दुमकाः झारखंड की धरती पर कभी राजशाही शान हुआ करती थी. कई राजाओं के बनाए किले आज भी उनकी दास्तां बयां करती है. दुमका में कभी पहाड़िया राजा दिग्विजय सिंह का राज हुआ करता था. लेकिन 200 वर्ष पूर्व निर्मित राजा का किला बदहाल स्थिति में है. संथाल परगना की ऐतिहासिक धरोहर आज धूमिल होती जा रही है. इसके लिए राजा के वंशज और ग्रामीण इसे विकसित करने की मांग कर रहे हैं.
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सरकार ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने की बात करती है. लेकिन उनका ध्यान दुमका में खंडहर में तब्दील हो चुके पहाड़िया राजा दिग्विजय सिंह के किले पर नहीं है. राजा दिग्विजय सिंह का किला आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. आलम ऐसा है कि देखरेख के अभाव में अब ये किला खंडहर में तब्दील होता नजर आ रहा है. लगभग 200 वर्ष पहले संथाल परगना के बड़े इलाके में शंकरा ईस्टेट के राजा दिग्विजय सिंह का राज हुआ करता था. दिग्विजय सिंह पहाड़िया समुदाय से थे. इनके शंकरा ईस्टेट की राजधानी गांदो हुआ करती थी.
दुमका शहर से 12 किलोमीटर दूर सदर प्रखंड के गांदो में राजा दिग्विजय सिंह का किला मौजूद है. पांच एकड़ भूमि पर ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा यह किला राजा दिग्विजय सिंह के वैभवशाली इतिहास की गवाही देता है. किला के सामने एक पत्थरों से बना एक बड़ा हॉलनुमा स्थान है. ऐसा कहा जाता है कि यहां पर राजा का दरबार लगता था, इसके साथ ही कई अन्य संरचना भी हैं. लोगों का कहना है कि यहां अस्तबल हुआ करता था, जिसमें घोड़े-हाथी बंधे रहते थे. लेकिन लंबा वक्त बीतने और देखरेख के अभाव में इस किले की स्थिति आज बदहाल है.
क्या कहते हैं स्थानीयः ईटीवी भारत की टीम जब गांदो पहुंची तो वहां स्थानीय लोग किला के पास ही मिल गए. वो अपने राजा की वीर गाथाओं की चर्चा करने लगे. साथ ही साथ उन्हें इस बात का भी फक्र था कि वो ऐसी जगह रहते हैं जहां पर राजा दिग्विजय सिंह ने अपनी अमिट छाप छोड़ रखी है, उन्होंने अंग्रेजों से कई युद्ध भी लड़ा था. वो कहते हैं कि आज राजा का किला जर्जर हो गया है, सरकार और जिला प्रशासन को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
जीर्णशीर्ण अवस्था में पहाड़िया राजा का किला क्या कहते हैं राजा के वंशजः राजा दिग्विजय सिंह के वंशज मनोज सिंह पहाड़िया जो दुमका शहर में रहते हैं. वो बताते हैं कि लगभग 1820-30 के बाद उनका शासन पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला के सीमा से सटे संथाल परगना के क्षेत्र से शुरू होकर मयूराक्षी नदी के तट होते हुए दुमका से सुंदर पहाड़ी (वर्तमान में गोड्डा जिला का क्षेत्र) तक फैला था. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. अंग्रेज जब इधर आकर कर की मांग करने लगे उन्होंने अंग्रेजों को चुनौती देते हुए कर देने से साफ मना कर दिया था.
राजा दिग्विजय सिंह का बनाया किला बदहाल इसलिए शंकरा ईस्टेट को नॉन कर ईस्टेट भी कहा जाता था. राजा दिग्विजय सिंह 1855 की हूल क्रांति में वीरगति को प्राप्त हुए थे. मनोज पहाड़िया कहते हैं कि हमारे राजा का किला बदहाल है और हमारे पास इतने पैसे नहीं है इसे संवार सके. इसके लिए उन्होंने झारखंड सरकार को कई पत्र लिखा कि इसे संरक्षित किया जाए ताकि संथाल परगना की ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर लोग इसे देखने आएं.
क्या कहते हैं पर्यटन मंत्रीः शंकरा ईस्टेट के राजा दिग्विजय सिंह के किला को ऐतिहासिक स्थल के तौर पर विकसित करने की मांग सरकार से की गयी है. इस मामले में ईटीवी भारत ने झारखंड सरकार के पर्यटन मंत्री हफीजुल हसन से फोन पर बात की है. उन्होंने कहा कि वो वहां की सारी जानकारी प्राप्त करते हुए आवश्यक कदम उठाएंगे. लगभग 200 वर्ष पुराने इस किले के पीछे कई ऐतिहासिक तथ्य छुपे हुए हैं. अभी-भी समय है सरकार इस पर ध्यान दें और इसे धरोहर के रूप में संरक्षित करें ताकि आने वाले समय में लोग अपने इतिहास से रूबरू हो सकें.