दुमका: संथाल परगना महाविद्यालय (एसपी कॉलेज) के समक्ष सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय में अध्ययनरत सभी विभागों के छात्र-छात्राओं ने ओलचिकी लिपि के विरोध में सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया. नाराज विद्यर्थियों का कहना था कि हमारी लिपि देवनागरी है. उसकी जगह ओलचिकी को जबरन नहीं थोपा जाए. इस दौरान छात्र-छात्राओं ने विरोध स्वरूप प्रतीकात्मक तौर पर एक ओलचिकी समर्थक का पुतला भी दहन किया.
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ओलचिकी समर्थक का किया पुतला दहनःदुमका स्थित सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के वैसे छात्र-छात्राएं जो संथाली भाषा में स्नातक , स्नातकोत्तर और पीएचडी कर रहे हैं वे सड़कों पर उतर कर ओलचिकी लिपी का विरोध कर रहे हैं. एसपी कॉलेज के समक्ष इस विरोध-प्रदर्शन में उनका साथ संथाल परगना स्टूडेंट यूनियन के सदस्यों ने भी दिया. सबों ने एक स्वर में कहा कि संथाली भाषा की हमारी लिपि देवनागरी है. इसलिए ओलचिकी को जबरन नहीं थोपा जाए. इस विरोध प्रदर्शन में प्रतीकात्मक स्वरूप एक ओलचिकी समर्थक का पुतला दहन किया गया. इस दौरान छात्र-छात्राएं पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगल अभियान के अध्यक्ष सालखन मुर्मू के विरोध में भी नारेबाजी कर रहे थे. उनका कहना था कि सालखन मुर्मू के द्वारा भी ओलचिकी लिपि को झारखंड में प्रमोट किया जा रहा है.
ओलचिकी को जबरन थोपने का लगाया आरोपःओलचिकी लिपि के विरोध-प्रदर्शन में शामिल छात्र बाबुधन मुर्मू और दिलीप टुडू ने कहा कि ओलचिकी लिपि को झारखंड में जबरन थोपा जा रहा है. यह लिपि संथाली भाषा के लिए कहीं से भी उचित नहीं है. अगर झारखंड सरकार ओलचिकी लिपि समर्थक के दबाव में आकर इसे थोपेगी तो हम विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि संथाली भाषा देवनागरी लिपि में रच-बस गया है. ओलचिकी से हमलोग 100 साल पीछे चले जाएंगे. कुछ लोग यहां के लोगों को पीछे धकेलने की साजिश के तहत इस लिपि को थोपने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं छात्र एंथोनी मुर्मू ने कहा कि संथाली के नाम पर हमारा इतिहास पुराना है. हमने संथाली भाषी की पढ़ाई-लिखाई शुरू कर दी है, इसलिए संथाली के नाम पर हम किसी से समझौता नहीं करेंगे. हमारे लिए केवल और केवल देवनागरी लिपि ही बेहतर है.
देवनागरी लिपि में संथाली की कई पुस्तकें उपलब्धः इस दौरान प्रदर्शन में शामिल सचिन कुमार सोरेन ने कहा कि देवनागरी लिपि में सभी प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध हैं. व्याकरण से लेकर के समृद्ध साहित्य की पुस्तक भी देवनागरी लिपि में उपलब्ध है. ऐसे में ऊपर से लाकर अवैज्ञानिक लिपि टपका देना हमारे लिए कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है. वहीं राजेश पौरिया ने कहा कि देवनागरी लिपि संथाली के लिए सबसे बेहतर और उपयुक्त लिपि है. इसको संथाली के महान साहित्यकार और भाषाविद बाबूलाल मुर्मू आदिवासी ने भी प्रमाणित किया है. ऐसे में हम उसका अपमान नहीं सह सकते.
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संथाली भाषा की पढ़ाई के लिए देवनागरी लिपि ही उपयुक्तः संथाल परगना स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष एल्बिनस हेम्ब्रम ने कहा कि ओलचिकी लिपि के समर्थन का कोई तर्क नहीं है. यहां के पढ़े-लिखे लोग इस चीज को समझ रहे हैं और उनको मुंहतोड़ जवाब देने का मन हम बना चुके हैं. उन्होंने कहा कि संथाली साहित्य की पहचान देवनागरी लिपि से है, न कि ओलचिकी लिपि से. यहां के साहित्यकारों ने अपने खून और पसीने के बल पर देवनागरी लिपि से यहां का संथाली साहित्य खड़ा किया है. कुछ लोग ओलचिकी लिपि का प्रचार-प्रसार अपने राजनीतिक लाभ लेने के लिए कर रहे हैं. पुतला दहन कार्यक्रम में उपस्थित छात्रा सुरूजमुनी मुर्मू ने कहा कि आज हम लोगों ने ओलचिकी लिपि समर्थक का पुतला दहन किया है और हम मांग करते हैं कि झारखंड सरकार नर्सरी से पीजी तक संथाली भाषा की पढ़ाई देवनागरी लिपि से ही शुरू हो.