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जमशेदपुर में हर मंगलवार को यहां सजता है शास्त्रीय संगीत का दरबार, दूसरे प्रदेशों से भी कई कलाकार करते हैं शिरकत - हनुमान मंदिर का प्रांगण

जमशेदपुर के बिष्टुपुर क्षेत्र में स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर के प्रांगण में पिछले 30 सालों से हर मंगलवार की शाम शास्त्रीय संगीत का दरबार सजता है. संकट मोचन संगीत समिति की ओर से शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने का लगातार प्रयास किया जा रहा है. जमशेदपुर समेत दूसरे प्रदेशों से शास्त्रीय संगीत के कलाकार यहां आते हैं और कुछ पल में ही अपनी अद्भुत प्रस्तुति से सबका मन मोह लेते हैं.

classical music artists participate in programme organised every tuesday in jamshedpur
तबला वादक बिलाल खान और सितार वादक सुभाष बोस

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Published : Apr 1, 2021, 3:05 PM IST

Updated : Apr 2, 2021, 2:34 PM IST

जमशेदपुर: शास्त्रीय संगीत भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है. देश में शास्त्रीय संगीत के जरिए कई कलाकारों को पहचान मिली है. लेकिन आधुनिकता के दौर में ये धरोहर कहीं विलुप्त होती जा रही है. शास्त्रीय संगीत और लोगों के बीच की दूरी को कम करने की दिशा में ही बिष्टुपुर क्षेत्र में स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर के प्रांगण में हर मंगलवार को शास्त्रीय संगीत का दरबार सजता है. संकट मोचन संगीत समिति की ओर से ये पहल की गई है.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

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हर मंगलवार को शहर के अलावा दूसरे प्रदेशों से शास्त्रीय संगीत के कलाकार यहां आते हैं और कुछ पल में अपनी अद्भुत प्रस्तुति से सबको मंत्रमुग्ध कर देते हैं. शास्त्रीय संगीत के दरबार में आने वाले लोगों को किसी शुल्क का भुगतान नहीं करना पड़ता और ना ही किसी प्रकार का चंदा देना पड़ता है. बस हर मंगलवार को शहर के कोने-कोने से शास्त्रीय संगीत प्रेमी यहां दरबार में आते हैं और संगीत की दुनिया में खो जाते हैं.

सितार वादक सुभाष बोस

शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने का संकल्प

इस परंपरा की शुरुआत करने वाले दयानाथ उपाध्याय बताते हैं कि उनके पिता शास्त्रीय संगीत के प्रेमी थे और वो अपने पिता का संगीत प्रेम देखकर प्रेरित हुए. उनके अंदर भी शास्त्रीय संगीत के प्रति प्रेम भावना जागी और उन्होंने संकल्प लिया कि शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिये वो प्रयास करेंगे. उन्होंने शहर के संगीत के कलाकारों को प्रत्येक मंगलवार को आने का आमंत्रण दिया, जिसके बाद से शास्त्रीय संगीत का दरबार लगने का ये सिलसिला शुरू हो गया. दयानाथ बताते हैं कि शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को पहले अलग-अलग रागों की प्रस्तुति के लिए तैयारी करने को कहा जाता था और मंगलवार के दिन उनके बताए गए राग की प्रस्तुति देनी होती थी. इस सब का बस एक उद्देश्य है, बदलते समय में शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देना.

सोहनी राय चौधरी

संगीत दरबार है सहारयनीय कदम

शास्त्री संगीत के दरबार में तबला वादक बिलाल खान, सनत सरकार, हारमोनियम वादक वीरेंद्र उपाध्याय, सितार वादक सुभाष बोस, चंद्रकांत आप्टे के अलावा कोलकाता से शास्त्री संगीत गायिका सोहनी राय चौधरी समेत कई ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी प्रस्तुति दी है. सोहनी राय चौधरी बताती हैं कि शास्त्रीय संगीत को सीखने वालों की संख्या कम हो रही है. ऐसे में स्कूल में शास्त्रीय संगीत की जानकारी देना जरूरी है. जमशेदपुर शहर में इस तरह का प्रयास काफी सराहनीय कदम है. बड़े शहरों में ऐसे प्रयास करने की आवश्यकता है. हफ्ते में एक दिन मंदिर के प्रांगण में शास्त्रीय संगीत का दरबार मन की शांति देता है.

मंगलवार को लगती है सुरों की महफिल

मंगलवार की शाम शास्त्रीय संगीत के दरबार में हारमोनियम, तबला, सितार और अलग-अलग उतार-चढ़ाव वाले रागों के बीच एक तालमेल देखने और सुनने को मिलता है. भले ही आधुनिक युग में संगीत का स्वरूप बदल गया है, लेकिन सितार वादन और तबला समेत कई पुराने वाद्य यंत्र की धुन आज भी मंत्रमुग्ध कर देती है. जमशेदपुर विमेंस कॉलेज में संगीत के मौजूदा हेड ऑफ डिपार्टमेंट सनातन दीप बताते हैं कि छोटी उम्र से ही वो संकट मोचन संगीत समिति से जुड़े हैं और यहां से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला है. वो बताते हैं कि इस तरह का माहौल वाराणसी और काशी में देखने को मिलता है. इस मंच में आने से संतुष्टि मिलती है.

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नई पीढ़ी भी शास्त्रीय संगीत की दीवानी

ये बेहद गौरव की बात है कि शास्त्रीय संगीत के अखाड़े में आज की पीढ़ी भी शामिल होती है और वो भी शास्त्रीय संगीत के आलाप को सुनने में मग्न देखने को मिलती है. रश्मि का कहना है की आज कल शास्त्रीय संगीत कम सुनने को मिलता है. यहां हर मंगलवार को मनमोहक शास्त्रीय संगीत सुनने का मौका मिलता है. यहां शास्त्रीय संगीत के दरबार में कई ऐसे कलाकार भी आते हैं, जो पिछले कई सालों से लगातार इस दरबार से जुड़े हुए हैं.

कई कलाकारों को मिली पहचान

तबला वादक वीरेंद्र उपाध्याय बताते हैं कि संकट मोचन संगीत समिति की ओर से हर मंगलवार को सजाये गए संगीत के इस दरबार से कई कलाकारों ने देश में अलग-अलग जगहों पर अपनी पहचान बनाई है. शास्त्रीयता अपने देश की एक धरोहर है, इसे आज बचाने की जरूरत है और शास्त्रीय संगीत के बिना कोई भी संगीत अधूरा है. समय के साथ-साथ संगीत और उसके स्वरूप में भी काफी बदलाव हुआ है. वाद्य यंत्र का स्वरूप भी बदल चुका है, जो सिमट कर रह गया है. ऐसे में शास्त्रीय संगीत का इस तरह से आयोजन होना एक सार्थक पहल है.

Last Updated : Apr 2, 2021, 2:34 PM IST

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