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कृष्ण जन्माष्टमी पर कीजिए 1200 किलो सोने से बनी मूर्ति के दर्शन, गढ़वा में है ये अनूठा वंशीधर मंदिर

जन्माष्टमी के मौके पर वंशीधर मंदिर का खास महत्व है. मान्यता है कि इस दिन यहां पूजा करने से लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है. इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है.

श्री वंशीधर मंदिर में स्थापित प्रतिमा

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Published : Aug 23, 2019, 5:04 PM IST

गढ़वाः झारखंड के गढ़वा का नगर ऊंटारी श्री वंशीधर नगर योगेश्वर कृष्ण की भूमि है. यहां श्री वंशीधर मंदिर में स्थित श्रीकृष्ण की वंशीवादन करती प्रतिमा की ख्याति देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. यूं कहा जाए कि नगर ऊंटारी की पहचान श्रीवंशीधर मंदिर से ही है.

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वंशीधर नगर में भगवान वंशीधर की 1200 किलो की शुद्ध सोने की आदम कद प्रतिमा विराजमान हैं. घोर नक्सली क्षेत्र होने के बावजूद बगैर किसी सुरक्षा के यह प्रतिमा लगभग 200 सालों से भक्तों के लिए अटूट श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. श्रद्धा का सैलाब यहां से ऐसे निकलता रहा कि चोर, अपराधी और नक्सली भी इस ढाई हजार करोड़ रुपये की प्रतिमा छू नहीं सके.

बांसुरी चुराने वाले हो गए थे अंधे

बाबा वंशीधर मंदिर सूर्य मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सह नगर गढ़ के युवराज राजेश प्रताप देव कहते है कि 50-60 साल पहले 4-5 लोगों ने बाबा वंशीधर की बांसुरी चुराने और उनके हाथ को क्षतिग्रस्त करने की कोशिश की लेकिन गर्भगृह के अंदर ही उनकी आंखों की रोशनी चली गयी. जिसके बाद वह वहां रखे बर्तनों में टकरा गए. आवाज सुन पुजारी जग गए और चोर पकड़ लिए गए. यही नहीं लगभग 10 साल पहले उत्तर प्रदेश से इंटरनेशन मूर्ति चोर गिरोह ने यहां पहुंचकर भगवान की मूर्ति की चोरी के लिए रेकी की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके.

भगवान श्रीकृष्ण विराजमान है ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में

यहां हर साल श्रीकृष्ण की जयंती जन्माष्टमी मथुरा और वृंदावन की तरह मनाई जाती है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप में विराजमान हैं. गंगा- यमुना संस्कृति और धार्मिक भावनाओं से ओत प्रोत खुबसूरत हरी भरी वादियों, कंदराओ, पर्वतों, नदियों से आच्छांदित और उत्तरप्रदेश, छतीसगढ़, बिहार तीनों राज्यों की सीमाओं को स्पर्श कर उन तीन राज्यों की मिश्रित संस्कृति को समेटे श्री वंशीधर की पावन नगर, नगर उंटारी को पलामू की सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है. श्री वंशीधर मंदिर की स्थापना संवत 1885 में हुई है.

रानी ने श्री कृष्ण से सपने में मांगा था वरदान
किवंदतियों के मुताबिक उस दौरान राजा भवानी सिंह देव की विधवा शिवमानी कुंवर राजकाज का संचालन कर रही थी. रानी शिवमानी कुंवर धर्मपरायण और भगवत भक्ति में पूर्ण निष्ठावान थी. बताया जाता है कि एक बार जन्माष्टमी व्रत धारण किए रानी को सपने में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन हुए इस दौरान उन्होंने रानी से वर मांगने को कहा. रानी ने भगवान श्री कृष्ण से उनपर सदैव कृपा प्रदान करने की प्रार्थना की. जिसके बाद भगवान कृष्ण ने रानी से कहा कि कनहर नदी के किनारे महुअरिया के पास शिव पहाड़ी में उनकी प्रतिमा गड़ी है, वह उसे अपने राज्य में लाएं. सुबह जब रानी सो कर उठी तो उन्होंने शिवपहाड़ी जाकर विधिवत पूजा अर्चना के बाद खुदाई कराई. यहां उन्हें श्रीकृष्ण की यह प्रतिमा मिली थी. जिसे हाथियों पर बैठाकर नगर उंटारी लाया गया. नगर उंटारी गढ़ के मुख्य द्वार पर अंतिम हाथी बैठ गया. लाख प्रयास के बावजूद हाथी के नहीं उठने पर रानी ने राजपुरोहितों से राय मशविरा कर, वहीं पर मंदिर का निर्माण कराया.

वहीं, वाराणसी से राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा मंगाकर स्थापित करायी गई. श्रीवंशीधर जी प्रतिमा कला के दृष्टिकोण से अति सुंदर और अद्वितीय है. बिना किसी रसायन के प्रयोग या किसी दूसरे पॉलिस के प्रतिमा की चमक पूर्ववत है. भगवान श्री कृष्ण शेषनाग के ऊपर कमल पुष्प पर वंशीवादन नृत्य करते विराजमान हैं.

महाशिवरात्रि और कृष्ण जन्माष्टमी में विशेष पूजा

भूगर्भ में होने के कारण शेषनाग दृष्टिगोचर नहीं होते हैं. यहां श्रीकृष्ण त्रिदेव के स्वरूप में विराजमान है. वंशीधर जटाधारी के रूप में दिखाई देते हैं, जबकि शास्त्रों में श्रीकृष्ण के खुले लट और घुंघराले बाल का वर्णन है. इस लिहाज से मान्यता है कि श्रीकृष्ण जटाधारी अर्थात देवाधिदेव महादेव के रूप में विराजमान हैं. श्रीकृष्ण के शेषशैय्या पर होने का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है. लेकिन यहां श्रीवंशीधरजी शेषनाग के ऊपर कमलपुष्प पर विराजमान हैं. जबकि कमलपुष्प ब्रह्मा का आसन है इस लिहाज से मान्यता है कि कमल पुष्पासीन श्रीकृष्ण कमलासन ब्रह्मा के रूप में विराजमान हैं.

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं लक्ष्मीनाथ विष्णु के अवतार है इसलिए विष्णु के स्वरूप में विराजमान हैं. यहां महाशिवरात्रि और श्री कृष्ण जन्मोत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. महाशिवरात्रि के मौके पर प्रसिद्व मेला लगता है, जो एक माह तक चलता है. वहीं, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर एक सप्ताह तक श्रीमद्गभागवत कथा का आयोजन किया जाता हैं.

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पुरातात्विक विभाग ने बताया, दुनियां का अजूबा प्रतिमा

बाबा वंशीधर मंदिर सूर्य मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सह रानी शिवमनी कुंवर के वंशज सह नगर गढ़ के युवराज राजेश प्रताप देव ने इस मंदिर की स्थापना की विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि यहां सभी की मन्नतें पूरी होती हैं. बता दें कि 2014 में बीएचयू के पुरातात्विक विभाग की टीम इस मूर्ति की असलियत की पड़ताल करने आयी थी. टीम ने इसे दुनिया का अजूबा प्रतिमा बताते हुए इसकी कीमत 2500 करोड़ रुपये आंकी थी. इस प्रतिमा को भले ही रुपए में आकलन कर, लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह अनमोल है.

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