गिरिडीहः जिला के जमुआ प्रखंड में झारखंडधाम स्थित है. बैजनाथधाम के छोटे भाई के तौर पर दूर-दूर तक प्रसिद्ध इस पावन भूमि की कथा भी पौराणिक है. इस स्थान पर बाबा भोले की पूजा करने और शिवलिंग में जलार्पण करने कई राज्यों के लोग पहुंचते हैं. कहा जाता है कि यहां बाबा से मांगी मन्नतें अवश्य पूर्ण होती है. प्रति सोमवार, शिवरात्रि, नववर्ष, सावन में यहां काफी भीड़ रहती है. नए वर्ष के आरंभ में भी लोग इस पवित्र धाम में पहुंचते हैं और बाबा भोले की पूजा अर्चना करते हैं.
झारखंडधाम में ही भगवान शिव ने अर्जुन को दिया था गांडीवझारखंडधाम को लेकर कई बातें कही जाती हैं. इस धाम का जिक्र शिवपुराण में भी है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन ने इसी स्थान पर तपस्या शुरू की थी. जिसके बाद यहीं पर उन्हें भगवान शिव का दर्शन मिला था. बाबा भोले ने अर्जुन को यहीं पर गांडीव दिया था.
बाबा को पसंद नहीं है छत
मंदिर की एक अनोखी मान्यता है. मंदिर के बारे में ऐसी किवदंती है कि बाबा भोले को पक्की छत स्वीकार नहीं, वो खुले आकाश के नीच चादर-त्रिपाल के नीचे ही रहना चाहते हैं. इस मंदिर में भगवान शिव को छत बिल्कुल पसंद नहीं. ऐसा नहीं है कि भक्तों ने कभी मंदिर की छत बनाने की कोशिश नहीं. लेकिन हर बार वो असफल ही रहे. ऐसे में भोले बाबा बिना छत वाले मंदिर में ही शांत मुद्रा में विराजमान है.
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मनोकामना को ले धरना देते हैं भक्त
इस मंदिर में धरना देने की भी प्रथा है, जो काफी अनोखी है. भक्त हठयोग से अपने पूजनीय को मनाने की कोशिश करते हैं. यहां भगवान को खुश करने या फिर जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो लोग धरना देते हैं. धरना देने वाले भक्त महीनों-सालों तक भगवान के समक्ष इस मंदिर प्रांगण में ही रहते हैं. यहीं पूजा पाठ करते हैं, कहीं से कुछ प्रसाद मिल गया तो खाकर ही रहते हैं.
वहीं शारीरिक कष्ट झेल रहे लोग भी धरना देते हैं. मंदिर प्रांगण में वर्षों से रह रहा जागो उनमें से एक है, जबकि गंभीर किडनी रोग से ग्रस्त डालेश्वर भी पिछले 5 वर्षों से बाबा के आगे धरना दे रहे हैं. यहीं रहकर बाबा की सेवा में लीन हैं. अब उसका शारीरिक कष्ट दूर हो चुका है. उसे कोई तकनीफ नहीं, फिर भी वे लगातार बाबा की सेवा में लीन हैं.