दुमका:जैसे-जैसे अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन की तिथि नजदीक आ रही है. वैसे-वैसे देश के कोने-कोने से वैसे रामभक्त सामने आ रहे हैं. इसी कड़ी में एक नाम है दुमका के मंगल मंडल का. मंगल ने संथाली भाषा में रामायण लिखी है. इतना ही नहीं वे इसे अपने खर्चे पर प्रकाशित कराकर अब तक 9 हजार से अधिक लोगों के बीच वितरित कर चुके हैं.
रामकथा के वाचन के दौरान आई प्रेरणा:दुमका जिले के सदर प्रखंड के गिडानी पहाड़ी गांव के रहने वाले मंगल डाककर्मी थे और लगभग पन्द्रह वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हो गए. उनकी पत्नी कुमुदिनी हांसदा आदिवासी संथाल समाज से आती थीं. लंबे समय से मंगल गांव-गांव जाकर राम कथा का वाचन करते हैं. वे बताते हैं कि दुमका के अधिकांश गांव में आदिवासी संथाल समाज की बहुलता है. जहां भी मैं राम कथा में सुनाने जाता तो पाता कि संथाल समाज के लोग काफी संख्या में मौजूद हैं. उन्हें मेरी कथा बेहतर तरीके से समझ में नहीं आती थी. यह देखते हुए उन्होंने रामकथा को अपनी पत्नी कुमुदिनी हांसदा के सहयोग से संथाली भाषा में भी सुनाने लगा. यह सिलसिला काफी दिनों तक चला.
इसी क्रम में 2018 में दुमका जिले के रानीश्वर प्रखंड में एक राम कथा पाठ का आयोजन किया गया था और वहां संथाल समाज के लोगों की राम के प्रति आस्था-भक्ति और रामायण को जानने की उत्सुकता देख उन्हें लगा कि क्यों न संथाली भाषा में रामायण लिखी जाए. जिसके बाद उन्होंने पत्नी कुमुदिनी हांसदा के सहयोग से संथाली भाषा में रामायण लिखी. इसका पहला प्रकाशन 2022 में हुआ.
अब तक नौ हज़ार प्रति कर चुके हैं वितरित:मंगल मंडल बताते हैं कि संथाली भाषा में उन्होंने जो रामायण लिखी है वह बहुत सहज शब्दों में अलग-अलग अध्याय में बांटकर लिखी है, ताकि बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी उसे आसानी से पढ़ कर उसे समझ सकें. उन्होंने कहा कि अगर छोटे बच्चे या किशोर उनकी रामायण को पढ़कर समझते हैं तो उसमें रामभक्ति तो जगेगी ही, साथ ही उसमें अच्छे संस्कार भी विकसित होंगे. उनकी किताब का पहला अध्याय राम जानाम कथा से शुरू होकर ताड़का सुबाहु बध, राम आर सीता मुनी वाक बापला (राम-सीता विवाह), रामे लखनाक वनवास (राम लक्ष्मण को वनवास), राजा दशरथ गोजोक़ काथा (राजा दशरथ की मृत्यु की कहानी), सीता हरण होते हुए राम आर रामायण लाड़हाय (राम रावण युद्ध) और रावण बध, आयोध्या ते रूवाड़ोक (अयोध्या वापसी) पर जाकर समाप्त होती है. पुस्तक के अंत में उन्होंने हनुमान चालीसा को भी संथाली भाषा में लिखा है. मंगल मंडल बताते हैं जहां कहीं भी वे राम कथा सुनाने जाते हैं इस किताब को लोगों को देते हैं. अब तक इसकी नौ हजार प्रति का वितरण हो चुका है.