गिरिडीह:बगोदर में मनाए जाने वाले सार्वजनिक दुर्गोत्सव का इतिहास बहुत पुराना है. यहां अंग्रेजी हुकूमत के समय से ही पूजन उत्सव मनता आ रहा है. इस बार मनाए जा रहे दुर्गोत्सव का 101वां साल है. बगोदर में मनाए जाने वाले दुर्गोत्सव का इतिहास जमींदारी प्रथा से जुड़ा हुआ है. इसका संबंध बगोदर के तत्कालीन जमींदार सोहन राम महतो और उनके परिजनों से जुड़ा है.
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101 साल पूर्व यानि 1920 के पूर्व में दुर्गोत्सव का आयोजन नहीं होता था. दुर्गोत्सव को देखने के लिए लिए नजदीकी इलाके में आयोजित होने वाले दुर्गोत्सव में आसपास के ग्रामीण शामिल होते थे. बगोदर के तत्कालीन जमींदार सोहन राम के परिजनों के मन में भी एक बार दुर्गोत्सव देखने की इच्छा हुई और फिर घर के मुखिया(जमींदार) को बगैर बताए बैलगाड़ी में सवार होकर सभी डुमरी चले गए. इसकी जानकारी जब जमींदार को हुई तब उन्हें यह नागवार लगा और फिर उन्होंने बगोदर में दुर्गोत्सव मनाने का इरादा मन में ठान लिया. इसके बाद 1920 में जमींदार सोहन राम महतो की अगुवाई में चौरसिया परिवार के द्वारा यहां पहली बार दुर्गोत्सव का आयोजन शुरू किया गया. तब से लगातार दुर्गोत्सव का आयोजन होता रहा है. धीरे-धीरे आयोजन में विस्तार होता गया और अब यहां भव्य दो मंजिला मंदिर भी बन चुका है.