दुमका: 1980 से संथाल परगना झामुमो का गढ़ रहा है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही महागठबंधन सरकार ने 1932 तक संथाल परगना में चले गैंजर्स सेटेलमेंट के आधार पर स्थानीय नीति बनाने का निर्णय लेकर अपना वादा पूरा किया है. भविष्य में होने वाले चुनाव में झामुमो को इसका सीधा लाभ मिलने के आसार हैं. खास कर अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षित विधानसभा सीटों पर झामुमो को लाभ मिलना तय माना जा रहा है. वर्तमान समय में झामुमो का यहां की अनुसूचित जनजाति सुरक्षित सभी 07 सीट पर तो कब्जा है ही साथ ही साथ दो सामान्य सीट नाला और मधुपुर भी झामुमो के पास है. (1932 Khatian Based Domicile Policy)
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आईए अब तक के समीकरण पर डालें नजर: संथाल परगना (Politics of Santhal) के 18 में से एसटी के लिए सुरक्षित 07 विधानसभा सीटों पर वर्तमान समय में झामुमो का काबिज है. वैसे कई दशक से इन सात सीटों पर झामुमो का ही दबदबा रहा है. इसमें से अपवाद स्वरूप एक-दो सीटों को छोड़ दें तो अधिकांश सीटों पर झामुमो का कब्जा रहा है. ये सीट हैं - बरहेट, बोरियो, लिट्टिपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, जामा और दुमका.
इन सभी सीटों पर आदिवासियों की बहुलता रही है जो शत प्रतिशत 1932 के खतियान धारी हैं. दुमका विधानसभा सीट पर लगभग 70 % जनसंख्या 1932 के दायरे में हैं.। जबकि अन्य छह सीट पर यह आंकड़ा 90% पहुंच जाएगा. पूर्व के विधानसभा चुनाव की बात करें तो एक-दो बार एसटी वोटों के बिखराव होने पर झामुमो को दुमका और जामा सीट गंवानी भी पड़ी है. अब खतियान आधारित स्थानीय नीति बनाने के निर्णय की वजह से आदिवासी और मूलवासी वोटों के गोलबंदी और झामुमो का जनाधार और मजबूत होने के दावे किये जा रहे हैं.
हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन (फाइल फोटो) विधानसभा वार क्या है स्थिति: अब हम विधानसभा वार उन 07 सीटों की चर्चा करते हैं जो संथाल क्षेत्र की एसटी सुरक्षित सीट है. शुरुआत करते हैं दुमका से.
दुमका विधानसभा: दुमका एसटी सुरक्षित विधानसभा सीट पर गौर करें तो 1980 से 2000 के बीच सम्पन्न पांच चुनावों में झामुमो के टिकट पर प्रो स्टीफन मरांडी लगातार चुनाव जीतते रहे लेकिन 2005 में प्रो स्टीफन मरांडी को झामुमो ने टिकट से बेदखल कर दिया तो वे निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे और झामुमो-भाजपा को गहरी शिकस्त देकर जीत दर्ज कर ली. 2009 में दुमका विधानसभा सीट जीत कर हेमंत सोरेन पहली बार विधायक बने और अपने इसी कार्यकाल में वे राज्य के डिप्टी सीएम और फिर 14 महीने के लिए सीएम भी बने. 2014 में दुमका सीट पर बतौर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पराजय का सामना करना पड़ा और पहली बार इस सीट पर भाजपा की लुईस मरांडी कमल खिलाने में सफल हुई. लेकिन 2019 में भाजपा अपनी इस सीट को नहीं बचा पायी. उपचुनाव में भी झामुमो ने इस सीट पर कब्जा बरकरार रखा और शिबू सोरेन के छोटे पुत्र बसंत सोरेन ने पहली बार आम चुनाव में शामिल होकर अपनी जीत दर्ज की.
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जामा सीट: ST के लिए सुरक्षित जामा सीट पर भी 2005 को छोड़ दें तो 1980 से झामुमो का कब्जा रहा है. इस सीट से झामुमो के टिकट पर देवान सोरेन, शिबू सोरेन, मोहरील मुर्मू, शिबू सोरेन के बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन (अब दिवंगत) और अब उनकी पुत्रवधू सीता सोरेन लगातार विधायक चुनी जाती रही हैं. यह क्षेत्र भी आदिवासी-मूलवासी बहुल क्षेत्रों में शुमार है.
