दुमका में कालाजार का प्रकोपः मरीजों की संख्या में गिरावट लेकिन रोग का उन्मूलन कब तक?
कालाजार, जिसका वैज्ञानिक नाम लीशमनियासिस (Visceral leishmaniasis) है. इसके ब्लैक फीवर (Black Fever) भी कहा जाता है. झारखंड के चार जिलों में इस बीमारी का प्रकोप (Kala azar in Dumka) है. दुमका में कालाजार का प्रकोप बरकरार है. पिछले पांच वर्ष में मरीजों की संख्या में गिरावट जरूर आई है. लेकिन कब तक इस रोग का उन्मूलन होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट से जानिए, आखिर क्यों ये होता है और कैसे ये फैलता है.
दुमका
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Published : Aug 6, 2022, 10:46 AM IST
दुमकाः झारखंड में कालाजार रोग का प्रकोप चार जिलों में सबसे ज्यादा है. दुमका, पाकुड़, साहिबगंज और गोड्डा, इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. दुमका जिला की बात करें तो यहां पिछले पांच वर्षों में कालाजार मरीजों की संख्या में लगातार गिरावट आई है. लेकिन स्वास्थ्य विभाग के लाख प्रयास के बावजूद इस जिला से इस रोग का उन्मूलन (Kala azar outbreak continues in Dumka) नहीं हो सका है. इसके पीछे की वजह जानने से पहले इस बीमारी को जानते हैं.
कालाजार क्या है? कालाजार यानी लीशमनियासिस (Visceral leishmaniasis), यह एक व्यक्ति वेक्टर जनित रोग है जो लिश्मैनिया डोनोवानी नामक बैक्टीरिया (Leishmania donovani bacteria) से फैलता है. इसका संक्रमण बालू मक्खी (Sand Fly) के काटने से होता है. यह दो प्रकार का होता है, पहला कालाजार और दूसरा पोस्ट कालाजार डरमल लीशमैनियासिस (Post Kala azar Dermal Leishmaniasis). अगर लिश्मैनिया संक्रमित बालू मक्खी किसी व्यक्ति को काटता है तो कुछ दिनों के बाद उसे बुखार आना शुरू हो जाता है. मक्खी के काटे हुए स्थान पर छोटा सा घाव भी हो सकता है, उसके बाद मरीज को लगातार हल्का बुखार रहने लगता है, धीरे-धीरे वह कमजोर होने लगता है.
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इस बीमारी से मरीज के लीवर और आंत में सूजन आती है, जिससे पेट फूलने लगता है. भूख नहीं लगती, खून की कमी होती है, मरीज का वजन तेजी से गिरता है. अगर समय से रोग की पहचान नहीं हो तो उसके लिए ये जांचें कि त्वचा पतला और काला तो नहीं हो रहा है. मरीज का इलाज का अगर समय पर नहीं हो तो लीवर, आंत या फिर टीबी के बीमारी से ग्रसित होकर उसकी मौत भी हो सकती है.
पोस्ट कालाजार डरमल लीशमैनियासिस (PKDL) की बात करें तो यह वैसे मरीजों को होता है जिन्हें पूर्व में कालाजार हुआ हो, उसका इलाज भी किया गया लेकिन इस बीमारी के कुछ जीवाणु शरीर में ही रह गए. इससे वह छह माह या एक साल के बाद उभर कर सामने आ जाते हैं. पीकेडीएल में एक चर्म रोग है, जो कालाजार के बाद होता है. हालांकि कालाजार के सभी मरीजों में इस बीमारी के लक्षण नहीं मिलते हैं लेकिन कुछेक मरीज कालाजार के बाद PKDL के शिकार हो जाते हैं. इस बीमारी में शरीर के कई भागों में धब्बे नजर आते हैं या फिर छोटी-छोटी गांठ उभर आती है. यही वजह है कि जिन्हें कालाजार होता है उसका इलाज होने के बाद भी उस पर नजर रखी जाती है लेकिन कभी-कभी कुछ मरीजों में पीकेडीएल के लक्षण उभर आते हैं.
कालाजार कैसे फैलता है? कालाजार बालू मक्खी के काटने से होता है. बालू मक्खी मिट्टी के घरों में जो छोटे-छोटे छिद्र होते हैं, उसमें अपना आशियाना बनाते हैं. आमतौर पर यह अंधेरे और नमी वाले जगह में रहते हैं. बालू मक्खी ज्यादा ऊपर और ज्यादा दूर तक उड़ नहीं सकते. ये मक्खी करीब 6 से 7 फीट की ऊंचाई तक ही उड़ सकती है. इन मक्खियों से बचाव के लिए अगर उस पर कीटनाशक का छिड़काव किया जाए तो वह बेजान हो जाते हैं. इसके अलावा इन मक्खियों से बचने के लिए पैर में मोजे पहनने, शरीर को पूरी तरह से ढककर रखना चाहिए. साथ ही घर और आसपास के इलाकों में साफ-सफाई रखने से भी ऐसी मक्खियों का प्रसार रूकता है.
