गोड्डाः जिला में बसंतराय ब्लॉक के एक गांव की शिल्पकारी की मांग देश के साथ विदेशों में भी हो रही है. चाहे वो पुलिस की वर्दी हो या फिर सेना की वर्दी या फिर अन्य सरकारी लोगो, सारी नक्काशी और कारीगरी छोटे से गांव रेसंबा में होती है. अब इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी.
गोड्डा के बसंतराय प्रखंड के रेसंबा गांव में कुछ शिल्पी परिवार ने बैज और एम्ब्रॉइडरी बनाने के कला सीखी है. अब उनका परिवार और कुछ लोग अलग-अलग समूहों में काम कर रहे हैं. पांच दशक पहले कुछ लोगों ने ये कला सीखी और फिर अपने गांव में लोगों को सिखाया. आज इस तरह के शिल्पकार की संख्या आंकड़ों के लिहाज से 200 से ज्यादा पंजीकृत है. ये शिल्पी सेना, पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के बैज का आर्डर लेते हैं. इतना ही नहीं इनके पास विदेशों से भी आर्डर आ रहे हैं. शुरुआत में यह अपने स्तर से आर्डर के हिसाब से निर्मित सामान की आपूर्ति करते थे.
सरकार से मिला मदद का आश्वासन
इनकी शिल्प कला को ध्यान में रखते हुए मध्यम-लघु उद्योग मंत्रालय के माध्यम से प्रमोट करने का निर्णय लिया गया है. जिसके तहत 90 प्रतिशत सब्सिडी देते हुए आर्थिक मदद के साथ ही इन्हें तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाना है. इससे शिल्पियों को लगने लगा है कि उनके हुनर को एक बड़ी पहचान मिल पाएगी. इसे बढ़ावा देने का आश्वासन राज्य सरकार से भी मिला है.
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विदेशों से मिल रहे ऑर्डर
शिल्पियों को कई अलग-अलग देशों से जैसे जापान, अरब देश, जर्मनी जैसे देशों से बैज की एम्ब्रॉयडरी के भी आर्डर मिल रहे हैं. वो बताते है कि अभी उनकी कमाई कम है, अगर उनकी कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिले तो ना केवल क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलेगी बल्कि और उनकी कमाई भी बढ़ेगी. इस कार्य मे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग और उनकी घर की महिलाएं भी भाग ले रही हैं. यहां बैज के अलावा पर्स और लहंगा में भी कढ़ाई का काम बड़े ही करीने से होता है.