जमशेदपुर:बशीर बद्र ने एक शेर लिखा है..'उड़ने दो परिदों को अभी शोख हवा में..फिर लौट के बचपन के जमाने नहीं आते'. खेलने-कूदने की उम्र में बच्चों को बेड़ियों से बांधा जा रहा है. बाल विवाह ऐसी ही बेड़ी है जिसके दंश में बचपन फंसता जा रहा है. आंकड़ों को देखें तो बाल विवाह के मामले में झारखंड तीसरे स्थान पर है. जागरूकता के बावजूद 38 प्रतिशत बाल विवाह झारखंड में ही होते हैं. पिछले तीन सालों में जमशेदपुर में कुल 216 बाल विवाह के मामले सामने आए हैं. इसमें 94 मामले चाइल्ड लाइन ने रोके हैं. चाइल्ड लाइन की अध्यक्ष प्रभा जायसवाल बताती हैं कि बाल विवाह के ज्यादातर मामले ग्रामीण क्षेत्रों में आते हैं. जब इसे रोकने जाते हैं तो समाज सही नहीं मानता है. लोग कहते हैं कि एक पवित्र काम हो रहा है और उसमें अड़चन डाला जा रहा है. लोग बड़ी मुश्किल से समझते हैं और कई बार लोग मानने को तैयार नहीं होते.
शिक्षा के अभाव के कारण बाल विवाह
शिक्षा का अभाव और पुरानी सोच की बेड़ियों में जकड़े लोग यह मानने को तैयार नहीं होते हैं कि बाल विवाह गलत है. चाइल्ड लाइन में कार्यरत उषा महतो बताती हैं कि जब भी इस तरह के मामले की जानकारी आती है तो पहले रेस्क्यू करते हैं और फिर दोनों परिवारों को बैठाकर काउंसलिंग करते हैं. हमारी कोशिश होती है कि उन्हें गाइड करके उनकी सोच बदली जाए. केस का फॉलोअप भी करते हैं. मां-बाप को बच्चियों को पढ़ाने के लिए उत्साहित करते हैं. उन्हें समझाते हैं कि 18 वर्ष के बाद ही बच्चियों की शादी की जाए.
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बाल विवाह रोकने के लिए सख्त कानून