गिरिडीह का खुरचुट्टा दुर्गा मंदिर है कौमी एकता की मिसाल गिरीडीह:जिला के बेंगाबाद प्रखंड स्थित खुरचुट्टा दुर्गा मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. यहां अंग्रेजी शासन काल से ही लगभग दो सौ वर्ष पहले से दुर्गा पूजा होती आ रही है. जानकर बताते हैं कि खुरचुट्टा में मां जगदंबा की पूजा पहली बार टिकैत प्रथा के अनुसार स्थानीय निवासी रोहन सिंह ने की थी. कई वर्षों तक यह परंपरा चलती रही. खास बात यह है कि यहां मोहर्रम के दौरान ताजिया बैठाया जाता है.
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टिकैती प्रथा समाप्त होने के बाद यहां पूजा समिति का गठन किया गया और हर वर्ष समिति के द्वारा धूमधाम से दुर्गोत्सव मनाया जाता है. लोगों ने बताया कि इस दुर्गा मंदिर की शक्ति अपार है. इस मंदिर में श्रद्धालु मां जगदंबा से जो मन्नत मांगते हैं, वह मां के आशीर्वाद से पूरी होती है. दूर दराज के लोग मां के दरबार में आकर मन्नतें मांगते हैं और मन्नत पूर्ण होने पर भक्त चढ़ावा चढ़ाते हैं.
सोना चांदी का चढ़ता है चढ़ावा:पूजा समिति के सदस्य रेनुलाल चौरसिया बताते हैं कि खुरचुट्टा स्थित दुर्गा मंदिर में असीम शक्ति है. लाखों की संख्या में लोगों को मां की कृपा प्राप्त हुई है. मंदिर लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. हर वर्ष नवरात्रि के अवसर पर झारखंड एवं बिहार के अलग-अलग हिस्सों से लोग यहां आते हैं और मां जगदंबा के चरण में शीश झुकाकर आशीर्वाद लेते हैं. उन्होंने कहा कि मन्नतें पूर्ण होने पर श्रद्धालु यहां सोना चांदी के आभूषण समेत अन्य चीजाें को चढ़ावा के रूप में चढ़ाते हैं. मेला समिति की तरफ से दुर्गा पूजा के दौरान यहां चाक चौबंद व्यवस्था की जाती है. मेला के आयोजन को लेकर भव्य पंडाल एवं आकर्षक साज सज्जा की जाती है.
कौमी एकता की मिसाल:बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना से लेकर वर्तमान समय तक कौमी सद्भाव के साथ यहां मां की पूजा अर्चना होती आ रही है. सभी धर्म संप्रदाय के लोग दुर्गा पूजा एवं अन्य पर्व त्योहारों में हिस्सा लेते हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि दुर्गोत्सव के दौरान यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें हिन्दू-मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग अपनी भूमिका निभाते हैं.
मेले में दोनों संप्रदाय के लोगों की दुकानें सजती हैं और लोग अपना भरपूर सहयोग देते हैं. बताया गया कि दुर्गा पूजा के अलावे मोहर्रम के अवसर पर खुरचुट्टा दुर्गा मंदिर प्रांगण में ताजिया बैठाया जाता है. आस-पड़ोस के कई गांवों से मुस्लिम समाज के लोगों के साथ हिंदू समाज के लोग ताजिया लेकर यहां पहुंचते हैं और मोहर्रम के अखाड़ा के आयोजन में अपनी सहभागिता निभाते हैं. खुरचुट्टा का दुर्गा मंदिर कौमी एकता के मिसाल के रूप में स्थापित है. इसे सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता है.
क्या है इतिहास:बताया गया कि खुरचुट्टा में मां दुर्गा की पूजा अर्चना का शुभारंभ अस्थायी मंडप बना कर किया गया था. कुछ समय बाद यहां खपरैल मंडप बनाया गया और कुछ वर्षों तक इसी में पूजा अर्चना होती रही. कुछ वर्षों के बाद स्थानीय निवासी वृजनंदन यादव, महादेव तकोली, चुंडी सिंह, मनपुरण सिंह आदि ने लोगों के सहयोग से यहां मंदिर का निर्माण कराया. बाद के समय में गिरीडीह के रहने वाले मोहन चौरसिया ने दुर्गा मंदिर का नव निर्माण करवाया.
वर्तमान समय में यहां भव्य दुर्गा मंदिर स्थापित है और मंदिर की देखरेख का जिम्मा समिति के हाथों में है. बताया गया कि नवरात्रि के अवसर पर यहां पहली तिथि से बलि दी जाती है और नवमी तक यह सिलसिला चलता रहता रहता है. पूजा समिति के अध्यक्ष धीरेन सिंह, सचिव महेंद्र साव, उपाध्यक्ष देवेंद्र यादव, कोषाध्यक्ष बिनोद सिंह, रेनुलाल चौरसिया, नारायण सिंह, दिग्विजय सिंह, पंकज पांडेय, संदीप सिंह समेत पूजा समिति के अन्य सदस्यों की निगरानी में यहां हर वर्ष काफी धूमधाम से दुर्गोत्सव मनाया जाता है.