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स्वर्ण अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कभी लहराते थे जीत का परचम, आज कर रहे हैं गार्ड का काम

जींदगी इंसान को कब किस मोड़ पर ले जाएगी. यह किसी को पता नहीं है, लेकिन झारखंड के जमशेदपुर इसका जीता जागता उदाहरण है. यहां का एक व्यक्ति कभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर रहा था, लेकिन आज वह एक निजी अपार्टमेंट में सुरक्षा गार्ड का काम कर रहा है. कभी देश को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले व्यक्ति ने आज खुद अपना पहचान खो दिया है.

विश्व प्रसिद्ध साइकिलिस्ट स्वर्ण गार्ड का काम करने को मजबूर
world Famous cyclists swarn doing guard work in jamshedpur

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Published : Jun 3, 2020, 8:01 PM IST

जमशेदपुर: झारखंड की औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाला जमशेदपुर कभी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त खिलाड़ियों के नाम के लिए जाना जाता था. एक जमाने में विश्व के प्रसिद्ध खिलाड़ी स्वर्ण साइकिल की सवारी से दुनिया को अचंभित कर चुके थे. स्वर्ण अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होने के बावजूद सुरक्षा प्रहरी का काम कर रहे हैं.

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अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीत का परचम

संयुक्त राष्ट्र की ओर से 3 जून 2018 को साइकिल उपयोग को बढ़ावा देने के लिए पहली बार विश्व साइकिल दिवस मनाने की शुरूआत की थी. साइकिलिंग की दुनिया में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीत का परचम लहराने वाले साइकिलिस्ट आज अपनी जीविका चलाने के लिए सुरक्षा प्रहरी का काम करने को विवश हैं. एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके साइकिल सवारी वाले स्वर्ण जमशेदपुर के एक निजी अपार्टमेंट में सुरक्षा प्रहरी का कार्य करते हैं.

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राष्ट्रीय साइकिलिंग चैंपियनशिप में जीते कई पदक

पंजाब के गुरदासपुर के रहने वाले स्वर्ण 1965 में बतौर साइकिलिंग की शुरुआत की थी, जिसके बाद बैंकॉक में हुए एशियाई खेल में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वर्ण ने टीम इवेंट में छठॉ स्थान प्राप्त किया था. 1974 में तेहरान में आयोजित एशियाई खेल में भी उनका चयन हुआ था, लेकिन अपरिहार्य कारणों से वे प्रतिस्पर्धा में शामिल नहीं हो सके थे. हालांकि, इसके बाद भी राष्ट्रीय साइकिलिंग चैंपियनशिप में कई पदक जीतने में इन्हें कामयाबी मिली है.

नहीं मिली कोई सरकारी सहायता

स्वर्ण बताते हैं कि अच्छी साइकिल महंगी होने के कारण उसे खरीद पाना मुश्किल हो गया था और सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण वो धीरे-धीरे इस ट्रैक से बाहर निकलते चले गए और उनका नाम भी लोगों के जुबान से मिटते चला गया. इसके बाद वो टाटा स्टील के वेलफेयर डिपार्टमेंट में नौकरी करने लगे और 1994 में उन्होंने ईएएस ले लिया. स्वर्ण अपने पूरे परिवार के साथ किराए के मकान में रहते हैं और एक निजी अपार्टमेंट में चौकीदार का काम करते हैं जो भी वेतन मिलता है, उससे किराया चुकाने में भी मुश्किल होता है.

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