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विकास भारती आएंगे राष्ट्रपति, पद्मश्री अशोक भगत ने ईटीवी भारत से साझा की संघर्ष की दास्तां

विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत अपनी संघर्ष की दास्तां को ईटीवी भारत के साथ साझा किया है. इस दौरान उन्होंने अपनी जीवन की कई उतार-चढ़ाव के बारे में बताया.

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रामनाथ कोविंद और पद्मश्री अशोक भगत

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Published : Feb 28, 2020, 9:08 PM IST

गुमला: जिले के अति नक्सल प्रभावित इलाके विशुनपुर प्रखंड मुख्यालय में संचालित गैर सरकारी संस्था विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत पिछले 40 वर्षों से यहां के गरीब जनजाति और आदिम जनजाति के विकास के लिए काम कर रहे हैं. इसके साथ ही उस इलाके में शिक्षा, बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने के लिए भी लगातार काम कर रहे हैं. उनके इसी काम को देखने के लिए 29 फरवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद विशुनपुरा आ रहे हैं. विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत अपनी संघर्ष की दास्तां को ईटीवी भारत के साथ साझा किया है.

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पद्मश्री अशोक भगत की ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीतविकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि जेपी आंदोलन के बाद अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर सोचा कि देश के दूरस्थ इलाकों में असंतोष और असमानता जगह-जगह फैली हुई है. साथ ही उन क्षेत्रों में लोगों का विकास नहीं होना, सरकारों की ओर से विकास योजनाएं चलाकर कोशिश करने के बावजूद कामयाबी नहीं मिलने के कारण इलाका पिछड़ा रह गया था. यही वजह थी कि उस समय नॉर्थ-ईस्ट के लोगों ने कहा था कि हम खुद को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं. तो ऐसे में उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर इन इलाकों में साइंस टेक्नोलॉजी के जरिए 1982 में एक सपना देखा और 1983 में विकास भारती का गठन कर काम करना शुरू किया.
पद्मश्री अशोक भगत से बातचीत करते संवाददाता नरेश कुमार

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'लोगों का विश्वास जीता'

अशोक भगत ने कहा कि उस समय इन इलाकों में बड़ा चैलेंज था और वह चैलेंज था कि यहां के लोगों का विश्वास जितना. उन्होंने कहा कि बगैर किसी से झंझट करते हुए खुद को कई परिस्थितियों का सामना करते हुए सहना पड़ा था. अपमान इनकार जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि धीरे-धीरे गांधीवादी तरीके से उन्होंने लोगों का विश्वास जीता. हमारे काम करने का तरीका से देश के कई राज्य सरकारों ने जाने अनजाने एडॉप्ट किया.

पद्मश्री अशोक भगत से बातचीत करते संवाददाता नरेश कुमार

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'शिक्षा का जलाया था अलख'
उन्होंने बताया कि विकास भारती ने विशुनपुर के इलाकों में गरीब बच्चों के पढ़ाई के संबंध में अपने साथियों के साथ गांव में जाकर बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजने के लिए जागरूक कर रहे थे. उस समय ग्रामीण कहते थे कि वे अपने बच्चों को स्कूल क्यों भेजें. ग्रामीणों कहते थे अगर वे लड़कों को स्कूल भेजेंगे तो वह बिगड़ जाएंगे, पढ़ने से कोई फायदा नहीं होगा. ऐसे में ग्रामीणों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए मोटिवेट करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. धीरे-धीरे गांव में स्कूल खोला गया. अब वही स्कूल एकलव्य का रूप पूरे देश में लिए हए है. अब तो माहौल भी बदल गया है ग्रामीण भी चाहते हैं कि उनके बच्चों को अच्छे स्कूलों में शिक्षा मिले. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि आज भी ग्रामीण इलाकों में बेहतर पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है. मगर हम अपनी संस्था की ओर से ग्रामीण क्षेत्र के जो बच्चे पढ़ना चाहते हैं और उनके अभिभावक गरीबी के कारण अपने बच्चे को नहीं पढ़ा पाते हैं, तो ऐसे में वे इस इलाके के करीब दो से तीन हजार बच्चों को मुफ्त में स्कूली शिक्षा दे रहे हैं और उन्हें रहने की व्यवस्था दे रहे हैं.

