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इस गांव के लोगों ने 40 साल पहले ही प्लास्टिक के खतरे को पहचाना, आज पेश कर रहे मिसाल

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड के छोटे से गांव रोहिणीबेड़ा में लगभग 40 साल से लोग प्लास्टिक और थर्माकोल के प्लेट का इस्तेमाल नहीं करते हैं. यहां के लोग साल के पत्ते से प्लेट और कटोरा बनाते हैं और बाजारों में बेचने के साथ-साथ खुद भी इसका इस्तेमाल करते हैं.

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दोना-पत्तल का कारोबार

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Published : Dec 21, 2019, 9:34 AM IST

Updated : Dec 21, 2019, 9:45 AM IST


घाटशिला, पूर्वी सिंहभूम: प्लास्टिक मुक्त कर पर्यावरण संरक्षण की मुहिम को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई कार्यक्रम चला रही है. लेकिन इससे कुछ अलग पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड के छोटे से गांव रोहिणीबेड़ा में लगभग 40 साल से लोग प्लास्टिक और थर्माकोल के प्लेट का इस्तेमाल नहीं करते हैं.

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साल के पत्ते से बनाते हैं कटोरा
दरअसल, इस गांव के 20 से 25 घर हैं. वह लोग जंगल से साल के पत्ते लाकर पत्ते का थाली और कटोरा बनाते हैं. गांव वालों का कहना है कि यह हम लोगों के पूर्वजों को देन है, इसीलिए आज भी यह परंपरा चलती आ रही है.

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पूर्वजों की विरासत
महिलाएं कहती हैं वे कई वर्षों से साल के पत्तों का थाली और कटोरा बनाते हैं और बेचते हैं. उनका कहना है कि इसमें खास मुनाफा तो नहीं होता था, लेकिन जब से प्लास्टिक मुक्त भारत का अभियान चलाया गया है तब से थोड़ी बिक्री तो बढ़ी है. गांव के पुरुष का कहना है कि यह उनके पूर्वजों की विरासत है. इसको संभाल के अभी तक रखे हुए हैं.

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मुनाफा भी हो रहा
उनका कहना है कि प्लास्टिक मुक्त भारत तो अभी की योजना है. वे तो पिछले 40 साल से यही काम करते आ रहे हैं. हां जब से प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान चलाया गया है यहां के साल पत्तों की थाली और कटोरी की मांग बाजारों में बहुत तेजी से बढ़ रही है और मुनाफा भी हो रहा है.

Last Updated : Dec 21, 2019, 9:45 AM IST

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