जमुआ, गिरिडीह: बहुचर्चित भेलवाघाटी नरसंहार के पंद्रह वर्ष बीत जाने के बाद आज भी नक्सलियों के खूनी खेल का दहशत कायम है. जिस ग्यारह सितंबर की रात में भाकपा माओवादियों गांव के बीच चौराहे पर गांव के 17 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. नरसंहार की ग्यारह सितंबर 2005 की वह रात भेलवाघाटी के इतिहास में काली रात के रूप में दर्ज है.
बहुचर्चित भेलवाघाटी नरसंहार
बताया जाता है कि इलाके नक्सल गतिविधि को पनपते देख गांव में नक्सलियों प्रवेश नहीं देने के लिए भेलवाघाटी गांव में ग्राम रक्षा दल का गठन किया गया था. ग्राम रक्षा दल के सदस्य नक्सलियों को गांव में घुसने नहीं देना चाहते थे, जिससे नक्सली नाराज चल रहे थे. नाराज माओवादियों ने ग्यारह सितंबर 2005 की रात 7:30 बजे ही पूरे भेलवाघाटी गांव को घेर लिया और गांव के घरों की कुंडिया को बंद कर दिया. इसके बाद ग्राम रक्षा दल के सदस्यों एक-एक कर घर से बाहर निकाल कर गांव के बीच चौराहे पर जन अदालत लगाया. जन अदालत में ग्राम रक्षा दल के सदस्यों को मौत की सजा देने की फरमान जारी किया गया.
नक्सलियों ने किया था गांव का घेरा
इसके बाद माओवादियों की तरफ से गांव के बीच चौराहे पर ही खून की होली खेलकर ग्राम रक्षा दल के सदस्यों की जमकर पिटाई करने के बाद किसी को गोली मारकर तो किसी की गला रेतकर मौत का घाट उतार दिया. इस दौरान रात साढ़े सात बजे से साढ़े दस बजे तक नक्सलियों की तरफ से गांव घेरे रखा था.
मारी गई थी गोली
घटना के दौरान माओवादियों की तरफ से मृतक मंसूर के घर को बम से उड़ा दिया गया था. मंसूर ग्राम रक्षा दल का नेतृत्व कर रहा था. इस घटना में गांव के मंसूर अंसारी मजीद अंसारी, मकसूद अंसारी, मंसूर अंसारी, रज्जाक अंसारी, सिराज अंसारी, रामचंद्र हाजरा, गणेश साव, अशोक हाजरा, जमाल अंसारी, कलीम अंसारी, कलीम अंसारी, हमीद मियां, करीम मियां, चेतन सिंह, दिल मोहम्मद अंसारी, युसूफ अंसारी मारे गए थे. वहीं गोली लगने से गांव के कारु मियां घायल हो गए थे.