शिकारीपाड़ा सीट: ST रिजर्व शिकारीपाड़ा विधानसभा सीट पर तो जैसे झामुमो ने रजिस्ट्री करा ली है. 1980 से अब तक लगातार यह झामुमो के कब्जे में है. 1980 और 1985 में झामुमो के डेविड मुर्मू विधायक चुने गए. वहीं 1990 से अब तक नलिन सोरेन लगातार सातवीं बार विधायक चुने जाते रहे हैं. इस क्षेत्र में आदिवासी और मूलवासियों जो 1932 के खतियानी हैं उनकी गोलबंदी की वजह से कांग्रेस, राजद, भाजपा और जदयू के जोरदार प्रयास के बावजूद अपना खाता नहीं खोल पायी है.
लिट्टिपाड़ा विधानसभा क्षेत्र: पाकुड़ जिला अंतर्गत लिट्टीपाड़ा झामुमो के मजबूत जनाधार वाले क्षेत्रों में शुमार है. इसे भी आप बोलचाल की भाषा में झामुमो का खरीदा सीट कह सकते हैं. इस सीट से झामुमो के टिकट पर साइमन मरांडी, उनकी पत्नी सुशील हांसदा, अनिल मुर्मू (अब तीनों दिवंगत) विधायक चुने जाते रहे हैं. वर्तमान में झामुमो के टिकट पर दिवंगत साइमन मरांडी के पुत्र दिनेश विलियम्स मरांडी विधायक हैं.
बरहेट, बोरियो और महेशपुर में झामुमो की स्थिति मजबूत: एसटी सुरक्षित बरहेट, बोरियो और महेशपुर विधानसभा क्षेत्र भी झामुमो के मजबूत जनाधार वाले क्षेत्रों में शुमार है. बरहेट सीट पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन स्वयं विधायक हैं. वे लगातार दो बार यहां से जीत चुके हैं. इससे पहले इस सीट से झामुमो के कभी कद्दावर नेता रहे हेमलाल मुर्मू कई बार विधायक रह चुके हैं. बोरियो सीट पर झामुमो के लोबिन हेम्ब्रम पिछले कई चुनावों में जीत हासिल कर विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. महेशपुर विधानसभा क्षेत्र पर भी 1980 से झामुमो का दबदबा रहा है. हालांकि बीच में एक बार 2009 में झाविमो के मिस्त्री सोरेन ने जीत दर्ज की थी. 1980 में पहली बार महेशपुर क्षेत्र में झामुमो के टिकट पर देवीधन बेसरा विधायक चुने गये थे. इसके बाद सुफल मरांडी और अब पिछले दो बार से झामुमो के प्रो स्टीफन मरांडी विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. कुल मिलाकर देखा जाय तो संथाल परगना के इन सभी सात सीटों पर पिछले चार दशक से झामुमो की पकड़ मजबूत रही है.
संथाल की दो सामान्य सीट पर भी JMM का है कब्जा: संथाल के एसटी सुरक्षित सीट की बात करने के बाद अब हम चर्चा करते हैं उन दो सीट मधुपुर और नाला की जो अनारक्षित हैं और वर्तमान में उस पर झामुमो के विधायक हैं.
मधुपुर विधानसभा: मधुपुर सीट पर वर्तमान समय में झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है. यहां से राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हुसैन विधायक हैं. 2019 के आम चुनाव में हाजी हुसैन अंसारी यहां से विधायक चुने गए थे. उनके असमय निधन के बाद उनके पुत्र उपचुनाव में विधायक बने. हम आपको बता दें कि मधुपुर विधानसभा सीट में ज्यादातर शहरी क्षेत्र की आबादी है. इस वजह से यहां भाजपा और झामुमो की उठापटक चलती रहती है. 2005 में यहां के विधायक भाजपा के राज पालिवार थे. 2009 में झामुमो के हाजी हुसैन अंसारी चुने गए. फिर 2014 में भाजपा के राज पालिवार ने जीत दर्ज की और रघुवर सरकार में मंत्री भी बने. 2019 में फिर से हाजी हुसैन अंसारी जीत गये और वे हेमंत कैबिनेट में शामिल हुए.
नाला विधानसभा: संथाल परगना के नाला विधानसभा क्षेत्र में पूरी तरह से आदिवासी और मूलवासी निवास करते हैं. वर्तमान में यहां के विधायक झामुमो के रवींद्र नाथ महतो हैं जो कि झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष है. उन्होंने 2019 के पहले 2014 का भी चुनाव जीता था. इसके पहले 2009 में यह सीट भाजपा के खाते में गई थी और सत्यानंद झा बाटुल विधायक बने थे जिन्हें अर्जुन मुंडा मंत्रिमंडल में जगह मिली थी.
