गुमला: आजादी के सात दशक बाद भी गुमला के चैनपुर प्रखंड के सुदूरवर्ती इलाके में रहने वाले आदिम जनजाति और आदिवासी परिवार आज भी गांव में विकास की बाट जोह रहे हैं. गांव तक जाने के लिए न तो सड़क है और न ही पुल-पुलिया. ऐसे में बरसात के मौसम में स्कूली बच्चों की पढ़ाई बाधित हो जाती है, तो वहीं मरीजों को समय पर चिकित्सा सुविधा भी मुहैया नहीं कराई जा सकती.
चैनपुर प्रखंड की मालम पंचायत में पड़ने वाले कतारीकोना, कोल्हुकोना, सनइटांगर, उमदरा, गम्हरिया, झलका, सीपरी, गढ़ाटोली, तिलवरीपाठ, गटीदारा आदि गांव घोर नक्सल प्रभावित इलाके में आते हैं. यहां के ग्रामीण आज भी गांव से प्रखंड मुख्यालय तक जाने के लिए पगडंडी का ही सहारा लेते हैं. गांव के लोग पगडंडी के रास्ते सबसे पहले अपनी पंचायत मुख्यालय में आते हैं. इसके बाद यहां से जिला मुख्यालय पहुंच सकते हैं.
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ग्रामीणों को पंचायत मुख्यालय पहुंचने से पहले कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव तक सड़क नहीं होने की वजह से ग्रामीण पगडंडी के रास्ते ही पंचायत मुख्यालय पहुंचते हैं. छात्रों को नदी-नालों पर पुल-पुलिया नहीं होने से जान जोखिम में डालकर जाना पड़ता है. कई ऐसी जगह हैं, जहां ग्रामीणों ने लकड़ी के जरिए पुल बनाकर नदी-नालों को पार करने का तरीका निकाला. हालांकि, यह जानलेवा साबित हो सकता है.
पुल में न रेलिंग और न मजबूती
ग्रामीणों की ओर से बनाए गए इस लकड़ी के पुल में न तो रेलिंग है और न ही ज्यादा मजबूती. ऐसे में इस पुल को पार करने से पहले लोगों को अपनी जान हथेली पर रखनी पड़ती है. आदिम जनजाति बाहुल्य कोल्हुकोना गांव के छोटे-छोटे बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र के जरिए पढ़ाया जाए, इसको लेकर गांव में आंगनबाड़ी केंद्र भी बनाया गया. मगर वो भी पिछले कई साल से अधूरा है. हालात यह है कि भवन अब जर्जर हो चुका है. इसके कई भाग टूटकर गिर रहे हैं.
ग्रामीण इलाकों में नहीं पहुंची विकास की किरण