हजारीबागः टेक्नोलॉजी के युग में चिट्ठी का दौर तो खत्म हो चुका है, लेकिन उस पर लगने वाले टिकट आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं. डाक टिकटों को संग्रह कर उन्हें सुरक्षित करना कई लोगों का शौक रहा है. कई लोग तो बचपन से ही इसके शौकीन रहे हैं. इसी शौक ने डाक टिकट की प्रासंगिकता बरकरार रखी है. बच्चों में खासतौर पर डाक टिकटों का संग्रह करना एक जुनून सा है. ऐसे ही एक छात्रा गुनगुन गुप्ता है जिसने क्लास 9वीं से टिकट संग्रह करना शुरू किया. आज उसके पास लगभग 5 हजार से अधिक डाक टिकट हैं.
गुनगुन गुप्ता बताती हैं कि एकबार पोस्ट ऑफिस में डाक टिकट का प्रदर्शन लगा. उस प्रदर्शनी से वह इतनी प्रभावित हुई कि उसके दिलों में भी टिकट संग्रह करने का जुनून आ गया. धीरे-धीरे उन्होंने टिकट संग्रह करना शुरू किया. इसे लेकर वह हजारों रुपए भी खर्च कर चुकी है. जहां भी टिकट बिकते हैं वहां से खरीद कर टिकट जमा करती. उसके पास आज विदेशों के भी टिकट है. वो कहती है कि डाक टिकट का संग्रहालय सिर्फ रोचकता के लिए नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति का भी परिचायक है. 2 देशों की संधि हो या फिर महात्मा गांधी की याद या फिर स्वच्छ भारत अभियान सबकी झलक डाक टिकट में दिखती है.