1932 का खतियान लागू होने के बाद क्या रहेगी स्थिति:अब सरकार द्वारा खतियान आधारित स्थानीय नीति बनाने के निर्णय से संथाल के इन सभी 07 एसटी सुरक्षित सीटों पर झामुमो का जनाधार और मजबूत होने के कयास लगाए जा रहे हैं. पहले से यह क्षेत्र झामुमो का मजबूत किला रहा है. जिस पर 1932 का कवर चढ़ गया. जिसे भेदना किसी की पार्टी के लिए काफी मुश्किल साबित होगा.
क्या कहते हैं विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र महतो: नाला विधानसभा सीट से झामुमो के टिकट पर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करने वाले रवींद्र महतो वर्तमान में झारखंड के विधानसभा अध्यक्ष हैं. उनका कहना है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य की जनता के लिए 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता की घोषणा की है. यह समस्त आदिवासियों और मूलवासियों के हित में है. उन्होंने कहा कि जब किये गए वायदे पूरे होते हैं और अगर कोई अच्छा काम होता है तो इसका फायदा निश्चित रूप से पार्टी को मिलता है. उन्होंने कहा कि जहां तक मेरे विधानसभा क्षेत्र की बात है तो लगभग शत-प्रतिशत जनता 1932 को कवर कर रही है. पूरे राज्यवासियों की तरह हमारे क्षेत्र की भी जनता इस कदम से काफी खुश है. जहां तक चुनाव की बात है तो जनता के हित में काम होते ही रहते हैं. सभी कार्यों को चुनाव के जीत-हार से जोड़ना या फिर उसमें राजनीतिक लाभ देखने का कार्य झामुमो नहीं करता.
क्या कहते हैं मंत्री हफीजुल हसन: 1932 के बाद झामुमो के राजनीतिक परिदृश्य के संबंध में मधुपुर के विधायक और राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन कहते हैं कि इसका निश्चित रूप से बड़ा फायदा होगा. हमने जो कहा उसे पूरा किया. जहां तक मधुपुर विधानसभा क्षेत्र की बात है तो 80% से अधिक जनसंख्या 1932 को कवर कर रही है. यह पूछे जाने पर कि आपने सिर्फ 5200 के अंतर से अपना चुनाव जीता था तो आने वाले चुनाव में इसमें बढ़ोतरी की संभावना देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस उपचुनाव में मैं प्रत्याशी था उस वक्त वोटों का ध्रुवीकरण हुआ था और इसी वजह से जीत का अंतर कम था लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं होगी. इसके साथ ही हेमंत सोरेन के द्वारा किए गए वायदों को पूरा करने से पूरे राज्य की तरह मधुपुर की जनता काफी खुश है तो जाहिर है वह आने वाले समय में झामुमो को भरपूर प्यार देगी.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: झामुमो ने जो वर्तमान समय में संथाल क्षेत्र के 18 में 09 सीट जीत रखे हैं. 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता के लागू होने से उन सीटों की आने वाले चुनाव में क्या स्थिति होगी इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक शिवशंकर चौधरी से ईटीवी भारत की टीम ने बात की. उन्होंने कहा कि जो एसटी के लिए रिजर्व है उस पर तो झामुमो की मजबूती और नजर आएगी. जबकि दो अन्य सीट नाला और मधुपुर जिसमें अभी झामुमो का कब्जा है उसमें इस 1932 के अतिरिक्त कई और फैक्टर कार्य करेंगे. मधुपुर में तो एक महत्वपूर्ण फैक्टर हिंदुत्व का रहता है वह आगे भी रहेगा. जबकि नाला विधानसभा में आदिवासी और मूलवासी की संख्या काफी अधिक है. ऐसे में यह आकलन किया जा सकता है कि झामुमो की स्थिति और मजबूत होगी. वैसे भी नाला सीट भाजपा के लिए ज्यादा अनुकूल नहीं रही है. यहां चार दशक तक तक कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा रहा है. कांग्रेस और भाजपा ने एक-एक बार जीता है जबकि झामुमो ने तीन बार.
अपना गढ़ और मजबूत करने में सफल होगी झामुमो:इस तरह से हम देख रहे हैं कि संथाल क्षेत्र जो झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ माना जाता है. खास तौर पर अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित सीटों पर झामुमो को हराना काफी मुश्किल साबित होता आया है, वह स्थिति और मजबूत होने वाली है. इसके साथ ही हेमंत सोरेन के किये गए कार्यों को गिनाकर झामुमो अन्य सीटों पर भी लाभ लेने का पुरजोर प्रयास करेगा.