क्या कहते हैं आंकड़ेः दुमका में जरा इस बीमारी के आंकड़ों पर नजर डालते हैं. 2017 से जुलाई 2022 के आंकड़े बताते हैं कि कालाजार मरीजों की संख्या में गिरावट आई है. लेकिन जिला स्वास्थ्य विभाग (Dumka health department) के काफी प्रयास के बाद भी यह बीमारी जड़ से खत्म नहीं हो पाया.
वर्ष
कालाजार/VL
पोस्ट कालाजार डरमल लीशमैनियासिस/PKDL
2017
372
207
2018
198
46
2019
158
25
2020
148
46
2021
88
35
2022(जुलाई तक)
40
17
शीघ्र पहचान होना अति आवश्यकः कालाजार बीमारी की रोकथाम के लिए यह आवश्यक है कि अगर मरीज को लगातार कई दिनों से बुखार आ रहा हो, उसके वजन में गिरावट और खून की कमी के लक्षण, पेट फूल रहा हो तो उसे नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र में जाकर कालाजार की जांच करानी चाहिए. अगर कालाजार डिटेक्ट होता है तो तुरंत ही इसका इलाज कराना चाहिए. भले ही यह खतरनाक बीमारी है लेकिन इसका इलाज चिकित्सक के द्वारा आसानी से हो जाता है, वह भी सरकारी अस्पताल में बिल्कुल मुफ्त इलाज है. चिन्हित मरीजों को इलाज के दौरान पौष्टिक आहार के लिए नकद राशि भी सरकार द्वारा दी जाती है. लेकिन आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्र के मरीज बुखार आने पर पेरासिटामोल या अन्य तरीके से इलाज करते हैं. इतना ही नहीं अशिक्षा और जागरुकता की कमी के कारण वो झोलाछाप डॉक्टर और झाड़-फूंक में लग जाते हैं, जिससे कालाजार का असर बढ़ता जाता है.
दुमका सिविल सर्जन का दावा 2022 में कालाजार का होगा उन्मूलनः कालाजार की रोकथाम के संबंध में ईटीवी भारत ने दुमका सिविल सर्जन डॉ बच्चा प्रसाद सिंह (Dumka Civil Surgeon Dr Bachha Prasad Singh) से बात की. उन्होंने बताया कि दुमका में काफी हद तक इस पर अंकुश लगा है लेकिन अभी भी इसके मरीज हैं, जिनका इलाज चल रहा है. सिविल सर्जन ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में जागरुकता और शिक्षा की कमी की वजह से यह रोग बढ़ता जाता है. अगर समय पर इस बीमारी की पहचान नहीं हो पाई तो यह काफी खतरनाक हो जाता है.
उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग इसके उन्मूलन के लिए वर्षों से जोर शोर से लगा है. गांव-गांव जागरुकता फैलाई जा रही है. अगर कालाजार के केस पाए जाते हैं तो उसका त्वरित इलाज हो रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि जो बीमार चिन्हित होते हैं, उनको खाने-पीने के लिए 6600 रुपये दिए जाते हैं ताकि वो स्वस्थ होने तक घर पर करें. सिविल सर्जन ने दावा किया कि लंबे समय से इसके उन्मूलन के लिए हम लोग प्रयासरत हैं. लेकिन जिस तरह से काम हो रहा है, इसी वर्ष 2022 के अंत तक हमलोग इस पर पूर्ण रूप से काबू पा लेंगे.
क्या कहते हैं उपायुक्तः वैसे तो दुमका का काठीकुंड और जामा प्रखंड कालाजार का प्रभावित क्षेत्र माना जाता है लेकिन अन्य प्रखंडों में भी इसका असर देखा जा रहा है. दुमका के सभी प्रखंडों में जागरुकता रथ निकालकर लोगों को इस बीमारी के प्रति सचेत किया जा रहा है. दुमका डीसी रविशंकर शुक्ला (Dumka DC Ravi Shankar Shukla) ने एक खास जानकारी दी है कि इस रोग का वाहक बालू मक्खी मिट्टी के घरों के दरारों में पाया जाता है, इसलिए इससे जो ग्रसित जो लोग हैं उन्हें अंबेडकर आवास दिया जा रहा है. आंकड़ों की माने तो पिछले कुछ माह में कालाजार चिन्हित 66 मरीजों को अंबेडकर आवास दिया जा चुका है. साथ ही उपायुक्त ने बताया कि प्रभावित इलाके में घर-घर दवा का छिड़काव हो रहा है. गांव में पोस्टर चिपकाकर इस बीमारी का कारण, इलाज और रोकथाम के तरीके बताए जा रहे हैं. उन्होंने भी उम्मीद जताई कि इस पर अंकुश लगाने में हम सफल होंगे.