घरौंदा का होता है विशेष महत्व
हजारीबाग में पहले जहां मिट्टी का घरौंदा बना करता था. आज लकड़ी, प्लाई बोर्ड, थर्मोकोल और कांच के घरौंदे बाजार में बिक रहे हैं. हजारीबाग शहर में महिलाएं और बच्चियां घरौंदे लेने पहुंच भी रही हैं. उनका कहना है कि अब उनलोगों के पास ज्यादा समय नहीं है. इसलिए रेडीमेड घरौंदा खरीद रहे हैं. एक महिला बताती हैं कि घरौंदा घर की बेटियां बनाती हैं. लक्ष्मी पूजा के समय घरौंदा का विशेष महत्व है. आज घड़ौदा का स्वरूप भले ही बदल गया हो, लेकिन परंपरा जीवित है.