गोड्डा: विजयदशमी की खबर आदिवासी समाज को मिलते ही वो झूमना शुरू कर देते हैं. आदिवासी समाज के लोगों को अपने इष्ट और पुरखा राजा महिषासुर के मरने की खबर मिलते ही वो अपने परंपरागत लिबास में अस्त्र-शस्त्र और वाद्य यंत्र के साथ मां दुर्गा के दरबार पहुंचते हैं और पूछते हैं कि बोलो बोलो मेरा महिषा कहां है, उसे कहां छुपाया है, उसे क्यों छल से मारा है. संथाल के आदिवासियों की ये एक अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है.
आदिवासी समुदाय की अनूठी परंपरा
विजयदशमी के मौके पर गोड्डा के ग्रामीण क्षेत्रों के पूजा पंडालों में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज पहुंचे और अपने परंपरागत तरीके से भाव प्रकट किए. आदिवासी समुदाय के लोगों ने पूजा पंडालों में पहुंचकर सौहार्द और भाईचारे के अनूठा संगम का नमूना प्रस्तुत किया. दुर्गापूजा में वैसे तो शक्ति की देवी मां दुर्गा की पूजा होती है, लेकिन इसी दौरान आदिवासी समाज अपने इष्ट महिषासुर की तालाश में पहुंचते हैं. वो आम तौर पर दशमी के मेले में झुंड के झुंड आते हैं और पूछते हैं कि बोलो बोलो मेरा महिषा कहां है.