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ऐतिहासिक है हजारीबाग में रामनवमी का जुलूस, आज भी विद्यमान है 80 साल पुरानी मूर्ति - Ram Navami in Jharkhand

हजारीबाग में रामनवमी जुलूस का अपना इतिहास है. 100 साल से चली आ रही परंपरा आज भी लोग शिद्दत के साथ निभाते हैं. जिला में 80 साल पुरानी मूर्ति आज भी है, जिसे एक समय में रामनवमी के जुलूस में निकाला गया था. आठ दशक पुरानी बजरंगबली की मूर्ति का क्या है इतिहास, आप भी जानिए ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से.

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हजारीबाग में रामनवमी

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Published : Apr 10, 2022, 3:21 PM IST

Updated : Apr 10, 2022, 3:41 PM IST

हजारीबागः यह एक ऐतिहासिक जिला है. पदमा राजा से लेकर रामनवमी तक का अपना इतिहास है. हजारीबाग में रामनवमी जुलूस पिछले 100 साल से निकला जा रहा है. 100 साल पहले हजारीबाग के ही स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर ने इस जुलूस की शुरुआत की थी, उस वक्त मूर्ति निकालने की भी प्रथा थी. बताया जाता है कि पहले कपड़ा का मूर्ति बनाई जाता था और उसके बाद धीरे-धीरे समय बदला चला गया और मूर्ति का स्वरूप भी बदला. आज आपको ईटीवी भारत लगभग 80 साल पुराना वह मूर्ति दिखाने जा रहा है जो रामनवमी के दौरान पूरे जिले में घुमाया जाता था.

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हजारीबाग का रामनवमी से विशेष लगाव रहा है, यहां जन्मे हर एक व्यक्ति इस पर्व से एक अलग नाता रहा है. 100 साल पहले जब रामनवमी में जुलूस की शुरुआत हजारीबाग से की गई थी उस वक्त झंडा निकालने की परंपरा थी, समय बदला और मूर्ति ने भी जगह ली. बताया जाता है कि पहले एक लकड़ी की मूर्ति बनाई गई थी, जो पूरे हजारीबाग में रामनवमी के दिन दर्शन के लिए निकाला जाता था. इसके बाद में तांबा और कांसा की मूर्ति भी बनाई गयी.

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हजारीबाग के जामा मस्जिद रोड निवासी एक परिवार के पास लगभग 80 साल पुरानी मूर्ति है, जो उस वक्त रामनवमी जुलूस के दौरान निकाला जाता था. आज यह परिवार अपने घर पर ही इस मूर्ति की पूजा करता है. जामा मस्जिद रोड नाला के पास रहने वाले अनूप कुमार बताते हैं कि हमारे घर में दो मूर्ति है, एक लगभग 80 साल और एक 50 साल पुराना है. हमारे पूर्वज स्वर्गीय विष्णु प्रसाद कसेरा, स्वर्गीय रामचंद्र प्रसाद कसेरा, स्वर्गीय मथुरा प्रसाद कसेरा, स्वर्गीय यदुनंदन प्रसाद कसेरा ने बनारस यह मूर्ति मंगाई थी. यह मूर्ति रामनवमी के दिन रथ पर सवार होकर जुलूस में निकला जाता था.

इस मूर्ति से हजारीबागवासियों का विशेष लगाव भी रहता था. जहां भी रथ रुकता वहां पूजा अर्चना किया जाता था. इसके बाद लोगों का जुड़ाव इस पर्व से होता चला गया. ऐसे में एक और मूर्ति हमारे पूर्वजों ने ही अपने हाथों से बनाया था, जो छोटे आकार की बजरंगबली की मूर्ति है. विकास कुमार बताते हैं कि समय बदलने के साथ-साथ मूर्ति का स्वरूप भी बदला. पहले हजारीबाग में पांच मूर्तियां हुआ करती थीं. जिसमें एक लकड़ी, एक चांदी और दो हमारे घर की मूर्तियां हैं. इनमें से सबसे पुरानी मूर्ति उनके ही परिवार के द्वारा मंगाया गया था, जो जुलूस में निकाला जाता था. लेकिन धीरे-धीरे अखाड़ा परिवर्तित हुआ, नए लोग अखाड़ा से जुड़े मूर्ति का स्वरूप मिट्टी हो गया है.

Last Updated : Apr 10, 2022, 3:41 PM IST

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