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हजारीबाग की संस्कृति है सोहराई कला, महिलाओं की बनाई पेंटिंग की होती है देश-विदेश में मांग - झारखंड की सोहराई कला

झारखंड अपने रीच आर्ट फॉर्म और ट्रैवल पेंटिंग के लिए विश्व प्रसिद्ध है. पर अब यहां के आर्ट फॉर्म विलुप्त भी होते जा रहे हैं. झारखंड में 15 से ज्यादा ट्रैवल प्रिंटिंग फॉर्म है, पर आज की युवा इन से अनजान हैं. यह कला अब किताबों और इतिहास तक ही सीमित रह गई है. सोहराई पेंटिंग झारखंड की खास कला है, जिसमें जल, जंगल और जमीन का तालमेल में नजर आता है.

हजारीबाग की संस्कृति है सोहराई कला, महिलाओं की बनाई पेंटिंग की होती है देश-विदेश में मांग
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Published : Jan 15, 2020, 12:39 PM IST

Updated : Jan 15, 2020, 2:25 PM IST

हजारीबाग: झारखंड की संस्कृति में सोहराई कला का महत्व सदियों से रहा है. 3000 से लेकर 4000 वर्ष पहले से यह संस्कृति समाज का हिस्सा रही है. बदलते समय और आधुनिकता के कारण कला उपेक्षित होता चला गया और इसके अस्तित्व पर भी संकट बनकर अखाड़ा हुआ. सोहराई कला आदिवासी बहुल क्षेत्रों में देखने को मिलता है, जहां दूधी मिट्टी से सजे घरों की दीवारों पर महिलाओं के हाथों के हुनर देखने को मिलता है, जो कलाकृति अपने घरों के दीवार पर उकेरती है.

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कहा जाता है कि बादम राजाओं ने इस कला को काफी प्रोत्साहित किया था, जिसके वजह से यह कला गुफाओं से निकलकर घरों की दीवार में अपनी जगह बना पाई. घर की महिलाएं पर्व-त्यौहार और शादी में इसे अपने घरों में बनाती हैं, लेकिन आज हजारीबाग में इस सोहराई कला को संरक्षित करने की बिड़ा उठाया गया है.

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सोहराई सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक

इस कला को देश और विदेश में भी पहचान दिलाने की काम पद्मश्री बुलु इमाम ने किया है. उनका कहना है कि सोहराय पर्व सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है. यह पर्व पालतू पशु और मानवता के बीच गहरा प्रेम स्थापित करता है. इस कला को किसी के घर विवाह के बाद वंश वृद्धि के लिए तथा दीपावली के बाद फसल वृद्धि के लिए इस्तेमाल करते हैं. बुलु इमाम ने कहा कि मान्यता है कि जिस घर की दीवार पर कोहबर और सोहराई की पेंटिंग होती है. उनके घर में वंश और फसल वृद्धि होती रहती है. इमाम ने कहा कि फसल वृद्धि के लिए यह लोग प्राकृतिक वस्तुओं के चित्र बनाते हैं. वहीं वंश वृद्धि के लिए दिल, राजा रानी का चित्र बनाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि इस कला की सबसे खास बात यह है कि कलाकार पूरी दीवार पर एक ही बार में चित्र उकेर देते हैं. इस पेंटिंग को पूर्ण रूप से हजारीबाग कि इसको गुफा के रॉक पेंटिंग से तुलना नहीं किया जा सकता है. रॉक पेंटिंग की कहानी कुछ और है और सोहराय की कुछ और दोनों में समानता थोड़ी जरूर है. बुलु का यह भी कहना है कि यह कला प्रकृति और मानव को एक दूसरे से जोड़ता है, जो प्राचीन काल में भी पूर्वजों ने अपने पेंटिंग से बताया है.

सोहराई कला

हजारीबाग है कला की जननी

हजारीबाग जो सोहराई कला की जननी कहा जाता है, वहां के दीवारों पर सोहराई कला देखने को मिलती है. सरकारी हो या फिर गैर सरकारी भवन लोग अपने घरों को इस कला से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. जिला प्रशासन की ओर से भी कई कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. इसी कड़ी में हजारीबाग के अर्बन हाट में महिलाओं का समूह सोहराई कला करती हैं, जो पहले अपने घर के दीवारों पर किया करती थी. अब वह कागज और कपड़े पर करती हैं और इसे बेच कर अपना जीवन यापन भी कर रही है. उनका कहना है कि उन्होंने यह कला अपनी मां से सीखा है और मां ने अपनी मां से. एक परंपरा के अनुसार उनलोगों ने इस कला को अपने जहन मे उतार लिया है. अब वे कागज पर कलाकृति उकेर कर दो पैसा कमा भी रही हैं. कहा जाए तो महिलाएं आर्थिक रूप से इस कला के जरिए सबल भी हो रही है.

सोहराई कला

पेंटिंग की है हर जगह मांग

अर्बन हाट के पदाधिकारी भी कहते हैं कि देश के कोने कोने में इस कलाकृति की मांग हो रही है. यहां की महिलाएं पेंटिंग बनाकर बेच रही हैं और उन्हें पैसा भी मिल रहा है. उनका कहना है कि रांची से लेकर दिल्ली तक सोहराई पेंटिंग की मांग है. यह पेंटिंग प्रकृति से मानव को जोड़ रहा है. यहां की महिलाएं हजारीबाग का नाम पूरे देश में रोशन कर रही हैं.

Last Updated : Jan 15, 2020, 2:25 PM IST

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