झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

ना क्लास रूम और ना ही ब्लैक बोर्ड, छात्रावास में पढ़ने को मजबूर हैं यहां की छात्राएं - etv bharat jharkhand

एक ओर सरकार शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लंबे-लंबे दावे करती है दूसरी ओर पुराने बने स्कूलों की हालत तक में सुधार करने के प्रति सरकार लापरवाह हो रही है. इसी लापरवाही का असर है कि दुमका का इंटरस्तरीय बालिका उच्च विद्यालय आज ऐसी हालत में पहुंच गया है कि यहां छात्राएं मौत के साए में जीने को मजबूर हो गए हैं.

जर्जर हालत में इंटरस्तरीय बालिका उच्च विद्यालय

By

Published : Aug 22, 2019, 9:34 PM IST

दुमका: जॉर्ज वाशिंगटन करवर ने कहा था शिक्षा स्वतंत्रता के स्वर्ण द्वार खोलने की कुंजी है. स्वतंत्रता के मायने भी यही है कि इंसान मानसिक रुप से स्वतंत्र हो और यह स्वतंत्रता सिर्फ शिक्षा से ही आ सकती है. लेकिन यह विडंबना ही है कि भारत की आजादी के 72 वर्ष बीत चुके हैं, इसके बावजूद हम शिक्षा के स्तर को बढ़ाने में कुछ उल्लेखनीय योगदान नहीं दे पाए हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

इंटरस्तरीय बालिका उच्च विद्यालय हो चुका है पूरी तरह जर्जर
शिक्षा के लिए हर सरकार लंबे-लंबे दावे तो करती है, कई योजनाएं चलाती है. शिक्षा में भारत बुलंदियां छू रहा है इसके सपने दिखाए जाते हैं लेकिन ऐसा क्यों है कि शिक्षा कभी किसी की प्राथमिकता नहीं बन पाया है. जब भी बात शिक्षा की होती है हम नए कॉलेज- नए इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करते हैं लेकिन पुराने को बेहतर करने की ओर हमारा ध्यान कम ही जाता है. शायद यही कारण है कि दुमका शहर के बीचों-बीच अंबेडकर चौक के समीप इंटरस्तरीय बालिका उच्च विद्यालय आज पूरी तरह जर्जर हो चुका है लेकिन इसकी जवाबदेही लेने के लिए कोई तैयार नहीं है.

यह भी पढ़ें-रांची: 360 छात्राओं की जान खतरे में, कल्याण विभाग का स्कूल बना टापू

छात्रावास में पढ़ने को मजबूर हैं छात्राएं
इस विद्यालय की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि यहां पढ़ रही बच्चियों के सर पर हमेशा डर का साया मंडराता रहता. यहां के छत के बड़े-बड़े टुकड़े कई बार गिर चुके हैं. जिससे बच्चों की जान को जोखिम होने का खतरा रहता. इस को देखते हुए स्कूल के सुधार के लिए कोई पहल तो नहीं की गई. बल्कि प्रबंधन ने एक मध्य मार्ग निकाला और इन बच्चियों के हॉस्टल को ही स्कूल में तब्दील कर दिया. अब आलम यह है कि ये छात्राएं आज छात्रावास के छोटे-छोटे कमरे में जमीन पर बैठकर जैसे-तैसे पढ़ने को मजबूर हैं. यहां तक कि इस नए क्लास रूम में ब्लैक बोर्ड तक का अभाव है, शिक्षक बोल-बोलकर ही पढ़ा सकते हैं.


क्या कहती है जिला शिक्षा अधिकारी
भवन की ऐसी हालत को देखते हुए जिला शिक्षा अधिकारी पूनम कुमारी का भी कहना है कि नए भवन का निर्माण किया जाना चाहिए. विद्यालय के इन हालातों में पढ़ाई मुश्किल है लेकिन अभी तक व्यवस्था में सुधार की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है. जबकि यह तो सोचने वाली बात है कि शिक्षा के इस जर्जर मंदिर में बच्चे पढ़ेंगे भी तो आखिर कैसे.

ABOUT THE AUTHOR

...view details