दुमका:कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया. लंबे समय तक लॉकडाउन के बाद अनलॉक हुआ. कोरोना काल के दौरान दुमका के लगभग 20 हजार मजदूर जो दूसरे राज्यों में काम करते थे, उन्हें बस, ट्रेन और हवाई जहाज के माध्यम से वापस लाया गया. बाहर से आए मजदूरों के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजी-रोटी की थी. ऐसे में मजदूरों को रोजगार देने में मनरेगा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. साल 2020 में दुमका में जून महीने तक 52 हजार मजदूरों को मनरेगा के तहत काम मिला. हालांकि बाद में जब अनलॉक हुआ तो मजदूर फिर से काम के लिए अपने पुराने संस्थानों में वापस लौटने लगे. धीरे-धीरे यह संख्या 25 हजार तक पहुंच गई.
आंकड़ों पर एक नजर2020 के मार्च में जब लॉकडाउन लगा और उसके बाद अप्रैल में गरीबों को परेशानी शुरू हो गई. झारखंड सरकार ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराए. अप्रैल में तीन हजार मजदूरों को रोजगार दिया गया. अप्रैल से मई में यह आंकड़ा दस गुणा बढ़ गया. मई में 30 हजार मजदूरों को काम मिला. जून में प्रवासी मजदूर घर वापस लौटने लगे. इन प्रवासी मजदूरों को रोजगार से जोड़ना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती थी. प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के लिए जिला प्रशासन ने रजिस्ट्रेशन करवाना शुरू किया. जिन मजदूरों को मनरेगा जॉब कार्ड था उसे काम दिया गया और जिनके पास नहीं था उनका जॉब कार्ड्स बनाया गया. इस दौरान 9438 मजदूरों का नया जॉब कार्ड बना. झारखंड सरकार ने मनरेगा के तहत दुमका में रिकॉर्ड 52 हजार लोगों को काम से जोड़ा.
परिस्थितियां बदली और सरकार ने अनलॉक की घोषणा की
जुलाई से फिर से लोग काम के लिए अपने घर से वापस पुराने स्थान की ओर जाने लगे. इससे मनरेगा से जुड़े मजदूरों की संख्या में कमी आई और जुलाई के अंत में यह आंकड़ा 25000 पहुंच गया. 25 से 30 हजार के बीच मनरेगा मजदूरों की यह संख्या सितंबर-अक्टूबर तक जारी रही. हालांकि बाद में राज्य सरकार ने मनरेगा के तहत कुछ नई योजनाओं की शुरुआत की, जिसमें सोख पिट का निर्माण, कंपोस्ट पिट का निर्माण, रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर का निर्माण और दीदी बाड़ी योजना शामिल हैं. इससे फिर से नए लोगों को जोड़ा गया और अक्टूबर - नवंबर तक मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों की संख्या फिर से बढ़ी और यह आंकड़ा 35 हजार पहुंच गया. दिसंबर में दुमका में खरीफ फसल के खेतों में हार्वेस्टिंग का समय होता है, जिसके कारण फिर मनरेगा मजदूरों की संख्या घटी और दिसंबर में आंकड़ा 30 हजार पहुंच गया.
क्या कहते हैं मनरेगा मजदूर
मनरेगा कार्य से जुड़े मजदूरों का कहना है कि इस योजना ने हमें रोजगार दिया है, जिससे हमें आजीविका का साधन मिला. सदर प्रखंड के जरका गांव में मनरेगा के बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत 34 एकड़ में फलदार वृक्ष लगाए गए हैं. इसमें काम कर रहे मुकेश राय ने बताया कि लॉकडाउन के समय में बेंगलुरु में फंस गया था, उसके बाद राज्य सरकार के प्रयास से वापस घर आया, अब हमें गांव में ही काम मिल गया है, अब जब यहां काम मिल गया तो बाहर नहीं जाना है. हालांकि इस गांव के बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं जो लॉकडाउन के समय बाहर से अपने घर लौटे. मनरेगा के तहत रोजगार प्राप्त किया, लेकिन जब अनलॉक हुआ तो वे वापस अन्य राज्यों में लौट गए. वहीं गांव के अमित राय का कहना है कि गांव में ही हमें काम मिल गया है. रोजगार सेवक जवाहर ने बताया कि यह योजना काफी लोगों को रोजगार दे रहा है, जिससे उन्हें रोजी-रोटी मिल रही है.
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क्या कहती हैं जिले की उपायुक्त
उपायुक्त राजेश्वरी बी ने बताया कि मनरेगा के तहत पहले तालाब, सड़क जैसे आधारभूत संरचना का निर्माण होता था, लेकिन अब राज्य सरकार ने इसके तहत कई अन्य योजनाओं की शुरुआत की है, जो सफल रहा है. उन्होंने कहा कि 20 हजार से अधिक प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के समय दुमका आए थे और मनरेगा ने उन्हें सफलतापूर्वक रोजगार दिया, आज भी यह योजना काफी प्रभावी है, दुमका का रोजगार के सृजन के मामले में रिकॉर्ड पूरे राज्य में बेहतर रहा.