गिरिडीह: 'चलो जाबो देखते उसरी झरना' गुरुदेव कवि रवींद्रनाथ टैगोर जब गिरिडीह आये थे तो उन्होंने कुछ ऐसा ही कहा था. इसकी चर्चा आज भी होती है. यह बात पश्चिम बंगाल से आने वाले लोग भी बताते रहते हैं. बताते हैं कि गिरिडीह आना और महान वैज्ञानिक सर जेसी बोस से मुलाकात करने के समय भी वे उसरी झरना की चर्चा अवश्य किया करते थे. लोगों का कहना है कि वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचंद्र बसु, महर्षि अरविंद घोष के अलावा फिल्म निर्माता सत्यजीत रे भी सखुआ के पेड़ों से भरे जंगलों के बीच स्थित इस उसरी जलप्रपात के शौकीन थे. यहां उसरी नदी तीन अलग-अलग धाराओं में बंटकर 40 फीट नीचे गिरती है. इसके प्रवाह को देखने के लिए ये महान लोग कई बार यहां आ चुके हैं. यहां चट्टान से गिरती पानी की दूधिया धारा और कल-कल की मधुर ध्वनि उनका मन मोहती रहती है.
क्या कहते हैं जानकार:साहित्य से जुड़े रितेश सराक बताते हैं कि निश्चित तौर पर पहाड़ियों, जंगलों के बीच बसा यह झरना महान कवि, वैज्ञानिक, फिल्मकार के साथ-साथ साहित्यकार के लिए रमणिक रहा है. उन्होंने कहा कि उसरी नदी गिरिडीह की सांस्कृतिक पहचान है. पूर्व के समय जब यह बंगाल का हिस्सा था, जितने भी विद्वान-विभूतियां रहें हैं, उन्हें उसरी से काफी प्रेम था. इसी नदी के तट पर महान लोगों ने कई रचनाएं लिखी हैं. अभी भी पश्चिम बंगाल में चौथी कक्षा के पाठ्यक्रम में गुरुदेव रविन्द्र नाथ के द्वारा लिखी गई कहानी बच्चों को पढ़ाया जाता है. आज भी पश्चिम बंगाल से सबसे ज्यादा सैलानी यहां आते हैं तो इसके पीछे इस झरना से जुडा इतिहास सबसे बड़ा कारण है.
सैलानियों से पटा यह सुंदर इलाका:वैसे यह यह क्षेत्र शांति के साथ-साथ सुकून देता है. यहां सालों भर लोग आते रहते हैं. नववर्ष के समय यहां विशेष भीड़ रहती है. इस बार भी यहां काफी भीड़ उमड़ रही है. दूर-दूर से लोग आ रहे हैं. इस बार भी पश्चिम बंगाल से आए सैलानियों की संख्या अच्छी खासी है.
स्थानीय युवा हैं एक्टिव:उसरी जलप्रपात संचालन समिति के सदस्य लोगों को सुविधा देने में जुटे हैं. समिति के अध्यक्ष कोलेश्वर सोरेन के नेतृत्व में तीन दर्जन स्थानीय लोग सैलानियों की सेवा कर रहे हैं. वाहन की पार्किंग, जाम नहीं लगना, लोगों को समझाने समेत भीड़ को नियंत्रित करने में इनकी अहम भूमिका रह रही है.