गिरिडीहःतपोभूमि पारसनाथ का जंगल कई तरह के जीव-जंतुओं का निवास है, लेकिन इसको अपनों की ही नजर लग गई है. कभी महुआ, आरु और चिहूर के लिए तो कभी सिगरेट के शौक से इसमें आग लग रही है. इससे 16 हजार 500 एकड़ क्षेत्र में फैले वन क्षेत्र के जीव जंतुओं के लुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है. यही नहीं यहां पाई जाने वाली बेशकीमती जड़ी-बूटियां और पेड़ पौधे भी खतरे में हैं. इस बीच इस जंगल का महत्व समझा है यहां के युवाओं की टोली ने और पारसनाथ मकर संक्रांति मेले से जुड़े ये युवा बन गए जंगल के रखवाले. पिछले 12 साल से अब जब भी जंगल में आग लगती है ये पहुंच जाते हैं जंगल की आग बुझाने.
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लोगों को जागरूक भी करते हैं युवाःपारसनाथ मकर संक्रांति मेला समिति से जुड़े युवा जंगल में लगी आग तो बुझाते ही हैं, ये लोगों को आग पर काबू पाने के लिए जागरूक कर रहे हैं. ये लोगों को जंगल में आग न लगाने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं. साथ ही जंगल के नफा-नुकसान भी बता रहे हैं. ये युवा ग्रामीणों को पर्यावरण संरक्षण की जरूरत भी समझा रहे हैं. पारसनाथ मकर संक्रांति मेला समिति के संयोजक मनोज कुमार अग्रवाल का कहना है कि जंगल में आग लगी कभी नहीं छोड़ना चाहिए, वर्ना ये पूरे पहाड़ पर फैल जाती है. बता दें कि कई लुप्तप्राय प्राणी पारसनाथ के जंगल में देखने को मिल जाते हैं, लेकिन आगजनी की घटनाओं से इनका जीवन खतरे में है.
आरु, महुआ और चिहूर के लिए लगाई जाती है आगः मकर संक्रांति मेला समिति के संयोजक मनोज कुमार का कहना है कि चैत्र माह से ही जंगलों में आग लगाने की घटनाएं होने लगती है. झारखंड के ज्यादातर इलाके में महुआ चुनने के लिए आग लगाई जाती है लेकिन पारसनाथ में आग लगाने के पीछे महुआ से ज्यादा आरु और चिहूर बड़ा कारण है. पारसनाथ मकर संक्रांति मेला समिति के संयोजक मनोज कुमार अग्रवाल ने बताया कि 2009 में उन्होंने समिति बनाई थी. तभी हमारे सामने पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा उठा तो हम लोगों ने इसके लिए पहल शुरू की. हमारी टीम में मुख्य रूप से 24 लोग और 100 से अधिक ग्रामीण जुड़े हैं. समिति से जुड़े लोग अब जंगल में आग की खबर के साथ ही मौके पर पहुंच जाते हैं और लोगों की मदद से आग बुझाते हैं.
पारसनाथ मकर संक्रांति मेला समिति चिहूर : मनोज ने बताया कि चिहूर सिक्के की तरह के आकार का फल है और पेड़ से जिस वक्त जमीन पर गिरता है पत्तों के बीच छिप जाता है. चिहूर को चुनने के लिए जब ग्रामीण आते हैं तो पत्ते में आग लगा देते हैं. चूंकि चिहूर का सेवन पेट के लिए काफी उत्तम माना जाता है. ऐसे में लोग इसे इकठ्ठा कर न सिर्फ खुद सेवन करते हैं बल्कि रिश्तेदारों के पास भेजते हैं. इसी तरह इसका बाजार मूल्य ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 80 से 100 रुपया प्रति किलो है.
आरु :आरु के संदर्भ में मनोज बताते हैं कि यह जमीन के अंदर मिलनेवाला कंद है. काफी स्वादिष्ट होता है और इस कंद को ढूंढ़ने एक साथ 40-50 लोग पारसनाथ के जंगल में पहुंचते हैं. कंद को खोजने और इसे निकालने में काफी वक्त लगता है. कई दफा ग्रामीण जंगल में ही आरु को पकाने लगते हैं और इस वजह से आग लगा दी जाती है. यह कंद भी 60-70 रुपया प्रति किलो के दर से बिकता है. हालांकि ज्यादातर ग्रामीण इस कंद को बेचने की जगह खुद सेवन करते हैं.
