जमशेदपुर: शहर के करनडीह सारजोमटोला में रहने वाले 82 वर्षीय शिक्षाविद पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त करने वाले दिगंबर हांसदा के पार्थिव शरीर को सम्मान के साथ उनके निवास स्थान से बिस्टुपुर स्थित पार्वती घाट लाया गया, जहां राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ.
14 जवानों ने 42 राउंड फायरिंग कर दी अंतिम सलामी
राज्य सरकार की तरफ से परिवहन मंत्री चंपई सोरेन ने उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. इस दौरान जेएमएम विधायक रामदास सोरेन, मंगल कालिंदी, समीर मोहांती और संजीव सरदार के अलावा समाज के कई प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित होकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. 19 नवंबर की सुबह दिगंबर हांसदा का उनके निवास स्थान पर निधन हो गया था. उनके पुत्र पुरन हांसदा के जमशेदपुर आने के बाद अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान 14 जवानों ने 3 चक्र में 42 राउंड फायरिंग कर उन्हें अंतिम सलामी दी.
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संताली भाषा में लिखे हैं कई किताबें
पोटका के मानपुर से हाई स्कूल पास करने के बाद हासंदा चाईबासा चले गए. चाईबासा के टाटा कॉलेज में उन्होने स्नातक की पढ़ाई की. इसके बाद वे रांची विश्वविद्यालय से एमएकी डिग्री लेने के बाद संताली भाषा पर रिर्सच करना शुरू कर दिया. प्रोफेसर दिगंबर को बचपन से ही अपने संताली भाषा से बेहद लगाव था. बचपन से ही उन्हे किताब लिखने की ललक थी और इसी उद्देश्य से उन्होंने संताली भाषा मे कई किताब भी लिखी, जिनमें प्रमुख रूप सरना, गड़या-पड़या (सग्रह), संताली लोक कथा का संग्रह, भारोत्तेर लौकीक देव-देवी और गंगा माला शामील है. प्रोफेसर हासंदा ने हिंदी, अग्रेजी, बांग्ला और ओड़िया भाषाओं के महत्वपूर्ण किताबों का भी अनुवाद किया है. वह बिहार, बंगाल और ओडिशा के पहले सख्श है, जिन्होने संताली भाषा में साहित्य लिखना शुरु किया.
संताली साहित्य के लिए है यह सम्मान
पदमश्री घोषणा के बाद ईनाडु इंडिया के सवादाता से बातचीत में उन्होंने बताया था कि उन्हें बहुत खुशी है कि उनका नाम पदमश्री के लिए चयन किया गया है. एक साहित्यकार के लिए इससे बड़ी खुशी कुछ नहीं हो सकती है. उन्होंने कहा था कि ये सम्मान उन्हें नहीं संताली साहित्य को मिला है. यह सम्मान संताली साहित्य को सौंपना उचित होगा. उन्होंने कहा था कि उन्हें संताली भाषा के लिए और भी कुछ करना है. संताली समाज को जहां होना चाहिए, वह वहां नहीं है. यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है.