गिरिडीह: कहां तो तय था चरागां हर घर लिए, यहां तो चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए.. प्रसिद्ध कवि दुष्यंत की यह कविता आज झारखंड के गिरिडीह जिला अंतर्गत उग्रवाद प्रभावित पीरटांड़ के धावाटांड गांव पर सटीक बैठती है. जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूरी पर अवस्थित धावाटांड गांव पिछले एक दशक से अंधेरे में है. यहां लगभग 10 वर्ष पूर्व बिजली का खम्भा गाड़ा गया था. बिजली का तार भी बिछाया गया. घर-घर में बिजली का कनेक्शन दिया गया. 10-12 दिनों तक रौशनी से गांव जगमगाता रहा. लेकिन इसके बाद गुल हुई बिजली आज-तक गांव नहीं पहुंची है.
ये भी पढ़ें-वाह रे बिजली विभाग का खेल, बिन खंभा बिन तार आ गया बिल
सरकार के दावों की खुल रही है पोल
यह गांव केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकार के उस दावें की भी पोल खोल रहा जिसमें तीन वर्ष पूर्व ही यह कहा गया था कि अब हर गांव में बिजली पहुंच चुकी है. कोई भी गांव बेचिरागी नहीं रहा है. ईटीवी भारत की टीम ने इस गांव के लोगों से बात की. ग्रामीणों ने बताया कि एक दशक पूर्व बिजली आयी थी. लगा था कि अब अंधेरा दूर होगा लेकिन बिजली अब सपना बनकर रह गया है. ग्रामीणों ने कहा कि उसी समय 25 KVA का लगा ट्रांसफार्मर जला जिसे आजतक विभाग ने नहीं लगाया. ग्रामीणों ने यह भी बताया कि बगल के गांव में बिजली है लेकिन वे लोग यहां पर तार खींचने नहीं देते.
ढिबरी में होती है पढ़ाई
इन 10 वर्ष के दरमियान जन्म लिए बच्चों ने तो कभी घर के अंदर बल्ब जलते देखा ही नहीं. इन बच्चों की पढ़ाई ढिबरी के सहारे होती है. बच्चें कहते हैं कभी गांव से बाहर जाना होता है तो दूसरे के घर में ही पंखा के हवा का आनंद ले पाते हैं.