12 साल से आग लगते ही बुझाने पहुंच जाती है युवाओं की टोली महुआ : महुआ के कारण भी जंगल में आग लगा दी जाती है. चूंकि महुआ का फूल भी जमीन पर गिरता है और जमीन पर बिखरे पत्तों में छिप जाता है. ऐसे में ग्रामीण महुआ पेड़ के आस पास आग लगा देते हैं.
पर्यटकों की भी लापरवाहीःमनोज बताते हैं कि चूंकि पारसनाथ धार्मिक स्थल है और देश विदेश से लोग यहां आते हैं. कुछ यात्री पर्वत पर चढ़ने के दौरान सिगरेट पीते हैं तो उसे जली अवस्था में ही फेंक देते हैं. यह लापरवाही भी आग का कारण बनती है.
काफी संख्या में हैं वन्य प्राणीःमनोज ने बताया कि पारसनाथ का जंगल 16 हजार 500 एकड़ में फैला हुआ है. इस जंगल के बाघ, भालू, हिरण, तेंदुआ, शाहिल, मोर, खरगोश, बंदर, अजगर समेत कई तरह के वन प्राणी विचरण करते हैं. इस आग की वजह से इन्हें काफी कष्ट उठाना पड़ता है. कई की तो मौत भी हो जाती है जिसका पता भी नहीं चल पाता है. मनोज ने बताया कि पहले हमने मकर संक्रांति मेले के लिए समिति बनाई थी, इसी कड़ी में पारसनाथ पहाड़ बचाने का खयाल आया तो 2010 से हम पर्यावरण के संरक्षण में जुट गए और हम आग लगने पर आग बुझाने पहुंच जाते हैं.
12 साल से आग लगते ही बुझाने पहुंच जाती है युवाओं की टोली 12 वर्षों से आग बुझाने-लोगों को जागरूक करने में जुटी है कमिटीःमनोज बताते हैं आग की वजह से पारसनाथ पहाड़ और जंगल को रहे नुकसान, पर्यावरण को हो रही क्षति, जड़ी बूटी के नष्ट होने व वन्य जीव की जान पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए पारसनाथ मकर संक्रांति मेला समिति ने इस पवित्र पर्वत व जंगल को बचाने का निर्णय लिया. कमिटी के मेंबर न सिर्फ जंगल में लगी आग को बुझाने का काम करते हैं बल्कि लोगों को जागरूक भी करते हैं. अभी समिति के अध्यक्ष नरेश कुमार महतो हैं. इनके अलावा 24 सदस्य हैं और साथ में 100 लोग जुड़े हैं. मनोज के अलावा अमित बताते हैं कि समिति के लोग ईमानदारी पूर्वक इस काम को कर रहे हैं वह भी किसी बड़ी आर्थिक सहायता के बगैर. उनका कहना है कि चूंकि यह जंगल सबका है, सब इस पर दावा भी करते हैं. इसलिए सबको इसे बचाने में योगदान देना चाहिए. हमने पहल की है, दूसरे लोगों को भी हमसे जुड़ना चाहिए.
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विधायक की पहल पर मिला सहयोगःमनोज बताते हैं कि जंगल को बचाने के लिए उनकी कमिटी लगातार काम कर रही है. इस दौरान ग्रामीणों का सहयोग मिलता रहा है लेकिन वन विभाग की तरफ से पहली दफा सहयोग मिला, वह भी गिरिडीह सदर विधायक सुदिव्य कुमार सोनू की पहल पर. उन्होंने बताया कि वन विभाग की तरफ से पहली दफा 10 हजार रुपया कमिटी को दिया गया है. जबकि आग बुझाने में जुटे युवा को मामूली मजदूरी दी जा रही है. उन्होंने कहा कि रकम छोटी जरूर है और इस खर्च से हम आग पर काबू नहीं कर सकते लेकिन इस सहयोग राशि से कमिटी के मेंबर का मनोबल जरूर बढ़ा है.