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चिलखारी नरसंहार: 13 साल बाद भी कायम है नक्सलियों का खौफ, ग्रामीणों को है मूलभूत सुविधाओं इंतजार

गिरीडीह के चिलखारी नरसंहार के तेरह साल का समय बीत जाने के बाद भी इस क्षेत्र में नक्सलियों का दशहत कायम है, जिसके कारण यहां के लोग डर के साये में जीने को विवश हैं.

bad condition of chikhari village in giridih
bad condition of chikhari village in giridih

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Published : Oct 26, 2020, 4:30 PM IST

गिरिडीह: जिले के देवरी प्रखंड में 13 साल पहले नक्सलियों ने हैवानियत की हद पार कर बीस लोगों की हत्या कर दी थी. इस घटना में राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र की भी हत्या हुई थी. घटना के बाद इस इलाके के समुचित विकास का वादा किया गया था, लेकिन वह भी पूरा नहीं हो सका है. जिसके कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

देखें पूरी खबर

कैसे हुई थी घटना

घटना 26 अक्टूबर 2007 की है. झारखंड बिहार की सीमा पर चिलखारी उर्फ चिलखरियोडीह गांव स्थित उमवि चिलखरियोडीह स्थित फुटबॉल मैदान पर तूफान स्पोर्टिंग क्लब चिलखारी की ओर से तीन दिवसीय फुटबॉल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. प्रतियोगिता का फाइनल मुकाबला चकाई प्रखंड के चाइना स्पोर्टिंग क्लब चडरी और गिरिडीह कॉलेज के बीच हुआ, जिसमें टाइब्रेकर में चडरी की टीम विजयी रही. फुटबॉल प्रतियोगिता के समापन के बाद फुटबॉल प्रतियोगिता आयोजन स्थल पर आदिवासी जतरा कार्यक्रम 'सोरेन ओपेरा, का आयोजन किया गया था. बोकारो से पचासी सदस्यीय कलाकारों की टीम जिसमें 63 पुरुष और 22 महिला कलाकार शामिल थे, की ओर से कार्यक्रम की प्रस्तुति की जा रही थी. आयोजक कमिटी की ओर से कार्यक्रम में विजेता और उपविजेता टीम के खिलाड़ियों और उनके साथ आए समर्थकों के लिए मुफ्त में जतरा देखने के लिए व्यवस्था की गई थी.

'गीत की धुन के बीच चीख पुकार से मची भगड़ग'

सभी लोग जतरा कार्यक्रम का आनंद उठा रहे थे. इसी क्रम में मध्य रात्रि में जब कार्यक्रम चरम पर था. भाकपा माओवादियों का दस्ता चिलखारी पहुंचा और कार्यक्रम स्थल को अपने कब्जे में लेकर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. फायरिंग से गीत संगीत का कार्यक्रम चीख पुकार में तब्दील हो गया और लोगों मे भगदड़ मच गयी.

माओवादियों के फायरिंग में कार्यक्रम में अगली पंक्ति में बैठे झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी समेत समेत बीस लोग मारे गए थे, जिसमें अठारह लोगों की मौत मौके पर हो गयी थी. वहीं एक युवक दिनेश वर्मा की मौत इलाज के लिए गिरिडीह ले जाने के क्रम में रासते में हो गयी थी. इस घटना में गोली लगने से घायल एक अन्य महिला पार्वती बासके की मौत इलाज के दौरान रांची रिम्स में हो गयी थी. वहीं कार्यक्रमस्थल पर मौजूद बाबूलाल मरांडी के भाई नुनुलाल मरांडी बाल बाल बच गए थे.

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20 लोगों की मौत

घटना में बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी, चिलखारी के मुन्ना हेम्ब्रोम, दुम्माटांड़ के मनोज किस्कु, गिरिडीह के छात्र नेता सुरेश हांसदा, सहित गिरिडीह के ही अजय सिन्हा उर्फ पोपट, लक्षुआडीह के चरकु मरांडी, पंदना के सुशील कुमार बेसरा, विजयपुर के दीपक हेंब्रम, बामदह कुंडवा टोला के गंगाराम टुडु, करकाटांड़ के अनिल अब्राहम मरांडी, एकदुआरी के उसमान अंसारी, बदवारा के रशिक बासके, सहित अनूप मुर्मू, दिलखुश सिंह, दिनेश किस्कु, केदार हेंब्रम आदि सहित झारखंड बिहार के कुल बीस मारे गए थे.

धरातल पर नहीं उतरी योजना

स्थानीय ग्रामीण शिबू सोरेन, चुन्नू सोरेन, रोशन मुर्मू, नुनुराम मुर्मू, रामप्रसाद मुर्मू, चरमन मुर्मू समेत कई लोगों का कहना है कि घटना के दिन राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा समेत राज्य कई राजनेता और वरीय अधिकारी पहुंचे थे, जिनकी ओर से चिलखारी को आदर्श गांव के रूप में विकसित करने, गांव के विद्यालय को उच्च विद्यालय के रूप अपग्रेड करने गांव की सड़क को दुरुस्त करने के साथ-साथ सभी समस्याओं को दूर करने का आश्वान दिया गया, लेकिन एक भी घोषणा को धरातल पर नहीं उतारा जा सका है. वहीं तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष आलमगीर आलम की ओर से गांव में स्टेडियम बनाने की भी घोषणा की गई थी. लेकिन ये घोषणा भी अब तक पूरी नहीं हो पायी है.

मूलभूत सुविधाओं का अभाव

ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पेयजल की समस्या से निजात नहीं मिल पाया है. केवल एक चापाकल के भरोसे पानी मील रहा है, जिसके खराब हो जाने पर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव के गली में पीसीसी नहीं होने से आवागमन में फजीहत होती है. आइसीडीएस के तहत गांव आंगनबाड़ी केंद्र से मिलने वाली सुविधा का लाभ नहीं मील रहा है. गांव में बिजली भी नियमित रूप से नहीं पहुंचती है. ग्रामीणों ने समस्याओं से निजात दिलवाने की मांग की है. ताकि वे सही तरीके से जीवनयापन कर सकें.

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