गढ़वा: जिले के मेराल प्रखंड के भीमखाड़ गांव में लॉकडाउन की वजह से एक महिला की मौत हो गई. सीएम हेमंत सोरेन के ट्वीट के बाद प्रशासन और झामुमो नेताओं ने पीड़ित परिवार को तत्काल मदद दी है.
इसे कहते हैं गरीबी
इंसानियत को झकझोर देने वाली इस वीडियो को देखेंगे तो आपको समझ आएगा कि गरीबी क्या होती है. मिट्टी का ढहता हुआ पुराना घर, घर के ऊपर उजड़े छपड़, बिना दरवाजे का घर, न सोने के लिए खाट, न बिछाने के लिए चादर. इसी घर से निकलकर नरेश भुइयां हजारों किलोमीटर दूर तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद से 20 किलोमीटर दूर मियांपुर गांव में मजदूरी करने गया है.
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भोजन की व्यवस्था
पत्नी शांति देवी कमजोरी जनित बीमारी से पिछले एक साल से पीड़ित थी. जब पत्नी का रोग बढ़ने लगा तब नरेश अपने तीनों बच्चों और पत्नी को दोनों आंख से अंधी अपनी बूढ़ी मां के हवाले कर दूसरे राज्य चला गया, ताकि कुछ पैसे कमाकर पत्नी का इलाज करा सके. 25 मार्च को वह घर आने वाला था, लेकिन उसी दिन से देश में लॉकडाउन हो गया और वह वहीं फंस गया. जैसे-जैसे दिन गुजरता जा रहा था नरेश की पत्नी की हालत बिगड़ती जा रही थी. घर में भोजन की व्यवस्था पीडीएस से मिले अनाज से किसी तरह हो रही थी.
सीएम से मदद की गुहार
बूढ़ी मां का विधवा पेंशन भी तकनीकी कारण से बंद हो गया था. ऊपर से लॉकडाउन के कारण वाहन सुविधा भी नहीं थी, जिस वजह से मजबूर नरेश की पत्नी मौत के आगोश में समा गई. उसे तो पति के हाथों मुखग्नि भी नहीं मिली. तेलंगाना में फंसे नरेश को जब पत्नी की मौत की खबर मिली तो उसने भी खाना पीना छोड़ दिया और गमगीन हो गया. मामले में गढ़वा विधायक और झारखंड के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने ट्विटर पर सीएम से पीड़ित परिवार को मदद करने की गुहार लगाई थी.
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इंदिरा आवास की भी नहीं है सुविधा
सीएम ने गढ़वा डीसी को ट्वीट कर त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया था. आदेश के बाद जिले के एक पदाधिकारी ने पीड़ित परिवार को 6 हजार, मेराल बीडीओ ने 1500, मेराल प्रखंड अध्यक्ष दशरथ प्रसाद ने 2500 रुपये नगद और 50 किलो चावल उपलब्ध कराया. वहीं, गांव के मुखिया ने भी 50 किलो आटा उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया. भीमखाड़ गांव में बसे नरेश भुइयां सहित कई लोगों को न तो इंदिरा आवास की सुविधा मिली है और न ही उनके पास अपना एक इंच जमीन ही है.
वन विभाग की जमीन पर बसा है गांव
पूरा भीमखाड़ गांव वन विभाग की जमीन पर बसा हुआ है. इस गांव के लोग मूलतः जिले के मझिआंव प्रखंड के करुइ गांव के भगोडीह टोला के मूल निवासी हैं. तत्कालीन बिहार में नक्सल आंदोलन जब चरम पर था तब 1994 में इस टोले के 9 लोगों की हत्या नक्सली होने के आरोप में कर दी गयी थी. उसके बाद उस टोले के शेष लोग भागकर मेराल प्रखंड के बाना गांव के समीप वन विभाग की जमीन पर अपना आशियाना डाल लिए थे, जिसका नाम भीमखाड़ रखा. अपना जमीन नहीं होने के कारण इन्हें सरकारी आवास की सुविधा नहीं मिल रही है.