धनबाद: क्या खूब लिखा है किसी ने-"वक्त ने फंसाया है लेकिन मैं परेशान नहीं हूं, हालातों से हार जाऊं वह इंसान नहीं हूं...". ये पंक्तियां धनबाद के प्रेमचंद पर बिलकुल सटीक बैठती हैं. 27 अप्रैल 2020. हिंदुस्तान में कोरोना अपने पीक पर था. इसी दिन प्रधानमंत्री मोदी टेलीविजन पर आते हैं और देशवासियों से अपील करते हैं कि इस आपदा को अवसर में बदल देना है. कुछ लोगों ने इसे आत्मसात कर लिया और असंभव को संभव बनाने की ठान ली. उसी में से एक हैं धनबाद के प्रेमचंद.
पेट पर आफत आई तो शुरू की फूलों की खेती
जब देश में लॉकडाउन लगा तब प्रेमचंद रांची में कंस्ट्रक्शन का काम संभाल रहे थे. जिंदगी अच्छी चल रही थी, लेकिन, कोरोना और लॉकडाउन ने कमर तोड़कर रख दी. कंस्ट्रक्शन का काम बंद हो गया. लॉकडाउन में लौटकर धनबाद आ गए. दो-तीन महीने तो बचे पैसे से जिंदगी चल गई लेकिन फिर...पेट की भूख कहां मानने वाली थी.
धनबाद में थोड़ी जमीन खाली पड़ी थी तो सोचा कि इसी में खेती की जाए. फूलों की खेती से शुरूआत की और यह चल निकला. धीरे-धीरे आमदनी भी शुरू हो गई. प्रेमचंद बताते हैं कि हर महीने 20 हजार रुपए से ज्यादा की कमाई हो जाती है. चार लोगों को रोजगार भी दे रखा है.