गिरिडीह:बगोदर में आयोजित दुर्गोत्सव में इस बार मिथिलांचल की कलाकृति की झलक श्रद्धालुओं को देखने को मिल रही है. मिथिला पेंटिंग के साथ-साथा माता रानी का श्रृंगार भी मिथिलांचल तर्ज पर किया गया है. मां दुर्गा सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा जीवंत प्रतीत हो रही है. बगोदर में दुर्गा पूजा का आयोजन पिछले 103 वर्षों से होता आ रहा है.
Navratri 2023: बगोदर के दुर्गोत्सव में मिथिलांचल की झलक, सौ साल से अधिक पुराना है यहां का इतिहास
गिरिडीह में दुर्गा पूजा को लेकर चारों तरफ धूम मची हुई है. अलग-अलग थीम पर पूजा पंडालों का निर्माण किया गया है. वहीं बगोदर में इस बार मिथिलांचल की झलक श्रद्धालुओं को देखने के लिए मिल रही है.Bagodar Puja Pandal of Giridih
Published : Oct 22, 2023, 7:18 AM IST
पूजा कमेटी के अध्यक्ष ने क्या कहा: पूजा कमेटी के अध्यक्ष धीरेंद्र कुमार ने बताया कि इस बार दुर्गोत्सव में श्रद्धालुओं को कुछ अलग देखने को मिल रहा है. माता रानी की प्रतिमा का श्रृंगार मिथिलांचल की तर्ज पर किया गया है. उन्होंने बताया कि पूजनोत्सव को सफल बनाने के लिए पूजा कमेटी जुटी हुई है. महिलाओं की सुविधा के लिए यहां महिला कमेटी के सदस्य भी तैनात किए गए हैं. बताया कि नवमी को रात्रि में भक्ति जागरण का आयोजन किया जाएगा. विजयदशमी को पूरे दिन मेला रहेगा और एकादशी को प्रतिमा विसर्जन को लेकर दोपहर में शोभा यात्रा निकाली जाएगी.
आचार्य पंडित मुरलीधर शर्मा ने क्या कहा:आचार्य पंडित मुरलीधर शर्मा ने बताया कि पूजनोत्सव के माध्यम से क्षेत्र की खुशहाली, उन्नति और समृद्धि के लिए माता रानी से कामना की जा रही है. इधर पंडाल का पट खुलते ही मां के दर्शन और पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी है.
अंग्रेजी हुकूमत के समय से हो रही पूजा:बगोदर दुर्गोत्सव का इतिहास बहुत पुराना है. यहां अंग्रेजी शासन के समय से पूजनोत्सव होता रहा है. बगोदर के चौरसिया परिवार के द्वारा दुर्गोत्सव की शुरुआत की गई थी. इसके पीछे की एक कहानी है. बताया जाता है कि 103 साल पूर्व बगोदर में पूजनोत्सव का आयोजन नहीं होता था. ऐसे में इलाके के लोगों को मां के दर्शन और पूजन के लिए 20 किमी दूर डुमरी जाना पड़ता था. बताया जाता है कि तत्कालीन जमींदार परिवार की महिलाएं परिवार के मुखिया को बगैर जानकारी दिए बैलगाड़ी पर सवार होकर दुर्गोत्सव देखने के लिए डुमरी चली गईं थीं. जब जमींदार को इस बात की जानकारी हुई तब उन्हें यह नागवार लगा और उसके बाद से यहां दुर्गोत्सव का आयोजन शुरू हो गया.