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गिरिडीह में मां काली के तीन रूप देखने उमड़े भक्त, रातभर होती रही आराधना - Jharkhand news

गिरिडीह में काली पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाई गई (Kali Puja celebration in giridih) . यहां मकतपुर स्थित बंगाली स्कूल परिसर में मां की प्रतिमा स्थापित की गई जहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे और मां काली का आशीर्वाद लिया.

Kali Puja celebrated with great pomp in Giridih
Kali Puja celebrated with great pomp in Giridih

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Published : Oct 25, 2022, 8:18 AM IST

गिरिडीह: कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनायी जाती है, इसी दिन काली पूजा भी होती है. अमावस्या की रात लोग पूरी श्रद्धा से मां काली की पूजा करते हैं. गिरिडीह में काली पूजा पूरे हर्षों उल्लास के साथ मनाई गई (Kali Puja celebration in giridih). इस बार भी मकतपुर स्थित बंगाली स्कूल परिसर में मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की गई. यहां पर इस बार मां के तीन रूपों की प्रतिमा स्थापित की गई है. यहां तारापीठ की मां तारा, कालीघाट की मन काली और श्यामा मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जा रही है.

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काली पूजा के आयोजकों ने बताया कि इस स्थान पर पिछले 25 वर्षों से मां काली की प्रतिमा को स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है. यहां आमवस्या की शाम से देर रात तक भक्त आते हैं. दूसरे दिन भी भक्तों का आगमन मां के दर्शन को उमड़ता है. इस बार दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी है. दूसरी तरफ बनियाडीह, अग्दोनी समेत कई स्थानों पर मां काली की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जा रही है.

काली पूजा की क्या है मान्यता:मान्यता यह है कि मां काली ने चंड-मुंड और शुंभ-निशुंभ नाम के दैत्यों के अत्याचार से मुक्ति के लिए मां अंबे ने चंडी का रूप धारण कर इन राक्षसों को मार गिराया. उनमें से एक रक्तबीज नाम का राक्षस भी था, जिसके शरीर का एक भी बूंद जमीन पर पड़ने से उसी का एक दूसरा रूप पैदा हो जाता. रक्तबीज का अंत करने के लिए मां काली ने उसे मार कर उसके रक्त का पान कर लिया और रक्तबीज का अंत हो गया. राक्षसों का अंत करने के बाद भी देवी का क्रोध शांत नहीं हुआ, तब सृष्टि के सभी लोग घबरा गए कि यदि मां का क्रोध शांत नहीं हुआ तो दुनिया खत्म हो जाएगी. ऐसे में भगवान शिव, देवी को शांत करने के लिए जमीन पर लेट गए और माता का पैर जैसे ही शिव जी पर पड़ा उनकी जीभ बाहर निकल आई और वे बिल्कुल शांत हो गई. तब से काली पूजा की परंपरा शुरू हो गई, भक्त आज भी मां को उसी रूप में पूजते हैं. उनकी प्रतिमाओं में मां काली की जीभ बाहर की ओर निकली दिखती है.

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