दुमका: लगातार तीसरे साल कोरोना के प्रकोप और पिछले 2 साल के लॉकडाउन में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की पढ़ाई की हुई है. पूरे देश में बच्चों की पढ़ाई को सबसे ज्यादा क्षति हुई है. दुमका के कुछ विद्यालयों का उदाहरण लेते हैं, जो छात्र-छात्राओं से गुलजार रहते थे, आज वहां वीरानी छाई हुई है. बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन माध्यम से चल रही है. वे घंटों मोबाइल में व्यस्त रहते हैं. हमने कुछ स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों से बात की है कि ऑनलाइन पढ़ाई के संबंध में उनकी क्या राय है.
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ऑनलाइन क्लास को लेकर स्टूडेंट्स की राय: दुमका के स्टूडेंट्स ने बताया कि ऑनलाइन क्लास उन्हें कितना भाता है. क्या वे इसे जारी रखना चाहते हैं या फिर पढ़ाई की इस पद्धति से ऊब चुके हैं. स्टूडेंट्स का कहना है कि असली पढ़ाई तो स्कूल में ही होती थी. ऑनलाइन पढ़ाई से वह शिक्षा नहीं मिल पाती जो स्कूलों में आसानी से सीख लेते थे. वहां अन्य स्टूडेंट्स से मिलते ही आपस में डिस्कशन में भी काफी जानकारी प्राप्त होती थी, जो बिल्कुल समाप्त हो चुका है. इसके साथ ही स्कूल में खेलते कूदते जिससे हमारा शारीरिक और मानसिक विकास भी होता. वह सब कुछ समाप्त हो गया है.
अभिभावक भी बेबस: ऑनलाइन क्लास को लेकर अभिभावकों से भी बात हुई. उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि अब स्कूल खुल ही जाना चाहिए. एक-दो ऐसे भी अभिभावक मिले जिनके 5-6 साल के बच्चों ने आज तक स्कूल का मुंह तक नहीं देखा. लेकिन, हां उन्होंने 2 वर्ष से स्कूल में फीस जरूर जमा किया है और यूनिफॉर्म भी खरीदा लेकिन न तो वे स्कूल गए न ही उस यूनिफॉर्म को पहना. मतलब स्कूल की फीस और यूनिफॉर्म का कोई फायदा नहीं हुआ. ये बच्चे भी ऑनलाइन क्लास पर ही निर्भर रहे. अभिभावक कहते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग के तहत स्कूल खुलना चाहिए. साथ ही साथ छोटे बच्चों के लिए भी कोरोना वैक्सीन की व्यवस्था होनी चाहिए.
चिकित्सक ऑनलाइन पढ़ाई को सही नहीं मानते : बच्चों के स्कूल बंद है और वह ऑनलाइन पढ़ाई पर निर्भर हैं. मोबाइल-लैपटॉप के साथ घंटों नजर आते हैं. इन मामलों पर हमने दुमका के चिकित्सक डॉ दिलीप भगत से जाना कि लगातार ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों पर क्या असर पड़ता है. चिकित्सक ने कहा कि यह तो मजबूरी है कि ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है क्योंकि कोरोना संक्रमण की वजह से सरकार ने स्कूलों को बंद कर रखा है लेकिन लगातार मोबाइल और लैपटॉप के सामने रहने से आंखों पर काफी असर पड़ता है. उन्होंने कहा कि हमने कई केस देखे हैं, जिसमें बच्चों के आंख प्रभावित हो रहे हैं. साथ ही बच्चों में चिड़चिड़ापन आ रहा है. उनका मानसिक विकास सही ढंग से नहीं हो पा रहा है. घंटों मोबाइल लेकर अकेले कमरे में बंद रहने से वे एकाकीपन के भी शिकार हो रहे हैं.
स्टूडेंट्स, गार्जियन और चिकित्सा तीनों की राय में अब स्कूल खुल ही जाना चाहिए. एक तरफ़ डॉक्टर सीधे तौर पर ऑनलाइन पढ़ाई को बच्चों के लिए सही नहीं मानते हैं. इधर अभिभावक भी चाहते हैं कि अब कुछ पाबंदियां और बेहतर व्यवस्था के साथ स्कूल खुल ही जाए. स्टूडेंट्स भी मानते हैं कि स्कूल की ही पढ़ाई बेहतर थी. ऐसे में हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार इस पर ध्यान देगी और बहुत जल्द स्कूलों में बच्चों का शोरगुल फिर से नजर आएगा.