जमशेदपुरः शहर के सरकारी और निजी अस्पतालों में आग लगी तो सैकड़ों मरीजों की जान जा सकती है. ईटीवी भारत की टीम ने शहरी क्षेत्र के अस्पतालों की पड़ताल की. जिसमें चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं. कैसे बिना सुरक्षा मानक और बिना फायर सेफ्टी के इतने बड़े-बड़े अस्पताल में हजारों मरीज की जान दांव पर लगाई जा रही है.
MGM का हाल-बेहाल
कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल अस्पताल (MGM) की स्थापना 1962 में की गई थी. इसका मकसद था ग्रामीण सुदूरवर्ती इलाकों के लोगों को बेहतर चिकित्सा मुहैया कराना. अस्पताल में मरीजों को बेहतर चिकित्सा भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है. एमजीएम अस्पताल में अचानक आग लग जाए तो बड़ा हादसा हो सकता है.
खामियों से भरे शहर के अस्पताल
साकची स्थित एमजीएम अस्पताल, परसुडीह स्थित सदर अस्पताल, मानगो स्थित गुरुनानक अस्पताल, जेल मोड़ स्थित लाइफ लाइन अस्पताल, न्यू कोर्ट मोड़ स्थित एपेक्स अस्पताल. ईटीवी भारत की पड़ताल में अपना जा रही फायर सेफ्टी ना के बराबर है. यहां के अग्निशमन यंत्र एक्सपायरी हो चुके हैं. इन अस्पतालों के ओपीडी, आईसीयू वार्ड समेत अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में अग्निशमन यंत्र नहीं मिले. कुछ अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र तो मिले लेकिन वो एक्सपायर हो चुके हैं. परसुडीह के खासमहल स्थित सदर अस्पताल और निजी अस्पतालों में अचानक आग लगने पर सुरक्षा के कोई व्यापक प्रबंध नहीं किए गए हैं. इन अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं.
सरकारी अस्पतालों की हालत
कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम और सदर अस्पताल में ग्रामीण सुदूरवर्ती जगहों से दो हजार से ज्यादा मरीज प्रतिदिन चिकित्सा कराने आते हैं. यहां ईटीवी भारत की टीम को प्रसव, इमरजेंसी, ओपीडी वार्ड में अग्निशमन यंत्र मात्र दो दिखे. जिनकी रिफिलिंग भी खत्म हो चुकी है. आलम ये है कि पूरे अस्पताल कैंपस में रेत से भरी बाल्टी भी कहीं नहीं दिखी, जिससे आग लगने पर बुझाया जा सके.