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गोद लिए बालीजोर गांव का लालन-पालन करने में प्रशासन असमर्थ! आदर्श ग्राम का हाल-बेहाल - दुमका शिकारीपाड़ा प्रखंड

आदर्श ग्राम, जहां बुनियादी सुविधाएं हों, लोगों को जीवन यापन के लिए पर्याप्त रोजगार हो. जहां शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक की मुकम्मल व्यवस्था हो. लेकिन सिर्फ कागजों में ग्राम को आदर्श बना देना, गोद लिए गांव के लोगों के साथ नाइंसाफी है. इसी तरह की उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं, दुमका का आदर्श ग्राम बालीजोर के लोग. तीन साल बीतने को है, अब भी इस गांव को प्रशासनिक मेहर का इंतजार करते-करते.

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Published : Aug 8, 2021, 8:10 PM IST

दुमकाः जिला प्रशासन ने शिकारीपाड़ा प्रखंड के बालीजोर गांव को 2018 में गोद लेते हुए आदर्श गांव घोषित किया था. लेकिन तीन साल बाद भी बालीजोर से लोगों को विकास का इंतजार है. इसको लेकर लोगों में मायूसी है. उन लोगों को सबसे ज्यादा दुख हैं, जिन्होंने इस भवन के लिए जमीनें दी. क्योंकि उनके त्याग उनको परिणाम आज तक नहीं मिला.

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साल 2018 में बालीजोर गांव को गोद लेने के बाद यहां विकास के दावे किए गए. यहां की महिलाओं को रोजगार से जोड़ने की बात हुई थी पर ऐसा हुआ नहीं. अभी गांव में कई प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाए गए मकान महीनों से खाली पड़े हैं. सिंचाई के लिए ग्रामीण इंद्रदेव पर ही निर्भर रहते हैं. बच्चों के लिए एक सुसज्जित पार्क भी बना, मगर उस पर ताला लटका है.

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क्या कहते हैं ग्राम वासी
बालीजोर गांव के लोगों का कहना है कि जब पूरे तामझाम के साथ हमारे गांव को गोद लिया गया. जिसके बाद इसे आदर्श ग्राम घोषित किया गया. उस वक्त हम लोगों को लगा था कि अब हमारे गांव का विकास होगा पर ऐसा नहीं हुआ. ग्रामीणों ने कहा कि आज तीन साल होने को हैं, पर गांव में विकास के नाम पर कुछ नहीं मिला, जिससे हमें मायूसी हासिल हुई है.

मायूस ग्रामीण
एक साल से कई प्रधानमंत्री आवास लंबितगांव के सुमाय सोरेन ने बताया कि हमारे पिता के नाम से प्रधानमंत्री आवास आवंटित हुआ था. इसमें पहली किश्त की राशि जो मिली उससे हम लोगों ने मकान का काम कराया. लेकिन उसके बाद पिता की मौत हो गई. हमने प्रयास किया कि बकाया राशि का भुगतान हो जाए, पर ऐसा नहीं हुआ, जिससे हमारा आवास आज तक अधूरा है. सोमाय का साथ देते हुए एक अन्य ग्रामीण उजिन सोरेन ने बताया कि लगभग एक वर्ष से गांव में हमारे गांव में लगभग 50 प्रधानमंत्री आवास हैं, जो किसी ना किसी वजह से अधूरे पड़े हुए हैं. बालीजोर के ग्रामीण इस अधूरे मकान को जल्द पूरा कराने की मांग कर रहे हैं.

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विकास कार्यों के लिए जमीन देने वाले नरेंद्र दुखी
इस गांव की महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए चप्पल बनाने का काम सिखाया गया. गांव के नाम से ही ब्रांड का नाम बाली फूटवेयर रखा गया. इसमें प्रशासन को कच्चा माल देना था और गांव की महिलाएं उसका चप्पल बनाकर फिर से प्रशासन को इन फुटवियर को सरकार की ओर से संचालित आवासीय विद्यालय में सप्लाई देना था. लेकिन सारी योजना धरी-की-धरी रह गई और चप्पल बनाने का काम बंद हो गया.

प्रशिक्षण केंद्र में ताला

यहां खास बात है कि लगभग दो करोड़ की लागत से इस गांव में चप्पल बनाने का प्रशिक्षण केंद्र का भवन और फैक्ट्री बिल्डिंग का निर्माण शुरू हो गया. दोनों बिल्डिंग के लिए जमीन गांव के नरेंद्र ने दी थी. अब तो दोनों भवन बन चुका है, पर काम शुरू होने से जमीन देने वाले नरेंद्र काफी मायूस हैं. उनका कहना है कि हमने तो गांव और गांव वासियों की बेहतरी के लिए अपनी कीमती जमीन दी थी, पर यहां तो सब कुछ बंद हो गया.

प्रशासन इस पर उठाए आवश्यक कदम
सरकार और जिला प्रशासन की महत्वाकांक्षी योजना का फायदा लोगों को नहीं पहुंच सका. योजना के फेल होने की वजह यह है कि इसका फॉलोअप नहीं किया गया. जरूरत है चप्पल बनाने का प्रशिक्षण और उसके लिए फैक्ट्री शुरू करने की. जिससे आदर्श ग्राम बालीजोर को अभी-भी सजाया-संवारा जा सकता है.

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