गढ़वाः झारखंड के गढ़वा का नगर ऊंटारी श्री वंशीधर नगर योगेश्वर कृष्ण की भूमि है. यहां श्री वंशीधर मंदिर में स्थित श्रीकृष्ण की वंशीवादन करती प्रतिमा की ख्याति देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. यूं कहा जाए कि नगर ऊंटारी की पहचान श्रीवंशीधर मंदिर से ही है.
वंशीधर नगर में भगवान वंशीधर की 1200 किलो की शुद्ध सोने की आदम कद प्रतिमा विराजमान हैं. घोर नक्सली क्षेत्र होने के बावजूद बगैर किसी सुरक्षा के यह प्रतिमा लगभग 200 सालों से भक्तों के लिए अटूट श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. श्रद्धा का सैलाब यहां से ऐसे निकलता रहा कि चोर, अपराधी और नक्सली भी इस ढाई हजार करोड़ रुपये की प्रतिमा छू नहीं सके.
बांसुरी चुराने वाले हो गए थे अंधे
बाबा वंशीधर मंदिर सूर्य मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सह नगर गढ़ के युवराज राजेश प्रताप देव कहते है कि 50-60 साल पहले 4-5 लोगों ने बाबा वंशीधर की बांसुरी चुराने और उनके हाथ को क्षतिग्रस्त करने की कोशिश की लेकिन गर्भगृह के अंदर ही उनकी आंखों की रोशनी चली गयी. जिसके बाद वह वहां रखे बर्तनों में टकरा गए. आवाज सुन पुजारी जग गए और चोर पकड़ लिए गए. यही नहीं लगभग 10 साल पहले उत्तर प्रदेश से इंटरनेशन मूर्ति चोर गिरोह ने यहां पहुंचकर भगवान की मूर्ति की चोरी के लिए रेकी की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके.
भगवान श्रीकृष्ण विराजमान है ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में
यहां हर साल श्रीकृष्ण की जयंती जन्माष्टमी मथुरा और वृंदावन की तरह मनाई जाती है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप में विराजमान हैं. गंगा- यमुना संस्कृति और धार्मिक भावनाओं से ओत प्रोत खुबसूरत हरी भरी वादियों, कंदराओ, पर्वतों, नदियों से आच्छांदित और उत्तरप्रदेश, छतीसगढ़, बिहार तीनों राज्यों की सीमाओं को स्पर्श कर उन तीन राज्यों की मिश्रित संस्कृति को समेटे श्री वंशीधर की पावन नगर, नगर उंटारी को पलामू की सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है. श्री वंशीधर मंदिर की स्थापना संवत 1885 में हुई है.
रानी ने श्री कृष्ण से सपने में मांगा था वरदान
किवंदतियों के मुताबिक उस दौरान राजा भवानी सिंह देव की विधवा शिवमानी कुंवर राजकाज का संचालन कर रही थी. रानी शिवमानी कुंवर धर्मपरायण और भगवत भक्ति में पूर्ण निष्ठावान थी. बताया जाता है कि एक बार जन्माष्टमी व्रत धारण किए रानी को सपने में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन हुए इस दौरान उन्होंने रानी से वर मांगने को कहा. रानी ने भगवान श्री कृष्ण से उनपर सदैव कृपा प्रदान करने की प्रार्थना की. जिसके बाद भगवान कृष्ण ने रानी से कहा कि कनहर नदी के किनारे महुअरिया के पास शिव पहाड़ी में उनकी प्रतिमा गड़ी है, वह उसे अपने राज्य में लाएं. सुबह जब रानी सो कर उठी तो उन्होंने शिवपहाड़ी जाकर विधिवत पूजा अर्चना के बाद खुदाई कराई. यहां उन्हें श्रीकृष्ण की यह प्रतिमा मिली थी. जिसे हाथियों पर बैठाकर नगर उंटारी लाया गया. नगर उंटारी गढ़ के मुख्य द्वार पर अंतिम हाथी बैठ गया. लाख प्रयास के बावजूद हाथी के नहीं उठने पर रानी ने राजपुरोहितों से राय मशविरा कर, वहीं पर मंदिर का निर्माण कराया.