विकास भारती की ओर से दिया जा रहा है बेरोजगारों को रोजगार परक प्रशिक्षण
पद्मश्री ने कहा कि विकास भारती में बेरोजगार नौजवानों को रोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वह प्रशिक्षण लेकर अच्छी आमदनी करें और अपने परिवार का भरण पोषण करें. उन्होंने कहा कि 1985 से वे यह काम करना शुरू किया. हमने तो सरकार और राष्ट्रपति के समक्ष भी कहा है कि सरकार सभी को नौकरी नहीं दे सकती, लेकिन आज भी कई बेरोजगार सरकार से नौकरी दिए जाने को लेकर आश्रम में हैं. ऐसे में हम युवाओं को प्रशिक्षण देकर भी रोजगार मुहैया करा सकते हैं. उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरी मिलना सभी के लिए संभव नहीं है. ऐसे में जो जहां जल, जंगल, जमीन है वे अपने स्तर पर वहीं रोजगार की व्यवस्था करें और एक सफल रोजगार परक व्यक्ति बनें. उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में उन्होंने देखा था कि विशुनपुर के इलाकों में कारपेंटर भी लोहरदगा जिला से आते थे, तो ऐसे में विशुनपुर के युवाओं को इस क्षेत्र में प्रशिक्षण दिया और आज यहीं के युवा कारपेंटर का काम कर रहे हैं.

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'आदिम जनजातियों की तरह रहन-सहन के लिए अपनाया था धोती'
पद्मश्री अशोक भगत ने बताया कि उस जमाने में वे लोग सरकार से और जमींदारों से संघर्ष कर रहे थे. जिनके साथ मिलकर वे लड़ रहे थे, उन्हें भड़काया जाता था कि पता नहीं जो आपके साथ संघर्ष कर रहे हैं वह आपका कितना साथ देंगे. आपके साथ कितने दिनों तक रहेंगे तो ऐसे में उन्हें लोगों को विश्वास दिलाना था कि वे उनका साथ कभी नहीं छोड़ेंगे और खुद को भी स्थापित करना था. अशोक भगत ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में एक कमिटमेंट किया कि उन्हें यहीं जिंदगी गुजारनी है और इन्हीं लोगों के बीच में रहकर पूरी जिंदगी गुजारनी है. उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया और कोयल नदी के किनारे रंगनाथ मंदिर के पास अपना वस्त्र त्यागते हुए आदिम जनजातियों के पहने जाने वाले पहनावे को अपनाया.


पद्मश्री से सम्मानित होने पर क्या कहा
पद्मश्री से सम्मानित होने पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि पद्मश्री का सम्मान मिलने या नहीं मिलने से वे काम नहीं करते. उन्हें शुरू से देशभक्ति की प्रेरणा रही है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला था तो उन्होंने कहा था कि जो जंगलों में रहकर बेहतर काम कर रहे हैं उन्हें इस तरह की उपाधि से नवाजा जाना चाहिए. यही कारण है कि उनके कार्यों को देखते हुए उन्हें पद्मश्री का सम्मान दिया गया. लेकिन अब जिस तरह से गरीब तबके के लोगों को जिनके पांव में चप्पल नहीं हैं, जो समाज के लिए बेहतर काम कर रहे हैं उन्हें पद्मश्री से नवाजा जा रहा है तो काफी अच्छा लगता है कि देश के प्रधानमंत्री ऐसे लोगों को चिन्हित कर उन्हें पद्मश्री से नवाज रहे हैं.

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'राष्ट्रपति ने प्रस्ताव पर सहमति जताई थी'
वहीं, विशुनपुर जैसे छोटे जगह पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आगमन पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने यह सुन रखा था और वह जानते थे कि हम यूपी के रहने वाले हैं और गुमला जैसे दूरस्थ इलाके में रहकर यहां आम जनता की सेवा कर रहे हैं. ऐसे भी उनके अंदर एक खूबी है कि वह साल में एक बार ऐसी जगह में जाते हैं जहां बहुत गरीब तबके के लोग रहते हैं. चाहे वह लेह लद्दाख का क्षेत्र हो या अंडमान निकोबार का क्षेत्र हो. तो ऐसे में उनसे आग्रह किया था कि विशुनपुर भी एक गरीब इलाका है. आप एक बार यहां जरूर आएं, तो उन्होंने इस प्रस्ताव पर सहमति जताई और फिर वह यहां आ रहे हैं.

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