दुमकाः दुख भरी कहानियां आपने कई सुनी होंगी, लेकिन आज हम जिस कहानी को पढ़ाने जा रहे हैं, वो आपके कठोर दिल को भी पसीज देगा. यह कहानी है दुमका जिलेके जरमुंडी प्रखंड क्षेत्र के महुआ गांव की नाबालिग बच्ची निशा कुमारी की. जिसको मां के इलाज और पांच छोटे भाई-बहनों की भूख मिटाने में पिता का सहारा बनने के लिए पढ़ने की उम्र में मजदूरी के लिए कुदाल थामना पड़ गया. और जिस उम्र में आंखों में तमाम सपने होते हैं, बच्ची को खाना बनाने के लिए खुद को अपने प्यारों, भाई-बहनों के लिए चूल्हे के सामने रखना पड़ गया.
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यह है दिल को झकझोरने वाली कहानी
महुआ गांव की निशा की मां दिव्यांग हैं और पिता मजदूरी कर परिवार का जैसे-तैसे भरण-पोषण कर रहे थे. लेकिन जैसे नीयति को यह भी मंजूर नहीं था. छह साल पहले निशा की मां मानसिक रूप से बीमार हो गईं. अब कुर्बानी का वक्त आ गया था. एक तरफ निशा के पढ़ने के सपने थे तो दूसरी तरफ छोटे-भाई बहन की भूख और मां का इलाज. आखिरकार बच्ची ने वह फैसला किया जिसके लिए चट्टान जैसा कलेजा जाहिए. उसने गृहस्थी की गाड़ी खींचने में खुद और अपने पढ़ाई के सपने को झोंक दिया. और पिता का सहारा बनने के लिए पहले घर का खाना बनाती है, फिर खेतों में पिता के साथ मिलकर मजदूरी करती है. निशा के पिता भीम दरबे बताते हैं कि बच्ची ही तो है कभी-कभार रो देती है. लेकिन क्या कर सकते हैं. इधर झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के बीपीएम वरूण कुमार शर्मा ने साग-सब्जी की खेती करने की सलाह दी है. ताकि आमदनी बढ़ाकर कम से कम निशा की मां का इलाज कराया जा सके. उन्होंने दीदी बाड़ी योजना का लाभ दिलाने का भी भरोसा दिलाया है.
मां के इलाज के लिए बड़ी बहन का जद्दोजहद