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हौसलों के सामने हार गई दिव्यांगता, पूरा गांव करता है जज्बे को सलाम - महिला दिवस विशेष

महिला शक्ति है, महिला आत्मसम्मान है, महिलाओं में इच्छा शक्ति भी है. जरूरत है महिलाओं में आत्मविश्वास लाने की. आपको मिलवाते हैं ऐसी महिलाओं से जिनके राह में दिव्यांगता भी रोड़ा नहीं लगा पाई. आज ये पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन कर उभर रही है.

Handicapped women are the source of inspiration from Hazaribag
समूह की महिलाएं

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Published : Mar 2, 2020, 11:16 AM IST

हौसलों के सामने हार गई दिव्यांगता, पूरा गांव करता है जज्बे को सलाम

हजारीबाग: जिला से 30 किलोमीटर दूर बसा कटकमसांडी प्रखंड के डाड़ पंचायत के गांव में दिव्यांगों का एक समूह है. जिसका नाम राष्ट्रीय दिव्यांग समूह रखा गया है, जो साल 2017 से सक्रिय है.

देखें महिला दिवस स्पेशल रिपोर्ट

आज ये अपनी दिव्यांगता को कोष नहीं रहे बल्कि राशन वितरण प्रणाली का बेहतर तरीके से संचालन कर अनूठा मिसाल पेश कर रहे हैं. इस समूह में कुल 11 सदस्य हैं. जिसमें दो महिला और 9 पुरुष है. अनीता देवी जो सुन नहीं सकती और अखिलेश्वरी देवी जिन्हें चलने में समस्या है, लेकिन ये दोनों महिला अब पूरे गांव के लिए ही मिसाल है.

सुबह अपने घरों में काम करती हैं और उसके बाद राशन दुकान चलाती हैं. पहले ये महिला समाज में तिरस्कृत हो रही थी, क्योंकि यह दिव्यांग थी. लेकिन उन्होंने दिव्यांगता को कभी कमजोरी नहीं समझा और मेहनत किया. मिलजुल कर राष्ट्रीय दिव्यांग समूह बनाया. इस समूह को प्रशासन की ओर से राशन दुकान चलाने की अनुमति दी गई. अब यह महिला राशन वितरण प्रणाली को बेहतर ढंग से चला रही हैं. उन 2 महिलाओं का भी कहना है कि पहले हमें कोई अच्छे से बात भी नहीं करता था, लेकिन हम लोगों ने मेहनत से काम किया और आज हमें पूरा गांव में सम्मान की नजर से देखाता है.

समूह के सदस्य

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इसी समूह में अन्य सदस्य भी अनीता देवी और तिलेश्वरी देवी के काम की प्रशंसा करते हैं. उनका कहना है कि उन्होंने सोचा भी नहीं था कि 2 महिलाएं इतनी अच्छी तरह से काम करेंगी. आज इनका नाम पूरे पंचायत में लिया जा रहा है.

वहीं, गांव की वार्ड पार्षद भी इन महिलाओं के उत्साह को देखकर काफी खुश हैं. उनका कहना भी है कि ये महिला सिर्फ गांव के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए आदर्श साबित हो रही हैं. जो दूसरी महिलाओं को भी सीख दे रही हैं. गांव के पुरुष भी कहते हैं कि यह महिला से पुरुष समाज को भी सीख लेने की जरूरत है.

यह समूह आपस में ₹50 महीना जमा करता है और किसी को पैसे की कमी होती है तो वह कर्ज के रूप में पैसा लेता है. बाद में पैसा समूह को वापस कर देता है. ऐसे में समूह खुद को स्वावलंबी भी आज के समय में देख रहा है.

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इन महिलाओं ने साबित किया है कि महिला कभी अबला नहीं होती सिर्फ जरूरत होती है आत्मविश्वास की, जब आत्मविश्वास जागता है तो महिला वो कर दिखाती है जो पूरे समाज के लिए आदर्श साबित होता है.

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