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गिरिडीहः उग्रवादियों के गढ़ में पहुंची ETV BHARAT की टीम, इलाके में गरीबी का दंश झेल रहे कई लोग - ETV bharat in Giridih in militant zone

गिरिडीह के पीरटांड़ प्रखंड के कई गांव में आज भी सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. इलाके के कई गांव में इतनी गरीबी है कि लोगों को समय पर खाना नहीं मिल पा रहा है. लॉकडाउन के दौरान सभी उद्योग-धंधे ठप पड़े हैं. जिसके कारण गांव के लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. इस उग्रवाद प्रभावित इलाकों का ईटीवी भारत की टीम ने जायजा लिया.

ETV bharat team took stock of insurgency affected area in giridih
पीरटांड़ में ईटीवी भारत की टीम

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Published : May 17, 2020, 7:26 PM IST

Updated : May 17, 2020, 8:25 PM IST

गिरिडीह: जिले का पीरटांड़ प्रखंड उग्रवाद प्रभावित है. प्रखंड में कई ऐसे गांव हैं जहांं सुविधाओं की काफी कमी है. लॉकडाउन के दौरान ईटीवी भारत के संवाददाता प्रखंड के सुदूरवर्ती गांव पहुंचे. जहां आज भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच सका है.

देखें EXCLUSIVE रिपोर्ट

गांव में ज्यादातर परिवार गरीबी का दंश झेल रहे हैं. ईटीवी भारत की टीम जब तुइयो पंचायत के नौकनिया गांव पहुंची तो यहां के चौराहे पर भिन्न-भिन्न गांव की महिलाएं, बच्चे और पुरुष मौजूद थे. सभी दीदी किचन में बन रहे खिचड़ी का इंतजार कर रहे थे. वहां मौजूद लोगों ने अपनी गरीबी की दास्तान ईटीवी भारत को बताई. ग्रामीणों ने बताया कि वे लोग मजदूरी करते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण काम नहीं मिल रहा है, जिसके कारण उन्हें समय पर भोजन नहीं मिल पा रहा है. लागों ने यह भी बताया कि उनके पास राशनकार्ड तक नहीं है, जिसका लाभ उन्हें मिल सके. महिलाओं ने कहा कि राशन कार्ड नहीं होने की जानकारी मुखिया के अलावा पंचायत सेवक और डीलर को भी दी गई, लेकिन कुछ भी सुनवाई नहीं हो सकी.

उग्रवादियों के गढ़ में ईटीवी भारत की टीम

वहीं कुछ लोगों ने बताया कि उनके घर में सदस्यों की संख्या 5-6 है, लेकिन अनाज सिर्फ पांच किलो ही मिलता है, डीलर से पूछने पर यह कहा जाता है कि राशन कार्ड में एक ही आदमी का नाम है.

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क्या कहते हैं डीलर
इस मामले को लेकर जब ईटीवी भारत की टीम ने इलाके ले डीलरमुन्ना से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि लोग राशन कार्ड बनवाने के लिए सभी कागजात नहीं देते हैं. कई लोगों के पास बैंक का पासबुक भी नहीं है. इन्हीं कारणों से कार्ड नहीं बन पा रहा. उन्होंने बताया कि 10 किलो अनाज देने का अधिकार मुखिया के पास है.

जंगली फल भी बना सहारा
इलाके में इतनी गरीबी है कि लोग अहले सुबह ही पारसनाथ पर्वत चढ़ रहे हैं, जहांं से आरु या चिहुड नामक जंगली फल लाते हैं. इन फलों का उपयोग खाने के लिए किया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि आरु टेस्टी है और पहाड़ों के चट्टानों को कोड़ने के बाद मिलता है. एक किलो आरु की कीमत 60 रुपया है. उन्होंने बताया कि दिनभर मेहनत करने के बाद कभी 3-4 किलो आरु मिल जाता है, तो कभी मेहनत पर भी कुछ नहीं मिलता. ये लोग चिहुड नामक फल को लाकर घर में रखते हैं. चिहुड को भुंजने के बाद जब फोड़ा जाता है तो मूंगफली जैसा दाना मिलता है, जिसे खाने के बाद पानी पी लेने से कई घंटों तक भूख नहीं लगती है.

Last Updated : May 17, 2020, 8:25 PM IST

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