धनबाद:किसी ने ठीक लिखा है- "आसमां भी आएगा एक दिन जमीं पर..बस इरादों में जीत की गूंज होनी चाहिए". धनबाद के उमा महतो का जज्बा और जुनून इस कदर था कि उनकी मेहनत की बदौलत आज बंजर जमीन 'सोना' उगल रही है. कंकड़ और भारी पत्थरों से भरी जमीन पर उमा ने दिन रात मेहनत की और न सिर्फ आत्मनिर्भर बने बल्कि ऐसे कई लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने जो यह कहते हैं कि बंजर जमीं पर क्या हो सकता है.
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मेहनत से बदली तकदीर
दरअसल, टाटा सिजुआ के रहने वाले उमा महतो पहले दिहाड़ी मजदूर थे. मजदूरी से इतना पैसा मिलता नहीं था कि घर चला सकें. इसके बाद उमा ने कुछ अलग करने की ठानी. वे खेती करना चाहते थे, लेकिन उनके पास इतनी जमीन नहीं थी. उमा की नजर कंकड़-पत्थर से भरी खाली जमीन पर पड़ी. उमा बताते हैं कि जमीन काफी पथरीली थी. कड़ी मेहनत के बाद इसे समतल किया और फिर इसकी जुताई की. इसके बाद खेती करना शुरू किया. दो एकड़ जमीन से उमा अब सालाना 3 लाख रुपए कमा लेते हैं.
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उमा का कहना है कि उन्होंने खेती करने का तरीका बदला. पारंपरिक खेती को छोड़ ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई की. इससे पानी की भी बचत हुई और पौधों को कोई नुकसान नहीं हुआ. उमा अपनी पत्नी शांति देवी के साथ यहां खेती करते हैं. खेत में भिंडी, करेला, टमाटर और तरबूज की खेती कर रहे हैं. उमा बताते हैं कि सरकार की तरफ से सहयोग भी मिला है लेकिन निगम क्षेत्र की वजह से ज्यादा मदद नहीं मिली है. किसनों को मिलने वाले कई लाभ से वंचित रहना पड़ता है. उमा की पत्नी बताती हैं कि उन्हें भी पहले कुछ नहीं आता था. पति ने ही सबकुछ सिखाया है. न सिर्फ खेती में साथ देती हैं बल्कि ज्यादातर काम खुद ही कर लेती हैं. पत्नी का कहना है कि सबकुछ ठीक चल रहा है. सरकार एक तालाब की स्वीकृति दे दे तो सिंचाई में काफी मदद मिल जाती.
कभी दिहाड़ी मजदूरी कर घर चलाने वाले उमा आज एक सफल किसान बन चुके हैं. अपनी मेहनत के दम पर उमा यह साबित कर दिया जज्बा और जुनून हो तो सबकुछ कदमों में होता है. मंजिल तक पहुंचने वाले रास्ते आसान नहीं होते हैं. रास्ते को आसान बनाना पड़ता है.