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दुमका उपचुनाव में 'आअ् सार' और 'ओपेल बाहा' की गूंज, जानिए आखिर क्या हैं इसके मायने - दुमका उपचुनाव में बीजेपी का प्रचार

दुमका उपचुनाव बीजेपी और जेएमएम के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं ने दुमका में डेरा डाल रखा है. यहां संथालियों की आबादी करीब 43 प्रतिशत है. 2 प्रतिशत आबादी आदिम जनजाति पहाड़िया की है. दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशी भी संथाली समाज से आते हैं इसलिए चुनाव प्रचार में संथाली भाषा का चलन बढ़ गया है.

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Published : Oct 29, 2020, 6:24 PM IST

Updated : Oct 29, 2020, 6:36 PM IST

रांची: दुमका में 3 नवंबर को उपचुनाव होना है. एक तरफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है तो दूसरी तरफ झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी की. हेमंत सोरेन पर दबाव ज्यादा है. उन्हें अपने छोटे भाई बसंत सोरेन को राजनीति में स्थापित करना है.

वहीं, 2019 के चुनाव के बाद भाजपा में आए बाबूलाल मरांडी, लुईस मरांडी को जीताकर पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं . लिहाजा, राज्य के दोनों बड़े नेताओं ने दुमका में डेरा डाल रखा है. अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व इस सीट पर हार-जीत का फैसला संथाली समाज करता है. संथालियों की आबादी करीब 43 प्रतिशत है. 2 प्रतिशत आबादी आदिम जनजाति पहाड़िया की है. चूकि दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशी भी संथाली समाज से आते हैं इसलिए चुनाव प्रचार में संथाली भाषा का चलन बढ़ गया है.

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आअ् सार दा आबू रेन, आबू रेन की गूंज

यह नारा झामुमो का है. इसका मतलब है - तीर-धनुष हमारा है, हमारा है. संथालियों के बीच पहुंचते ही झामुमो के नेता नारा लगाते हुए कहते हैं- आअ् सार दा ओको रेन ( मतलब - तीर-धनुष किसका है). जवाब में लोग कहते हैं - आअ् सार दा आबू रेन, आबू रेन (मतलब - तीर धनुष हमारा है, हमारा है). दरअसल, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के लिए दुमका की धरती उनकी कर्मभूमि रही है. यहां उन्होंने महाजनों के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया था. तब तीर धनुष का खूब इस्तेमाल हुआ. वैसे भी तीर धनुष आदिवासी समाज का पारंपरिक हथियार रहा है. इसके प्रति उनकी आस्था जुड़ी होती है. चुनाव के वक्त इस चिन्ह की अहमियत बढ़ जाती है और उम्मीदवार गौण हो जाता है. लिहाजा, झामुमो के तमाम नेता अपने चुनाव चिन्ह पर फोकस कर रहे हैं.

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ओपेल बाहा दा आबू रेन, आबू रेन की भी गूंज

2014 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन को हराने वाली भाजपा नेत्री लुईस मरांडी का सामना सोरेन परिवार के अनुज बसंत से है. लिहाजा, झामुमो की रणनीति को भांपते हुए भाजपा भी संथाली भाषा में स्लोगन निकाल चुकी है. भाजपा के तमाम स्थानीय नेता अपने संबोधन की शुरूआत ओपेल बाहा दा ओके रेन से करते हैं , इसका मतलब है - कमल किसका है. जवाब में लोग कहते हैं, ओपेल बाहा दा आबू रेन, आबू रेन. यानी कमल फूल हमारा है, हमारा है. अहम बात है कि कमल भी आदिवासी समाज को बहुत प्रिय है. यहां के तालाबों में कुमुदनी और कमल खूब खिलते हैं.

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संथाली और पहाड़िया जनजाति के टाइटल

झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है. यहां करीब 32 जनजातियां हैं. दुमका में सबसे ज्यादा संथाल जनजाति है. लिहाजा, आपके लिए यह जानना जरूरी है कि संथाल जनजाति के लोग अपने नाम के साथ कौन कौन से टाइटल का इस्तेमाल करते हैं. अगर किसी नाम के साथ किस्कू, हेम्ब्रम, सोरेन, मरांडी, मुर्मू और बेसरा शब्द जुड़ा हो तो समझ जाइये की संबंधित शख्स संथाल समाज का है. दुमका में आदिम जनजाति में शुमार पहाड़िया समाज के लिए अपने टाइटल में पुजहर और सिंह पहाड़िया शब्द का इस्तेमाल करते हैं. शायद यही वजह है कि जमशेदपुर आकर बतौर निर्दलीय सूर्य सिंह बेसरा भी ताल ठोक रहे हैं.

Last Updated : Oct 29, 2020, 6:36 PM IST

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