जमशेदपुरः कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में जमशेदपुर शहर भी आ गया है. प्रतिदिन संक्रमण का आंकड़ा बढ़ रहा है. राज्य सरकार ने स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह की मियाद बढ़ाकर 6 मई तक कर दी है. इसके साथ ही कड़ाई भी कर दी है, ताकि लोग अपने घरों में ही सुरक्षित रहें. इसके मद्देनजर सरकार के साथ-साथ कई सामाजिक संगठन आम लोगों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं.
एक तबका ऐसा भी है जिनके लिए अब तक मदद के लिए कोई आगे नहीं आया है. दुआ और बधाई देने वाला ये किन्नर समाज आज आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है. इनको भी मदद की दरकार है, इन्होंने भी अपने हाथ फैलाकर मदद की गुहार लगाई है.
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कोरोना काल के पहले साल में सरकार ने लाॅकडाउन की घोषणा की थी, लाॅकडाउन होते ही कई राजनीतिक दल स्वयंसेवी संगठन और सामाजिक संस्थाओं ने जरूरतमंदों को राहत सामग्री पहुंचाई. पिछले साल के मुकाबले इस बार एकाध संस्था को छोड़कर किसी भी संस्था ने अभी तक मदद की पहल नहीं की है, ना ही सरकार ने इनके राहत के लिए कोई विशेष पकैज की घोषणा की है. मदद की पहल नहीं किए जाने से जरूरतमंदों के साथ-साथ किन्नर समुदाय को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. आज वो राहत के इतंजार में बैठे हैं.
जमशेदपुर में करीब 500 किन्नर
जमशेदपुर में 500 के करीब किन्नरों की संख्या है, जो शहर के विभिन्न इलाकों में रहते हैं. इनके रोजगार का साधन ट्रेन में मांगना या घर-घर जाकर नाच-गाना, बधाइंया देना है. करीब एक साल से रुटीन ट्रेनें बंद हैं. कोरोना की वजह से जलसा या शादी-ब्याह जैसा आयोजन नहीं हो रहा है. संक्रमण के डर से किन्नर समाज के लिए हर दरवाजे बंद हो चुके हैं. इस वजह इनको भीषण आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है. पिछले साल कई संस्थाओं ने मदद की थी. इस बार अब तक किसी ने मदद की पहल नहीं की है.
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कोरोना की दूसरी लहर ने सबकुछ छीन लिया
किन्नरों ने बताया कि बीते साल लाॅकडाउन के कारण आर्थिक रूप से हमलोग कमजोर हो गए थे. स्वयंसेवी संस्था और सामाजिक संगठनों की मदद से थोड़ी स्थिति सामान्य हुई थी. हम लोगों ने बधाई कार्यक्रम में जाना शुरू किया था. ट्रेनों नहीं चलने के कारण ट्राॅफिक सिग्नल पर मांगकर कुछ गुजारा हो जाता था. इसी बीच फिर एक बार कोरोना की दूसरी लहर ने हमारे तमाम आर्थिक स्त्रोत बंद कर दिया. जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो गई.
मदद की गुहार
उनका कहना है कि लोगों ने घरों में आने से मना कर दिया, सोशल डिस्टेंसिंग के कारण ट्राॅफिक सिग्नल पर खड़ा होना और किसी के कुछ देने पर मनाही हो गई. जिसका नतीजा यह हुआ कि हमलोग फिर से बेरोजगार हो गए. हमारे घर में खाने के लाले पड़ गए, हमें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस बार तो अभी तक किसी स्वंयसेवी संगठन ने मदद के लिए हाथ नहीं बढाया है, ना ही सरकार की ओर से हमारे लिए कोई योजना है, जो बेहद चिंताजनक है.