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गिरीडीह: पुस्तैनी धंधे को बचाने में कारीगरों को करना पड़ रहा जद्दोजहद, सरकार से मदद की लगा रहे गुहार - गिरिडीह में सूत कारीगर भुखमरी के कगार पर

गिरिडीह में पुस्तैनी धंधे को बचाए रखने के लिए कारीगरों को काफी मेहनत करना पड़ रहा है. बगोदर में 100 से अधिक परिवार सूत से रस्सी और बांस से सामान बनाकर बाजारों में बेचते हैं, लेकिन इस कोरोना काल में इन लोगों का कारोबार ठप हो गया है. ये लोग सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.

Bamboo and cotton artist are on verge of starvation in giridih
बांस कारीगरों को आर्थिक मदद की जरूरत

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Published : Jul 22, 2020, 10:25 PM IST

गिरिडीह: जिले में आधुनिकता की चकाचौंध के सामने पुस्तैनी धंधे को बचाने के लिए कारीगरों को काफी जद्दोजहद करना पड़ रहा है. बांस से सामान बनाने वाले और सूत से रस्सी बनाने वाले कारीगरों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. सरकारी स्तर से भी इन्हें किसी तरह से प्रोत्साहन नहीं मिलने से इन कारीगरों में मायूसी छाई हुई है.

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बगोदर प्रखंड मुख्यालय से लगभग 15 किमी दूरी में बसा है तूरी टोला और बिरहोर टोला. बिरहोरटंडा में आदिम जनजाति बिरहोर और तूरी टोला में दलित परिवार निवास करते हैं. दोनों टोले में एक सौ से अधिक की संख्या में परिवार बसा हुआ है. बिरहोर परिवारों का जीविकोपार्जन का मुख्य पेशा सूत से रस्सी तैयार करना और तूरी परिवारों का बांस से सामान बनाकर उसे बाजारों में बेचना है. दोनों समुदाय के लोगों का कहना है कि यह धंधा उनकी पुस्तैनी है, लेकिन समय के साथ बदलते माहौल में और सरकार के असहयोग के कारण उनके धंधे फिके पड़ने लगे हैं.

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बिरहोर परिवारों का कहना है कि सरकारी स्तर पर पहले उन्हें रस्सी बनाने के लिए जूट के धागे मुहैया कराए जाते थे, लेकिन अब सूत उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं. वहीं तूरी समुदाय के लोगों का कहना है कि आधुनिकता की चमक में उनके धंधे फीकी पड़ रहे हैं, एक तो अधिक कीमत में बांस की खरीददारी करनी पड़ रही है, वहीं दूसरी ओर बांस से बने सामानों की बाजार में मांग न के बराबर है. ये सभी कारीगर सरकार से आर्थिक सहयोग देने की मांग कर रहे हैं. छोटू तूरी ने बताया कि कोरोना काल के कारण उनका कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया है, एक तो ऊंची दामों पर बांस से सामान बनाते हैं और दूसरे में डिमांड नहीं रहने से आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

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